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कोरोना का संदेश स्वास्थ्य के लिए घातक वस्तुओं को उत्पादन बंद होना चाहिए

फरवरी से ही विश्व में कोरोना महामारी को लेकर हो-हल्ला चल रहा है, भारत भी इससे प्रभावित हो चला। पूरा देश हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कोरोना से जंग लड़ रहा है। सर्वविदित है कि कोरोना चीन का मानवीय उत्पाद है। लेकिन हम सभी को यह सोच कर निश्चित नहीं हो जाना चाहिए कि यह मानवीय उत्पाद है, जल्दी ही इसका प्रभाव खत्म हो जाएगा। लेकिन यही हमारी भूल होगी। लेकिन इसके साथ ही हमको अपनी एक ओर भूल को भी स्वीकार करना होगा कि आज ऐसी स्थिति क्यों पैदा हो गयी कि संक्रमित प्रभावित लोगों को क्पारटीन में रहना पड़ रहा है। और जो प्रभावित नहीं हुए हैं उनको भी सुरक्षा उपायों जैसे सोशल डिस्टेसिंग पालन क्यों करने के साथ मंुह को ढक कर रहना है। क्या कोरोना छुआछुत की बीमारी है? जबकि हमारे देश में छुआछूत को अभिशाप माना जाता रहा है। इसके खिलाफ लगभग सौ सालों से अभियान भी चल रहा है। तो फिर आज छुआछुत से बचने की सलाह क्यों दी जा रही है? सोचना होगा कि छूआछुत का आन्दोलन किस ;गलतद्ध मोड़ पर चला गया और इसको रोकने के लिए भारतीय संविधान में भी व्यवस्थिात कर दिया। इन दिनों देश में बडे जोर-शोर से हल्ला चल रहा है

59 वर्ष पुरानी सोच के साथ ढो रहे हैं हम अपनी अर्थव्यवस्था !!!

साथियों, इस लाॅकडाउन के दौरान घर में लाॅकअप में रहकर बहुत से विषयों पर आपसे चर्चा करने का अवसर मिल रहा है। क्योंकि मेरा मानना है, समय कैसा भी हो उसको हर क्षण को ‘अवसर’ में बदल कर जीवन को आनंद लेना चाहिए।  किसी भी देश की अर्थव्यवस्था प्राप्ति और खर्च पर निर्भर करती है। जिस देश की प्राप्तियां यानि टैक्सेज कम हो और खर्च अधिक हो तो उस देश को ‘विकासशील देश’ की श्रेणी में रख दिया जाता है। आज हमारा देश विकासशील से विकसित देश की ओर बढ़ रहा है। अतः हम अपने देश की अर्थव्यवस्था का अध्ययन करेंगे तो पाते हैं कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आधार 59 साल पुराना है। निःसंदेह अर्थव्यवस्था पुरानी सोच पर आधारित है। जब हम 1961 में देश की आर्थिक स्थिति का आंकलन करेंगे तो उत्तर स्वयं ही मिल जाएगा। इसके लिए हमको 1961 से 2019 के बीच का समय का भी अध्ययन करना होगा। वर्ष 1961 प्रति व्यक्ति आय per capita income 330.21 आंकी गई थी जबकि 2018-19 के दौरान वास्तविक रुप से प्रति व्यक्ति आय (2011 -12 की कीमतों पर) रुपये का अनुमान है, रुपये की तुलना में 92,565 प्रतिशत की वृ(ि दर्ज की गई, जबकि 2017-18 के दौरान 87,623, आ

लाॅकडाउन के बाद बदलेगी भारत के उद्योगों की तस्वीर

  आज आगरा के बड़े निर्यातक अशोक जैन ओसवाल ने गु्रप में वीडियो भेजी। जिसमें डाॅ. उज्जवल पाटनी ने भारत के औद्योगिक सेक्टर पर अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए भारत के उद्योग के बारे में काफी बताया। लेकिन कुछ बिन्दुओं पर मैं डाॅ. पाटनी से सहमत नहीं हो पाया। अतः हमको कोरोना के बाद भारत की औद्योगिक स्थिति पर चर्चा कर लेनी चाहिए। इस चर्चा के लिए हम चलना होगा भारत के 1990 के बाद के कार्यकाल पर। 21 जून 1991 को प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंम्हवा राव का कार्यकाल प्रारम्भ हुआ, प्रधानमंत्री राव के कार्यकाल में भारत में होने वाले उत्पादन क्षेत्र मंे लागू लाइसेंसिंग प्रणाली के पूरी तरह से समाप्त कर भारत के उद्योगों को नई दिशा प्रदान की। तत्पश्चात अटल बिहारी बाजपेयी ने प्रधानमंत्री का पदभार मई 1996 में संभाला। बाजपेयी देश के उद्योगों में नये सेक्टरों के द्वार खोल दिये जिसमें मुख्यतः आई.टी., बैंकिंग और इश्योरेंस क्षेत्र के साथ सिक्यूरिर्टी गार्ड उद्योग को भारत के पटल पर प्रस्तुत किया। इसके साथ ही देश में निजीकरण के दौर शुरु हो गया। इस नये प्रयोग के साथ देश में औद्योगिक क्रांति आगाज तो हुआ ही और देश के रा

Ancient Agra

आगरा ताज नगरी के नाम से भी विख्यात है। वैसे आगरा के प्राचीन वैभव को मुगलों की देन समझा जाता था। क्यांेकि मुगल काल में आगरा आसपास के क्षेत्र व जनपदों के लिए एक व्यापारिक केन्द्र था। इसका प्रमाण यह भी है कि आगरा में विभिन्न बाजारों के नाम के आगे मण्डी लगा है जिससें यह प्रतीत होता है कि आगरा में विभिन्न वस्तुओं की मण्डी हुआ करती थी। आगरा से आसपास के जनपदों में जल की आपूर्ति यमुना नदी से होती थी। आगरा में बड़े बड़े (वर्तमान में) नाले है तक यह नहरें हुआ करती थी। इन नहरों से आसपस जिलों मेें मुगल काल में यमुना नदी से आसपास के जनपदों में पानी की आपूर्ति की व्यवस्था थी। परन्तु इस आधुनिक युग में जैसे जैसे षहर का विस्तर होता गया इनका स्वरुप गन्दे नालों में बदल गया। आगरा का अतीत जानने के लिए इस्लामी (मुग़ल) काल से पूर्व के अतिहास की व्याख्या करने की कोषिष नहीं की गयी। यह कहना कि आगरा को दुर्ग वाले नगर की श्रेणी सुल्तान सिकन्दर लोदी ने दी, एक पूर्वाग्रह हो सकता है। (देखें ली. ए. कमर, द लेसर नोन मान्यूमेंट आॅफ आगरा (लेख) बसन्तात्सव सुवेनीर 1980 पृ0 20)। फतेंहपुर सीकरी के निकट प्रागैतिहासिक कुछ