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Showing posts from January, 2015

जीएसटी की मूल भावना भारतीय हो!

केन्द्र सरकार देश में नई कर प्रणाली जीएसटी को लागू करने के सतत् प्रयासरत है। वादा भी किया है देश में अपै्रल 2016 में जीएसटी लागू कर दिया जाएगा। लोकसभा में संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया जा चुका है संभवतः तत्पश्चात शीघ्र ही राज्यों की विधान सभाओं में प्रस्तुत कर पारित करवा लिया जाएगा, पारित होने के बाद जीएसटी के एक्ट का निर्माण होना है। लेकिन हमारी केन्द्र एवं राज्य सरकार से मांग है कि प्रस्तावित जीएसटी एक्ट की मूल भावना ‘भारतीय’ होनी चाहिए। हमारी यह मांग के पीछे कुछ कारण है। कारण यह है कि हमारे संविधान में अभी तक विद्यमान लगभग सभी अधिनियम ब्रिटिश काल के ही हैं, आपको स्मरण होगा कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी का अस्तित्व समाप्त होकर पूरी तरह से ब्रिटिश क्राउन का राज भारत में कायम हो गया था तत्पश्चात भारत के लिए संविधान का निर्माण हुआ परन्तु भारत के संविधान का निर्माण ब्रिटिश संसद में हुआ, निश्चय ही उस निर्माण की भावना भारत पर राज करने की थी, अतः सभी निर्मित एक्ट में ऐसी भावनाओं को समाहित हो गई जिससे ब्रिटिश अधिकारी भारत की जनता पर येन-केन-प्रकरेण शासन कर

भारत का समग्र (औद्योगिक) विकास

नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने देश के प्रधानमंत्री पद का भार संभालने के साथ ही देश की समग्र विकास के लिए विदेशी निवेश के लिए सफल प्रयास शुरु कर दिये है। उन्होंने अपनी प्रत्येक विदेश यात्रा में जिनमें मुख्यतः जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में देश के औद्योगिक व अन्य क्षेत्र के विकास के लिए विदेश में रह रहे अप्रवासी भारतीयों के साथ विदेशी उद्योगपतिओं को भारत में निवेश करने का आमंत्रण दिया, जिसको सभी ने सहर्ष स्वीकार किया।  अभी हाल ही में गुजरात में आयोजित ‘अप्रवासी भारतीय सम्मेलन के बाद बाइव्रेंट इंडिया के सफल आयोजन में भी भारत के औद्योगिक विकास के साथ अन्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के स्थायी विकास के लिए भी विदेशी निवेश को आकर्षित किया। समाचार के अनुसार उत्तर प्रदेश में ही लगभग 25 हजार करोड़ रुपये का निवेश के समाचार प्राप्त हुए।  वैसे देश की आजादी के बाद भी देश के औद्योगिक विकास के साथ औद्योगिक क्षेत्र में सहायक सेवाएं जैसे रेल सेवा व पिछड़े राज्य जिनमें वन व भू-संपदा के उत्खनन के साथ उनका पूरी तरह विकास के लिए प्रयोग करना और पिछड़े राज्यों में व्याप्त पिछड़ापन को समाप्त करने की चु

बरन प्रदेश बनाम बुलन्दशहर

बरन प्रदेश, जिसका वर्मतान में प्रचलित नाम बुलन्दशहर है, जोकि काली नदी के किनारे और राष्ट्रमार्ग-65 पर बसा हुआ है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में ‘बरन प्रदेश’ पांचाल प्रदेश का ही हिस्सा था। लेकिन तथ्य यह भी है कि कौरव काल में यह क्षेत्र ब्रज प्रदेश में आता था और तत्कालीन शासक महाराजा अग्रसेन के ही राज्य का हिस्सा था लेकिन कौरव राज दुर्योधन ने यह हिस्सा काट कर अपने प्रिय मित्र ‘कर्ण’ को भेंट कर दिया था, जिसका नामकरण ‘वत्स प्रदेश’ रखा गया। जोकि पांचाल प्रदेश का हिस्सा बना । आज यह क्षेत्र ‘कर्णवास’ नाम से जाना जाता हैजोकि गंगा नदी के किनारे आज भी छोटे से गांव के रुप डिबाई तहसील में में बसा हुआ है। बरन शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के इसी शब्द ‘वरण’ के हुई है। काली नदी के पश्चिमी तट पर स्थित टीले पर बसे होने के कारण यह नगर आज  बुलन्दशहर के नाम से जाना जाता है। पिछले 3000 वर्षों में जिन किलों तथा किलों के समूहों का निर्माण हुआ था उनके खंडहर अब काली नदी के पश्चिमी जट पर एक टीले के रुप में है। बरन जनपद में ऐसे कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं जिनका उल्लेख महाभारत ग्रंथ में मिलता है। इसके

