खुदरा व्यापार बनाम वोकल फाॅर लोकल!!
2021 में भारत आजादी के अमृतोत्सव मना रहा है परन्तु हम अभी यह नहीं कह सकते कि देश मंें आर्थिक असंतुलिता एवं विषमता समाप्त होती जा रही है। जो 75 सालों में होनी चाहिए, वह आज भी हमारे देश का उद्योग और व्यापार उस समृद्धि की ओर अग्रसर नहीं हो पा रहा है यदि हम तुलना करें अन्य ऐसे देशों से जो 1945 से 1960 के बीच आजाद हुए वह भारत से कहीं अधिक विकसित देश बन चुके हैं जबकि भारत आज भी विकासशील देश की श्रेणी में गिना रहा है। यदि आप यह कहें कि ऐसे देशों की तुलना में हमारे देश का आबादी 10 गुनी तक है लेकिन यह भूलना चाहिए कि हमारे देश की भौगोलिक, प्राकृतिक स्थिति उन देशों से कहीं अधिक समृद्ध है, इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि आज की किसी भी केन्द्र या राज्य सरकार ने देश के काॅरपोरेट जगत को अधिक केन्द्र बनाकर नीति निर्धारण कर रही है जबकि देश का खुदरा बाजार क्षेत्र भी उससे अधिक समृद्ध और सामथ्र्यशाली है लेकिन दुःखद स्थिति यह है कि खुदरा क्षेत्र को संगठित क्षेत्र बनाने के लिए न तो कोई ठोस योजना बन पायी है और न ही इस ओर कोई ध्यान दिया गया है।
आश्चर्यजनक स्थिति यह है कि आज देश में लगभग 136 करोड़ की आबादी, और विश्व की सबसे बड़ी दूसरी आबादी वाला देश है, हम यह भी कह सकते हैं कि भारत, विश्व का सबसे बड़ा बाजार के रुप में स्थापित हो चुका है। लाॅकडाउन 2020 के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश के व्यापार-उद्योग को नयी पहचान देने के लिए ‘आत्म निर्भर भारत’ योजना लागू की और ‘वोकल फाॅर वोकल’ पर जोर देते हुए आम जनता से जुड़ने के लिए अपील की। लेकिन हमारा मानना है कि इस खुदरा क्षेत्र में आज भी ठोस योजना बनाने की और बनाकर लागू करने की महती आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन सरकारों ने विनिर्माण क्षेत्र को महत्व को पहचाना और विनिर्माण क्षेत्र में स्थापित इकाईयों को उनके टर्नओवर के अनुसार कैटेगरी में वर्गीकृत करते हुए एम.एस.एम.ई. क्षेत्र में बांटते हुए विभिन्न योजनाएं बनायी गई, परन्तु दुखःद यह है कि जब तक देश में खुदरा बाजार सशक्त नहीं होगा तब तक विनिर्माण क्षेत्र को मजबूती नहीं मिल सकती। सरकार कितनी भी निर्यात को प्रोत्साहित कर ले परन्तु देश के खुदरा क्षेत्र को प्रोत्साहित किये बिना सफलता संभव नहीं है।
ज्ञातव्य रहे कि केन्द्र सरकार के साथ राज्य सरकारों पर पास एम.एस.एम.ई. क्षेत्र में स्थापित इकाईयों का आंकड़ा उपलब्ध है परन्तु खुदरा क्षेत्र के कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि एम.एस.एम.ई. क्षेत्र से बड़ा क्षेत्र खुदरा बाजार का क्षेत्र है। सत्यता यह भी है कि केन्द्र सरकार के साथ राज्य सरकारें, खुदरा क्षेत्र की शक्ति और महत्व को स्वीकार नहीं पा रही है। हां! यह कहा जा सकता है कि आज तक सरकारों की नीति 1960 पर आधारित है और अधिक से अधिक से कर वसूली और अधिक से अधिक राहत देने की रही है। आप भले ही देश की अर्थव्यवस्था विश्व की बड़ी पांचवी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो रही है लेकिल अभी बनाई गई सभी नीतियों के निर्धारण में सरकारों की सोच 1960 पर आधारित होने के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था ‘पूंजीवादी समाजवाद’ नीति पर आधारित होकर गई जिसके कारण से देश की अर्थव्यवस्था कोई स्पष्ट नीति की ओर नहीं चल पा रही है। और वह नहीं मिल पा रहा है, उधर सरकार के साथ विपक्षी दल भी राहतों की नीति से आगे सोच नहीं बना रहे हैं। उधर विपक्ष सकारात्मक भूमिका निभाने में असफल ही कहा जाएगा।
