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जीएसटीः 5 साल बाद तैयार रहे अब?

आपने मेरा लेख पढ़ा होगा कि जीएसटी के लागू होने के 5 बाद सरकार को समीक्षा करनी चाहिए कि जीएसटी लागू करने के बाद सरकार ने क्या खोया या क्या पाया, क्या अप्रत्यक्ष कर प्रणाली जीएसटी लागू करने का उद्देश्य पूरा हुआ अथवा नहीं? इन्हीं बिन्दुओं को शामिल करते हुए हमारे द्वारा माननीय प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था। लेकिन इन्हीं बिन्दुओं पर हमने अपनी टीम के साथ जीएसटी के अनेक बिन्दुओं पर विचार-विमर्श भी किया तो हम सामने अनेक परिणाम सामने आये, इस अध्ययन में हमने पाया कि आई टी सी क्लेम एवं करचोरी के काफी वाद सामने आये। खैर! बात करते हैं कि जीएसटी को लागू हुए 5 साल के बाद क्या होने लगा है और क्या होने वाला है? आपको ध्यान होगा कि प्रारम्भ से ही करदाताओं के साथ विशेषकर टैक्स प्रोफेशनल्स के सामने सर्वर, पोर्टल और अंतिम तिथि बढ़ाने की मांग आदि दिक्कत आती थी।  करदाताओं के सामने सबसे पहलेजीएसटी के अन्तर्गत व्यापार करने के लिए रजिस्ट्रेशन लेने की जद्दोजहद, समय पर रिटर्न दाखिल न होने पर धारा-46 के नोटिस और धारा-29 के अन्तर्गत पंजीयन कैंसिल होने पंजीयन रिवोकेशन कराने के लिए धारा-30 के अन्तर्गत अपील आदि कार्यवा

सरकार के साथ व्यापारियों की संवादहीनता!!!

किसी भी देश के संचालन एवं विकास के साथ सभी प्रकार कार्य सम्पन्न करने के लिए सरकार को नियमितरुप से धन की आवश्यकता बनी रहती है। सरकार को विभिन्न प्रकार के राजस्व के रुप में धन प्राप्त होता है। भारत में राजस्व संग्रह के मुख्य स्रोत प्रत्यक्ष कर जैसे आयकर एवं अप्रत्यक्ष कर माल एवं सेवाकर प्रणाली हैं। यदि हम देश के आजादी के समय से राजस्व संग्रह का अध्ययन करते हैं तो परिणाम यह है कि राजस्व संग्रह के देश में 1948 में ‘केन्द्रीय बिक्रीकर अधिनियम’ के साथ राज्यों में ‘राज्य बिक्रीकर अधिनियम’ लागू करते हुए केन्द्र व राज्य सरकारों के संग्रह का स्रोत पैदा किया गया। इधर प्रत्यक्ष कर प्रणाली के अन्तर्गत ब्रिटिश शासन द्वारा 1882 में आयकर कानून बनाया, तत्पश्चात समय की आवश्यकता के अनुरुप और उद्योगों की प्रगति के अनुसार 1922 में नया आयकर कानून बना। लेकिन आजादी के बाद पूर्ववर्ती आयकर कानून को बदलते हुए 1961 में नया कानून को लागू एवं प्रभावी किया गया। इन कानून के माध्यम से भारत के श्रेष्ठियों (धन्नासेठों) से आयकर वसूलने की प्रक्रिया लागू की। 1961 में बनाये गये आयकर कानून भी पूराने कानून को नई व्यवस्था के स

भारत पूर्व में ही विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था थी!!