बरन प्रदेश बनाम बुलन्दशहर

बरन प्रदेश, जिसका वर्मतान में प्रचलित नाम बुलन्दशहर है, जोकि काली नदी के किनारे और राष्ट्रमार्ग-65 पर बसा हुआ है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में ‘बरन प्रदेश’ पांचाल प्रदेश का ही हिस्सा था। लेकिन तथ्य यह भी है कि कौरव काल में यह क्षेत्र ब्रज प्रदेश में आता था और तत्कालीन शासक महाराजा अग्रसेन के ही राज्य का हिस्सा था लेकिन कौरव राज दुर्योधन ने यह हिस्सा काट कर अपने प्रिय मित्र ‘कर्ण’ को भेंट कर दिया था, जिसका नामकरण ‘वत्स प्रदेश’ रखा गया। जोकि पांचाल प्रदेश का हिस्सा बना । आज यह क्षेत्र ‘कर्णवास’ नाम से जाना जाता हैजोकि गंगा नदी के किनारे आज भी छोटे से गांव के रुप डिबाई तहसील में में बसा हुआ है। बरन शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के इसी शब्द ‘वरण’ के हुई है। काली नदी के पश्चिमी तट पर स्थित टीले पर बसे होने के कारण यह नगर आज  बुलन्दशहर के नाम से जाना जाता है। पिछले 3000 वर्षों में जिन किलों तथा किलों के समूहों का निर्माण हुआ था उनके खंडहर अब काली नदी के पश्चिमी जट पर एक टीले के रुप में है। बरन जनपद में ऐसे कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं जिनका उल्लेख महाभारत ग्रंथ में मिलता है। इसके

झांसी: बाबा गंगादास की बड़ी शाला

  भारत विश्व का एक ऐसा देश है, जिसके कण-कण में भगवान बसते हैं। भारत की भूमि में हर दिशा, हर क्षेत्र में कोई ना कोई आध्यात्मिक आश्रम है और पूज्य स्थल है। इस बारे में हैम्पटन एस सी (अमेरिका) निवासी अर्सेल (अब स्वर्गीय) ने 1979 में भारत भ्रमण के दौरान  एक टिप्पणी की कि ‘प्रड्डति ने आध्यात्मिक क्षेत्र में भारत के साथ पक्षपात किया है।’ उनकी यह टिप्पणी द्वेषमात्र नहीं है, वरन् सत्यता व्यक्त करती है। मैडम अर्सेल कोे अपनी भारत भ्रमण के दौरान ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण कर उनके बारे में सत्यतापूर्ण इतिहास जानने की इच्छा थी। अपनी यात्रा मंे हरिद्वार और मथुरा में उन्होंने सनातन धर्म का नजदीक से जाना भी। मैडम अर्सेल ने लेखक से प्रश्न भी किया कि भारत की भूमि इतनी पवित्र और अलौकिक क्यों है? विशेषतः उनके मन में एक जिज्ञासा थी कि भारत में जगह-जगह पर और आश्रमों में फाॅयर (अग्नि) को एक ब्रिक के चोकोर घेरे  में जलाया जाता है (उनका आशय हवनकुड में अग्नि प्रज्वलित कर हवन करने से था।) और उस अग्नि को एक बड़ी-बड़ी ढाड़ी वाला व्यक्ति कुछ करता है ऐसा वह क्या करता है तब लेखक ने बताया कि वह अग्नि मात्र अग्नि नह

