Posts

Showing posts from October, 2019

सुनहरे भविष्य की बढ़ता भारत

भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रुप में उभरता हुआ तारा के  रुप में जाना जा रहा है और यह भी संभव है कि वर्ष 2040 तक में दुनिया की शीर्ष तीन आर्थिक शक्तियों से आगे बढ़कर एक प्रभावशाली देश के रुप में स्थापित हो जाए। भारत के बाजार का आकार इंडिया ब्रांड इक्यूविटी फांउडेशन के अनुसार आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वर्ष 2019-20 में भारत की जीडीपी वृ(ि दर 12 प्रतिशत पर हो जबकि 2018-19 के लिए अनुमान 11.5 प्रतिशत था। हां, 2019-20 के प्रथम तिमाही  के दौरान, सकल घरेलू उत्पाद  में 5 प्रतिशत की वृ(ि रिकार्ड की गई। NASSCOM की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में 4,750 से ज्यादा टेक्नोलाॅजी स्टार्टअप के साथ भारत ने तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप बेस के रुप में अपना स्थान बनाये रखा है। ASSOCHAM और थाॅट आर्बिट्राज रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन के अनुसार, भारत की श्रम शक्ति 2020 तक जनसंख्या वृ(ि की दर, श्रम शक्ति की भागीदारी में वृ(ि और उच्च शिक्षा नामांकन, अन्य कारकों के आधार पर 160-170 मिलियन को छूने की उम्मीद है। इतर भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 21 दिसंबर, 2018 तक सप्ता

निजीकरण का विरोध!!

हमारे देश में सोशलन मीडिया बहुत ही सशक्त माध्यम बनता रहा है। यह भी देखा जा रहा है कि कथित विद्वान सरकार की नीतियों के विरोध में लम्बे-चैड़े विचार लिख देते हैं और सोशल मीडिया में बिना सोचे-समझे लोग उसको लगातार पोस्ट करते रहते हंै। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या विरोध के उचित है या अनुचित? 1947 के बाद हमारा देश आर्थिक विकास के क्षेत्र में बहुत पिछड़ चुका था। अभी हाल ही में अमेरिका के एक कार्यक्रम में हमारे विदेश मंत्री ने कहा कि 200 सालों के अंग्रेजों ने हमारे देश पर राज किया तो उस अंग्रेजी राज ने देश के विकास पर नहीं वरन लूटने में अधिक रुचि दिखायी। उनके द्वारा आंकड़ा दिया गया कि 200 सालों में अंगे्रजी शासकों ने 85 हजार करोड़ डाॅलर लूट कर ले गये। अमेरिका के एक लेखक ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि 1758 में विश्व की कुल जीडीपी में भारत का 32 प्रतिशत का योगदान था। अंग्रेजों ने भारत में भू-कर व्यवस्था को लागू और किसानों से 50 प्रतिशत भू-कर वसूल किया जाने लगा तो इसके कारण देश के किसानों ने देश में अफीम आदि खेती करनी शुरु कर दी। 1947 में जब भारत, ब्रिटिश राज से मुक्त हुआ था तब भारत के    1 रुप

बदलना होगा पूंजीवादी समाजवाद अर्थव्यवस्था को

महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘भारत गांव में बसता है’। उनके कहने का अर्थ कुछ भी लगा लो, लेकिन उनकी भावना यह रही होगी कि ‘भारत एक कृषि प्रधान देश है’, क्योंकि आजादी के समय (1947 में) देश में बड़ा भू-भाग पर खेती होती थी, लोगों की आजिविका कृषि आधारित ही थी, अनुपात में शहरीकरण बहुत कम था और देश में उद्योगों की संख्या भी नगण्य ही थी। महात्मा गांधी के उस कथन का अध्ययन किया जाए कि हमारे देश में कृषि का भविष्य क्या रहा? और परिणाम सामने क्या आए? क्या हमारा देश ‘कृषि प्रधान’ होकर भी हमारे देश की मांग को पूरा करने में सक्षम हो पाया? इसी प्रश्न को लेकर हमको सरकार की नीतिआंे के साथ योजनाओं का भी अध्ययन करना बहुत आवश्यक हो गया है। यहां पर हम दो बिन्दु पर विचार करना चाहेंगे कि क्या हमारे देश अर्थव्यवस्था ‘कृषि प्रधान’ बनी रही अथवा पूंजीवाद समाजवाद’!! साथ ही इस बिन्दु पर विचार करना होगा कि क्या हमारा कृषि प्रधान देश वास्तव में कृषि प्रधान देश रह पाया या फिर.... राजनीति से प्रभावित होकर रास्ता भटक गई। पहला तो यह है कि आजादी के बाद हमारे देश की अर्थव्यवस्था समाजवाद की ओर ले जाने का प्रयास किया गया ल

