सरकार व्यापारियों का भी डाटा तैयार करे!


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगभग सभी क्षेत्र में डाटा अपडेट करने के लिए तत्पर नजर आ रहे हैं। इस पर हमारा सुझाव है कि देश के व्यापारियों एवं करदाताओं का भी ‘डाटा’ तैयार होना चाहिए। तैयार किये जाने वाले डाटा में व्यापारी से संबन्धित सही जानकारी एकत्र किये जाना चाहिए जिसमें व्यापार से संबन्धित परेशानियां, विभागीय उत्पीड़न, कर्ज, लागत, लाभ आदि का भी डाटा तैयार कराना चाहिए, ताकि व्यापारी को भी उसके संकट आने पर सरकार की ओर से मदद अथवा सहयोग मिल सके।
देखने में यह आता है कि प्राकृतिक आपदा हो जाने पर किसानों को फसलों में होने वाले नुकसान की भरपायी सरकार द्वारा की जाती है और इसके लिए परम हितैषी राजनीतिक दलों द्वारा राजनीति शुरु हो जाती है। परन्तु देश के व्यापारियों जो करदाता है जिसकी संख्या मात्र 3 से 4 प्रतिशत ही है, की किसी को कोई चिंता कभी नहीं रही बल्कि उनसे विभिन्न करों के नाम वसूली होने लगती है। क्या कभी किसी सरकार ने यह आंकड़े एकत्र किये हैं कि कौन से प्रदेश में कितने उद्यमी, व्यापारियों ने कर्ज के चलते आत्महत्या की? क्या कोई व्यापारी व्यापारिक संकट के चलते कितनी गंभीर बीमारी को शिकार हो रहा है, कितनी ऐसी संख्या है कि अपने परिवार को कैसे पाल रहे हैं? कैसे समाज के अन्य वर्ग को रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं। कैसी राजनीति है कि सरकार उद्योगों के विकास के लिए कोई योजना लागू करें तो सरकार उद्योगपतियों की कहलाने लगती है परन्तु इन राजनीतिक दलों ने कभी यह सोचा है कि किसानों प अन्य वर्ग को दिये जाने वाला मुआवजा अथवा अन्य सहायता राशि सरकार के पास देने के लिए कहां से एकत्र होती है?
विरोध दल आजकल यह आरोप लगा रहे हैं कि सरकार उद्योगपतियों की है, उनको संरक्षण देने के लिए काले कानून लाने मंे भी संकोच नहीं कर रही है, अभी हाल ही में समाजसेवी अन्ना हजारे ने भी दिल्ली के रामलीला मैदान पर धरना-प्रदर्शन किया। संभवतः यह राजनीतिक दल यह भूल जाते हैं कि उनके द्वारा चलायी जा रही ‘तुष्टीकरण युक्त योजनाओं’ के लिए राजस्व कहां से आता है और कौन देता है। पता नहीं क्यों देश के उद्योग-धंधों को फला-फूलने के विरोध होता है और चुनाव में चंदे की उम्मीद भी इन्हीं से की जाती है!!!

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