आगरा से बासुदेव और कृष्ण के सम्बन्ध और यादव वंश की उत्पत्ति -

आगरा के एक इतिहासकार डाॅ. आर. नाथ अपनी पुस्तकों में लिखते हैं कि ईसा से पूर्व दूसरी तथा तीसरी शताब्दी में आगरा का सम्बन्ध बासुदेव और कृष्ण से सम्बन्ध था, इस मेरा विचार है कि पुराणों व भगवत् गीता के अनुसार महाभारत आज से लगभग 5300 वर्ष पूर्व हुआ था और वासुदेव पुत्र भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत में पाण्डवों की ओर अर्जुन के सारथी के रुप में युद्ध लड़ा था, तब प्रश्न यह उठता है कि वासुदेव व कृष्ण का सम्बन्ध ईसा से पूर्व दूसरी तथा तीसरी शताब्दी में कहाँ हो सकता है। हाँ कृष्ण के पिता वासुदेव का सम्बन्ध आगरा से हो सकता है क्योंकि आगरा के पूर्व में स्थित वर्तमान में बटेश्वर वहीं  बासुदेव का राज्य था। यादव वंश की उत्पत्ति बटेश्वर से हुई:  इसके विषय में इस में कुछ जगह उल्लेख मिलता है कि वासुदेव और श्री कृष्ण के सम्बन्ध में आगरा के ही इतिहासकार डा0 प्रणवीर सिंह चैहान द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘‘समयचक्र आगरा’’ में आगरा के बारे में विस्तृत जानकारी देने का प्रयास किया है। वे अपनी पुस्तक के पृष्ट संख्या 27 पर एक वंश तालिका दी है जिसमें उन्होनें बताया है कि बटेश्वर राज्य में श्री वृषभ नाथ ;इक्ष्वाकुवंशद

वर्तमान ग्राम रुनकता: पुरातत्व नाम ‘रेणूकूट’

रुनकता पूर्व नाम रेणूकूट क्योंकि इस पावन भूमि पर भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले महर्षि परशुराम की माता और ऋषि जमदग्नि का आश्रम हुआ करता था। महर्षि परशुराम का जन्म भी यही हुआ था अतः इस स्थान को ‘रेणूकूट’ कहा जाता है अब नाम का अपभ्रंश होकर इसका नाम ‘रुनकता’ हो गया है।  यह पावन स्थल आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर आगरा शहर से लगभग 15.16 किलोमीटर मार्ग के दिल्ली जाते समय दांयीं हाथ पर लगभग 5-6 किलामीटर अन्दर यमुना नदी के किनारे पड़ता है। यहाँ पर महर्षि परशुराम माता रेणूकूट और ऋषि जमदग्नि आश्रम के साथ कामधेनू गाय और कुबेर की प्रतिमाऐं लगी है। मूर्तियों को देखकर ऐसा लगता है कि किसी ने बहुत पहले किसी ने इन पर रंग कर दिया है। इसलिए इनकी प्राचीनता प्रायः समाप्त ही हो गयी है। लेकिन अन्य किसी आधार पर यह मूर्तियाँ ईसा पूर्व की हो आश्चर्य नहीं होगा।  मंदिर के बाहर एक पत्थर का टूटा हुआ खम्बा लगा हैं, इस खम्बे पर उत्कृष्ट वास्तुकला का नमूना पेश करती मूर्तियां बनी हुई है। सामने ही छोटी-सी वाराह अथवा नंदी गाय की मूर्ति स्थापित है पत्थर के खम्बे के बारे में अनुमान है कि यह खम्बा 8वीं अथवा 9वीं सदी