  आजकल देश के समाचार पत्रों में बड़ा उल्लेख हो रहा है कि भारत विश्व की छठवी अर्थव्यवस्था में शामिल हो गया है। कहा यहां तक जा रहा है कि दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रही भारतीय अर्थ व्यवस्था का आकर 2047 तक 20 लाख करोड़ डाॅलर हो जाएगा। यह भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगले 25 वर्षो में औसत वृ(ि दर वार्षिक वृ(ि दर 7-7.5 प्रतिशत हो। हम आपका ध्यान प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के चेयरमैन बिबेक देबराॅय के बयान पर आकृष्ट करना चाहते हैं, ‘भारत के लिए प्रतिस्पर्धात्मकता का मसौदा /100’ जारी करते हुए उनके द्वारा कहा गया कि पीएम मोदी ने 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। लेकिन महत्वपूर्ण यह भी है कि भारत के विकास के लिए राज्यों की वृ(ि भी महत्वपूर्ण है। आगे कहा कि आर्थिक वृ(ि की गति 7-7.5 प्रतिशत को नियमित बनी रही तो 2047 तक बनी रही तो अर्थव्यवस्था का आकार 20 लाख करोड़ डाॅलर से थोड़ा कम होगा। साथ ही कहा कि वर्तमान में दुनिया का छठवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का आकार 2.7 लाख करोड़ डाॅलर है।  हमको एक 1947 के उस आंकडे़ ध्यान देना होगा कि आजादी के समय

बुलंदशहर जिले - ‘बरन’

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले में एक प्राचीन शहर है। बुलंदशहर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय और दिल्ली एनसीआर क्षेत्र का हिस्सा है। भारत सरकार के अनुसार, जनसंख्या, सामाजिक-आर्थिक संकेतकों और बुनियादी सुविधाओं के संकेतकों पर 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर, बुलंदशहर जिला भारत के अल्पसंख्यक केंद्रित जिलों में से एक है।  वर्तमान में बुलंदशहर और नई दिल्ली के बीच की दूरी 68 किमी है। बुलंदशहर का एक प्रारंभिक इतिहास और इसके नाम की उत्पत्ति ब्रिटिश जिला मजिस्ट्रेट और भारतीय सिविल सेवा के कलेक्टर, फ्रेडरिक सैल्मन ग्रोसे द्वारा 1879 में जर्नल आॅफ द एशियाटिक सोसाइटी आॅफ बंगाल में प्रकाशित ‘बुलंदशहर एंटीक्विटीज’ नामक एक पेपर में दी गई है।  बुलंदशहर की स्थापना राजा अहिबरन द्वारा ‘बरन’ के रुप में की गई थी।, चूंकि यह एक उच्च भूमि ;किलेनुमा स्थान पर बसा हुआ हैद्ध पर स्थित था, अतः मुगलों द्वारा फारसी भाषा में इय शहर का नाम ‘बुलन्द’ पड़ गया। चूंकि एक शहर के रुप में विकाित हो गया, अतः ‘बुलन्द’ के आगे -शहर’ भी जोड़ दिया गया। इसलिए इसे ‘उच्च शहर’ के रुप में जाना जाने लगा, (फारसीः بلند شهر), जो

भूतेश्वर महादेव मंदिर कर्णवास

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 माँ कल्याणी मंदिर से लगभग १ मील की दूरी पर ठीक पूर्व में स्थित भगवन भूतेश्वर का प्राचीन मंदिर है । लघु आकर के प्राचीन किले में स्थित इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग सिद्ध शिवलिंग है । अनेक संत महात्माओं ने भूतेश्वर नाम से प्रसिद्द भूतेश्वर भगवान की सिद्ध्मत्ता अवं चमत्कारिक प्रसंगों का उल्लेख अपने ग्रंथो में किया है भक्तो की मान्यता है की भगवन भूतेश्वर से की गयी मनो कामना अवश्य पूर्ण होती है । वर्त्तमान मंदिर के निर्माण  का प्राप्त इतिहास भी बड़ा रोचक है कहा जाता है की आज से लगभग २५० वर्ष पूर्व यह मंदिर इस स्थान पर न होकर गंगा जी के सर्वथा तट पर था वही पक्का घाट था । इस मंदिर के सामने इमली का अति प्राचीन अवं अति विशाल वृक्ष खड़ा है यह भी ४०० वर्ष से कम पुराना नहीं है । इसी वृक्ष के सामने शिव मंदिर था । जो श्री गंगा जी ने कटाव करके अपने में समेट लिया उन दिनों यहाँ एक विरक्त महात्मा श्री रणधीर दास जी निवास करते थे वे आगरा जनपद के रहने वाले थे । यही एकांत में बने इस मंदिर में भगवन शिव की सेवा और गंगा स्नान करते थे मंदिर को गंगा जी में कटते गिरते देखकर उन्होंने भगवन शिव के इस दिव्या शिव लिंग