अध्ययन करना आवश्यक है कि 136 की आबादी में लगभग 8 करोड़ से अधिक खुदरा बाजार का क्षेत्र है। लेकिन अभी तक की सरकारों ने अधिक से अधिक कर वसूली का केन्द्र बिन्दु बनाकर देश के भारी उद्योगों के साथ काॅरपोरेट क्षेत्र को मानकर ही प्रति वर्ष बजट बनाते हुए लागू किया जाता रहा है और खुदरा क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चितज नहीं हो पा रही है। जबकि सत्य तो यह है कि देश का खुदरा क्षेत्र अप्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष कर वसूली क्षेत्र में सार्वधिक कर संग्रह में भागीदारी निभाने में सक्षम है, इसके साथ खुदरा क्षेत्र भारी संख्या में रोजगार देने के साथ परिवारों को पालन रहा है। जैसाकि कहा जाता है कि देश का काॅरपोरेट सेक्टर भारी संख्या में रोजगार तो दे रहा है परन्तु सत्य तो यह है कि यह क्षेत्र में शिक्षित वर्ग को ही रोजगार देता है कि जबकि खुदरा क्षेत्र शिक्षित वर्ग के साथ अशिक्षित वर्ग को ही भी रोजगार दे रहा है। यदि खुले मन से स्वीकार किया जाये तो खुदरा क्षेत्र शिक्षित क्षेत्र टैक्स अधिवक्ताओं को भी भारी संख्या में रोजगार देने में सक्षम है और दे भी रहा है। उल्लेखनीय है कि खुदरा क्षेत्र टैक्स अधिवक्ताओं को रिटर्न आदि भरने के लिए नियमित रोजगार प्रदान करता है।
अतः समय आ गया है कि केन्द्र सरकार के साथ सभी राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में कार्य कर रहे खुदरा व्यापारियों का व्यापक जनगणना कराने की और जनगणना उपलब्ध होने के बाद खुदरा क्षेत्र में कैसे संरक्षण और प्रोत्साहन दिया जाये पर कार्ययोजना पर काम करना होगा। सरकार को अपनी नीति निर्धारण में अपनी सोच के साथ नीति बनाने का आधार को 1960 का न लेकर बल्कि 2020 अथवा 2030 वर्ष का आधार लेते हुए खुदरा क्षेत्र में एम.एस.एम.ई. जैसी कोई योजना खुदरा क्षेत्र के लिए लाये, जिससे खुदरा क्षेत्र में विश्वास पैदा हो सके। वर्ततान में लागू प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर प्रणालियों के प्रति व्याप्त भय समाप्त हो, और खुदरा क्षेत्र प्रसन्नता के साथ दोनों प्रणालियों से जुड़े। जब देश के प्रत्येक व्यापारिक, औद्योगिक क्षेत्र भयमुक्त, खुलकर व्यापार करेगा तो देश को 136 की जनसंख्या के अनुपात में राजस्व संग्रह होगा साथ ही प्रधानमंत्री का कार्यक्रम ‘आत्म निर्भर भारत’ एवं ‘वोकल फाॅर लोकल’ की सफलता मिल सकेगी, युवाओं को स्थानीय क्षेत्र में ही रोजगार सुलभ होगा, साथ ही महत्वपूर्ण है कि युवावर्ग पुनः शहर से ग्राम की ओर अग्रसर होगा। गांव-गांव में विकास की धारा बहेगी। इस प्रकार देश का खुदरा बाजार क्षेत्र समृ( होगा साथ ही देश में ‘टैक्सेशन सेन्स’ वातावरण भी पैदा होगा, भारत पुनः सोने की चिड़िया का स्वरुप की ओर लौटेगा।
अतः प्रधानमंत्री को अपने कार्यक्रम ‘आत्म निर्भर भारत’ एवं ‘वोकल फाॅर लोकल’ की सफलता के लिए लीक से अलग हटकर निर्णय लेनेा चाहिए, वैसे भी हमारे प्रधानमंत्री लीक से अलग हटकर निर्णय लेने का साहस रखते हैं।
(पराग सिंहल)
(देश का खुदरा व्यापारी हमारी मत से सहमत है तो 9410664214 पर टिप्पणी अवश्य ही लिखे।)
Comments
Post a Comment