जगनेर का ऐतिहासिक किला-

राजस्थान सीमा से लगा आगरा जनपद का सीमावर्ती कस्बा आगरा से कागारौल के रास्ते में तांतपुर जाने वाली सड़क पर लगभग 36 मील दूर ‘आल्ह खंड’ रचयिता राजा जगन सिंह का नाम पर जगनेर बसा है। किले के भग्नावेष की प्रथम दृष्टि डालते ही ऐसा लगता है कि यह किला अपने अन्दर कोई बड़ा इतिहास छुपाये बैठा है कि कोई आये और इस किले के ऐतिहासिक और वीरता से भरा इतिहास की खोज करें क्योंकि किले की सुनियोजित वास्तु-प्रणाली कर दिग्दर्शन से ऐसा लगता है कि महोबा नरेश आल्हा-ऊदल के मामा राजा राव जयपाल ने 10वीं शताब्दी में इसे बहुत ही सुरुचिपूर्ण ढंग से बनवाया था। लाल पत्थर की शिला पर उत्कीर्ण है कि इसे जागन पंवार ने बनवाया था। इसकी पुष्टि कर्निघंम की पुस्तक पूर्वी राजस्थान के यात्रा वृत्त से होती है। इस किले की संरचना चित्तौड़ के किले के समान है। पश्चिम छोर से पहाड़ी पर चढ़ा जा सकता है जहाँ एक बावड़ी भी है। अन्य दिशाओं से बगम्य प्रतीत होता है। जगनेर बस्ती की ओर से लम्बी घुमावदार पत्थर की अनगढ़ सीढि़यों की श्रृंखला प्रतीत होती है। किले में एक जाग मन्दिर है जो जहाँ राजस्थान के भाट-चारण परम्परा का जाग जाति की बहुल्यता का

आगरा जनपद के स्थान व नामों में छिपा इतिहास एवं कुछ प्राचीन स्थल -

लेखक डा0 श्रीभगवान शर्मा ने जनपद आगरा में इतिहास के सूत्र से अवगत् कराया है। डा0 शर्मा के अनुसार कौल (शाक्त मतालम्बी), यक्ष, जर, रुद्र, पांडव, मदल आदि सूत्र है जिनके आधार पर आगरा के प्राचीन इतिहास को क्रमबद्ध किया जा सकता है। आगरा जनपद में बसे कुछ मौहल्ले और गाँवों के नाम पुरातात्विक दर्शन देते है। जैसे- कौलक्खा, जखौदा, जारौली, रुद्रमौलि, पीनाक हाट (पिनाहट), मदन(मैन)पुर, स्थान के नामों में कौल, यक्ष जर, रुद्र, पीनाक(धनुष), मदन, पूर्व पद है और रक्षा, अवसथ, अवलि, मौलि, हाट, पुर पर पद है। इन स्थान नामों के आधार पर इतिहास के प्रमाण मिल सकते है। राजा भोज, श्रृंगि ऋषि, यमदग्नि-रेणुका, पांडव, सिकन्दर, बाबर, हुमाऊँ, अकबर, शाहजहाँ, भदावर, सिन्धिया, जाट, कछवाये, गुर्जर, प्रतिहार, राजा मानसिंह, राजा जयसिंह, आर्मिनियाई आदि राजा-महाराजाओं, बादशाहों एवं शासकों ने भी इस क्षेत्र के स्थान-नामों को आधार प्रदान किये। सदरवन भी महाभारत कालीन स्थान नाम है। श्रृंगी ऋषि के नाम पर सींगना ग्राम तथा यमदग्निकी पत्नी एवं महर्षि परशुराम की माता रेणुका के नाम पर बसे रुनकता पूर्व नाम रेणुकूट आदि आदि नाम अपने गर्