बुलंदशहर : नगर के प्राचीन राजराजेश्वर मंदिर, भवन मंदिर, भूतेश्वर मंदिर, कालेश्वर मंदिर, साठा देवी मंदिर,

  बुलंदशहर। सावन के पहले सोमवार को नगर के शिवालय बम-बम भोले की गूंज से गुंजायमान हो उठे। शिवालयों में भगवान शिव को दूध, बेलपत्र, धतूरा, भांग के पत्तों से अभिषेक किया गया। जगह-जगह भंडारे लगे। सावन मास के पहले सोमवार को नगर के प्राचीन राजराजेश्वर मंदिर, भवन मंदिर, भूतेश्वर मंदिर, कालेश्वर मंदिर, साठा देवी मंदिर, शीतलगंज स्थित शिवालय मंदिर, पंचशील कालोनी स्थित मंदिर, गौरीशंकर मंदिर, सिद्धेश्वर, टीचर्स कालोनी स्थित शिव शक्ति मंदिर पर जलाभिषेक करने के लिए भोले के भक्तों की भीड़ रही। इस दौरान सुबह-सवेरे से ही मंदिरों के कपाट खोल दिए गए। वहीं, काफी संख्या में महिला और पुरुष श्रद्धालुओं ने भगवान शिव की अराधना कर व्रत भी रखा। इसके अलावा नगर में सेवादारों द्वारा भंडारों का आयोजन किया गया। वहीं, डिबाई क्षेत्र के कर्णवास, राजघाट, विहारघाट, नरवर आदि गंगा तटों पर श्रद्धालुओं ने स्नान कर शिवालयों में पहुंचकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया। कर्णवास में भूतेश्वर महादेव, विहारघाट में वनखंडेश्वर महादेव के अलावा नगर के कैलाश ज्ञान मंदिर, संकट मोचन मंदिर, पथवारी देवालय, काले मंदिर आदि में श्रद्धालुओं की भीड़ ल

खुदरा व्यापार बनाम वोकल फाॅर लोकल!!

 2021 में भारत आजादी के अमृतोत्सव मना रहा है परन्तु हम अभी यह नहीं कह सकते कि देश मंें आर्थिक असंतुलिता एवं विषमता समाप्त होती जा रही है। जो 75 सालों में होनी चाहिए, वह आज भी हमारे देश का उद्योग और व्यापार उस समृद्धि की ओर अग्रसर नहीं हो पा रहा है यदि हम तुलना करें अन्य ऐसे देशों से जो 1945 से 1960 के बीच आजाद हुए वह भारत से कहीं अधिक विकसित देश बन चुके हैं जबकि भारत आज भी विकासशील देश की श्रेणी में गिना रहा है। यदि आप यह कहें कि ऐसे देशों की तुलना में हमारे देश का आबादी 10 गुनी तक है लेकिन यह भूलना चाहिए कि हमारे देश की भौगोलिक, प्राकृतिक स्थिति उन देशों से कहीं अधिक समृद्ध है, इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि आज की किसी भी केन्द्र या राज्य सरकार ने देश के काॅरपोरेट जगत को अधिक केन्द्र बनाकर नीति निर्धारण कर रही है जबकि देश का खुदरा बाजार क्षेत्र भी उससे अधिक समृद्ध और सामथ्र्यशाली है लेकिन दुःखद स्थिति यह है कि खुदरा क्षेत्र को संगठित क्षेत्र बनाने के लिए न तो कोई ठोस योजना बन पायी है और न ही इस ओर कोई ध्यान दिया गया है।  आश्चर्यजनक स्थिति यह है कि आज देश में लगभग 136 करोड़ की आबादी, और वि