बुलन्दशहर बनाम बरन: प्राचीन परिचय

देश की राजधानी दिल्ली के नजदीक उत्तर प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक शहर बुलन्दशहर बसा हुआ है, जहां भारतीय अतीत से जुड़े कई साक्ष्यों को देखा जा सकता है। इस शहर का इतिहास 1200 वर्ष पुराना कहा जाता है, तब इसे ‘बरन’ के नाम से जाना जाता था। यहां अहिबरन नाम के एक शासक ने ‘बरन’ नाम का किला बनाया था, जिसके बाद उसने अपनी राजधानी ‘बरन शहर’ के नाम से यहीं स्थाापित की। बाद में इस शहर का नाम बदलकर बुलन्दशहर हो गया। लेकिन इतिहासकार अभी तक ऐसा कोई साक्ष्य नहीं ढूंढ पा रहे हैं कि ‘बरन शहर’ का नाम बदलकर ‘बुलन्दशहर’ क्यों और कैसे हो गया और किस शासनकाल के दौरान हुआ। जबकि कुछ इतिहासकारों का मत है कि ‘बरन शहर’ को ‘बरन सिटी’ कहा जाता था अतः बदलते हुए ‘बुलन्दशहर’ हो गया। लेकिन इस तर्क से सहमत नहीं हूं। इसके पीछे कई तर्क हो सकते हैं। एक तो ‘बरन’ और ‘बुलन्द’ शब्द में कोई समानता नहीं है। फिर सिटी शब्द अंग्रेजी वर्ण का है, जो कि ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों के आने के बाद ‘सिटी’ शब्द प्रचलन में आया। हां, एक तर्क से मेरी सहमति हो सकती हैं। 1200 वर्ष पुराना किला जब मुगल और आक्रांताओं के आक्रमण के पश्चात बरन शहर

आगरा शहरः क्या प्रदूषणमुक्त हो पाएगा? एक यक्ष प्रश्न

आगरा शहर, एक प्राचीन नगरी, जिसने अनेक साम्राज्यों का सुख और दुख का अनुभव किया।कभी आवाद हुआ तो कभी बर्बाद हुआ। राजा आते रहे, लड़ाईयां होती रही आगरा चुपचाप सहता और देखता रहा । लेकिन आजादी के बाद आगरा शहर ने भी राहत की सांस लेते हुए आगरा को यह होने लगी कि अब अपने आजाद भारत में सरकार आगरा पर मेहरबान होगी, क्योंकि आगरा को गर्व था कि उसके पास सुन्दर और विश्व के अजूबे में शामिल ताज महल है, और साथ में सिकन्दरा, बुलन्द दरवाजा के साथ पौराणिक विरासत को समेटे शिव मंदिर हंै, समय बीतता गया, और सुन्दर और स्वच्छ आगरा की आशा जागने लगी, और तभी एक पर्यावरणविद संत (अधिवक्ता) आये, जिनका  नाम है एम सी मेहता, ने ताज महल की सुंदरता की चिंता करते हुए उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका प्रस्तुत कर दी, तो जनसाधारण के साथ आगरा को यह आशा बंध लगने लगी कि अब आगरा के सुंदर,स्वच्छ और प्रदूषणमुक्त भविष्य के साथ सभी बुनियादी सुविधाओं से युक्त ‘नये आगरा’ की कहानी लिखी जाएगी, लेकिन दुर्भाग्य ही कहेंगे। हां इतना जरुर हुआ कि उच्चतम न्यायालय ने ताजमहल के संरक्षण और प्रदूषण मुक्त की चिंता करते हुए आगरा की जनता के साथ उद्योग समू