भारत गणराज्यः संविधान समिति एक परिचय

जैसाकि सभी जानते है कि हमारा देश भारत 15 अगस्त 1946 को ब्रिटिश क्राउन की परतंत्रता से आजाद हुआ चूंकि आजादी के समय हमारे देश का कोई अपना संविधान नहीं था। अतः ब्रिटिश शासन की ओर से उनका ;अनुभवीद्ध प्रशासक को देश का बतौर राष्ट्रपति, गर्वनर जनरल के नाम से लाॅर्ड माउंट बेटन जो ब्रिटिश शासन के अंतिम वाॅयसराय थे को नियुक्त किया गया। साथ ही तत्कालीन शासकों ने यह निर्णय भी लिया कि भारत का संविधान लिखने और लागू होने तक भारत के राष्ट्रपति के रुप में लाॅर्ड माउंट बेटन गर्वनर जनरल के नाम से सत्ता को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करेंगे और किसी भी प्रकार की विपत्ति में मार्गदर्शन के रुप में सलाह देते रहेंगेे। संविधान सभा का गठनः आजादी के पश्चात देश में एक संविधान सभा का गठन किया गया जिसके बारे में मैं अपने अध्ययन के अनुसार आपको परिचित करवाने का प्रयास कर रहा हूं। देश की आजादी के समय हमारे देश में राज्य व्यवस्था तो थी परन्तु राज्य के अतिरिक्त प्रांत रियासतें आदि भी संचालित थी। यह भी बताना आवश्यक है कि उस समय हमारे देश में वह राज्य नहीं थे जो आज विद्यमान हैं। अतः संविधान सभा में देशभर का प्रतिनिधित्

क्या उ0 प्र0 औद्योगिक नीति-2012 में प्रदेश के पंरपरागत उद्योग शमिल हैं?

प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सत्ता आरुढ़ होते ही प्रदेश के औद्योगिक विकास पर ध्यान केन्द्रीत करते हुए प्रदेश के उद्योग पिछड़ेपन को दूर करने के लिए औद्योगिक नीति-2012 की घोषणा कर इस ओर सार्थक प्रयास शुरु कर दिये। बधाई के पात्र हैं।  हम यहां पर घोषित औद्योगिक नीति का विरोध तो नहीं कर रहे परन्तु एक प्रश्न पूछना चाहते हैं कि क्या घोषित औद्योगिक नीति में प्रदेश के परंपरागत उद्योग के विकास, विपणन ;डंतामजपदहद्धऔर विकास को शामिल किया है?  क्योंकि किसी भी प्रदेश में परंपरागत उद्योगों को संरक्षण देना उस प्रदेश की विकास की सीढ़ी होती है। अब आप कहेंगे कि क्या हैं प्रदेश के परंपरागत उद्योग तो आपको बताएं कि आगरा के जरदोजी, बुलन्दशहर जनपद के गुलावटी की रात को प्रयोग में आने वाली ओढ़नी, प्रतापगढ़ के आंवला सेे बने विभिन्न पौष्टिक खाद्य पदार्थ, सुल्तानपुर की ;खटाई के लिएद्ध बान, हाथरस की हींग, संभल में बनने वाले जानवर के सींग व हड्डियों के बने आइटम जैसे बटन आदि, बुलन्दशहर के हैंडपंप, अलीगढ़ के ताले ;जो कि अब अपनी पहचान खोते जा रहे हैंद्ध रामपुर की चाकू- छुरियां, झांसी के बीड्स के ह

गौरवशाली रहा है अग्रवालों का इतिहास

आगरा और अग्रवालों का प्राचीन इतिहास गौरवाशाली रहा है। आगरा और अग्रवालों के आपसी संबन्ध का यदि इतिहास के संबन्ध में गौर करें तो आज भी यह तथ्य मिलता है कि अग्रवाल अर्थात आगरा$वाला अर्थात ‘अग्रवाल’। अग्रवाल नाम अग्रकुल प्रवर्तक महाराजा अग्रसेन से जुड़ा है। इस संबन्ध में मैं अपने कथन का बल देना चाहता हूं कि भारत में प्राचीन काल से ही यह परम्परा रही है कि व्यक्ति व परिवार के कुल का नाम उसके निवास स्थान के नाम से प्रचलित हुआ करता था जैसे एक सिक्ख संत हुए हैं जिनका नाम ‘लोंगोवाल’ था अर्थात वह पंजाब के ‘लोंगोंवाल’ ग्राम के रहने वाले थे, ऐसे ही लोहिया जाति का नाम भी आपने सुन रखा होगा हरियाणा में ‘लौहू’ गांव है वहां के निवास ‘लोहिया कहलाए। इसी प्रकार आगरा के रहने वाले ‘अग्रवाल’ कहलाते हैं। यदि हम सरकारी गजटों में व विभिन्न इतिहासकारों तथा भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण के द्वारा जारी आगरा के परिचय संबन्धी पुस्तकों का अध्ययन करें तो आगरा शहर को स्थापित हुए लगभग 5200 वर्ष से भी अधिक हो चुके हैं। महाभारत काल में आगरा को शूरसेन प्रदेश कहा जाता था। प्रदेश सरकार द्वारा 1965 में प्रकाशित आगरा गजेटीयर

भगवान कृष्ण: एक दूरदर्शी योजनाकार

भगवान कृष्ण को हम अनेकों नाम जैसे कुंजबिहारी, छलिया, मधुसूदन, कन्हैया आदि नाम से पुकारते हंै। भगवान कृष्ण को योगीराज भी कहा जाता है। मेरे विचार से संभवतः बहुत ही कम लोगों ने ही विचार किया कि कृष्ण को योगीराज क्यों कहा जाता है जिन्होंने विचार भी किया लेकिन उन भक्तों ने उनकी लीला का महत्व बताते हुए योगीराज की व्याख्या लीलाधर से कर दी।  हमारे पुराण व ग्रन्थों के अनुसार त्रिदेव ;ब्रह्मा, विष्णु व महेशद्ध में से एक भगवान विष्णु के अठारहवें अवतार भगवान कृष्ण हुए हैं। जिनके बारे में कहा गया है कि भगवान कृष्ण में ही 16 गुण हुए हैं बाकी किसी अवतार में नहीं। इसी प्रकार एक अन्य अवतार भगवान राम के बारेे में कहा जाता है कि उनमें 14 गुण ही थे अतः उनको ‘पुरुषों में उत्तम’ पुरुषोत्तम श्री राम कहा गया। ऐसे ही महात्मा बु(, महर्षि परशुराम, प्रथम तीर्थकंर )षभदेव जी, यहां तक कृष्ण अग्रज बलराम में भी 4 गुण बताए हैं। इस तथ्य पर आप प्रश्न करेंगे कि दोनों 2 गुण कौन से थे जो राम को प्राप्त नहीं हो सके जो कि कृष्ण के पास थे, उनके 2 गुणों के बारे में कहा जाता है कि वह थे चोरी-व्याभिचार और छल-कपट। इसका अर्थ य

हमारा संविधान तो 1950 में लागू हुआ लेकिन.......!

क्या पुराने कानून से भ्रष्टाचार तो नही पनप रहा है? जब 1947 में जब हमारा देश आजाद हुआ तब आजाद देश को एक अपने संविधान की आवश्यकता थी, तत्कालीन गर्वनर जनरल राजागोपाचार्य और तत्कालीन प्रधानमंत्री प0 जवाहर लाल नेहरू ने अपने सहयोगियों से विचार विमर्श कर एक संविधान सभा का गठन कर देश के लिए नये संविधान की रचना की जिम्मेदारी दी गयी। इस समिति ने देश के लिए नया संविधान लिखा या पुराने संविधान को नया स्वरूप देकर 26 जनवरी 1950 को लागू करने की संस्तुति कर दी। आज हम देशवासी अपने देश के संविधान लागू होने वाले दिवस 26 जनवरी 1950  को गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाते हैं।  प्रश्न उठता है कि 26 जनवरी 1950 को जिस संविधान का उदय हुआ, क्या वह संविधान नये सिरे से लिखा गया या पुराने अंग्रजों के समय के संविधान को नया रूप देकर देश में लागू कर दिया गया। यदि उत्तर आता है कि संविधान सभा ने देश के लिए नया संविधान की रचना की। हमें स्वीकार करने में थोड़ा ही नहीं वरन् बहुत ही हिचक हो रही है, कारण भी है ना! अरे! हमारा भी प्रश्न है कि जो संविधान 26 जनवरी 1950 देश में लागू हुआ उसमें आजादी से पूर