वर्तमान ग्राम रुनकता: पुरातत्व नाम ‘रेणूकूट’

रुनकता पूर्व नाम रेणूकूट क्योंकि इस पावन भूमि पर भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले महर्षि परशुराम की माता और ऋषि जमदग्नि का आश्रम हुआ करता था। महर्षि परशुराम का जन्म भी यही हुआ था अतः इस स्थान को ‘रेणूकूट’ कहा जाता है अब नाम का अपभ्रंश होकर इसका नाम ‘रुनकता’ हो गया है। 
यह पावन स्थल आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर आगरा शहर से लगभग 15.16 किलोमीटर मार्ग के दिल्ली जाते समय दांयीं हाथ पर लगभग 5-6 किलामीटर अन्दर यमुना नदी के किनारे पड़ता है। यहाँ पर महर्षि परशुराम माता रेणूकूट और ऋषि जमदग्नि आश्रम के साथ कामधेनू गाय और कुबेर की प्रतिमाऐं लगी है। मूर्तियों को देखकर ऐसा लगता है कि किसी ने बहुत पहले किसी ने इन पर रंग कर दिया है। इसलिए इनकी प्राचीनता प्रायः समाप्त ही हो गयी है। लेकिन अन्य किसी आधार पर यह मूर्तियाँ ईसा पूर्व की हो आश्चर्य नहीं होगा। 
मंदिर के बाहर एक पत्थर का टूटा हुआ खम्बा लगा हैं, इस खम्बे पर उत्कृष्ट वास्तुकला का नमूना पेश करती मूर्तियां बनी हुई है। सामने ही छोटी-सी वाराह अथवा नंदी गाय की मूर्ति स्थापित है पत्थर के खम्बे के बारे में अनुमान है कि यह खम्बा 8वीं अथवा 9वीं सदी के होगें। लेकिन नंदी गाय के बारे बिना प्रमाण के कुछ कहना उचित नहीं होगा। 
पौराणिक तथ्यों के आधार सुख सागर के सातवें स्ंकध के पन्द्रवें अध्याय में बताया गया है कि राजा पुरुरवा के उर्वशी से छह पुत्र उत्पन्न हुए। उसके वंश में जहनुमा नाम के महात्मा हुए थे। राजा जहनु के वंश में गाधि नाम का प्रतापी राजा हुआ। जिसके सत्यवती नामक कन्या उत्पन्न हुई। अत्यवती अत्यन्त ही रुपवती एवं बुद्धिमान कन्या थी। गाधि से ऋाचीक ऋषि ने सत्यवती से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। गाधि ने विवाह के लिए एक हजार श्यामवर्ण घोड़ों की मांग रखी। ऋाचीक ऋषि ने वरुण देवता से ऐसे हजार घोड़ो लाकर मांग पूरी की और सत्यवती से विवाह किया। ऋषि का पराक्रम और तेज देखकर गाधि की स्त्री ने अपने दामाद से कहा - कोई ऐसा उपाय बताओ, जिससे मेरे पुत्र हो। उधर ऋषि पत्नी ने भी पुत्र की इच्छा व्यक्त की, ऋषि ने एक पिण्डी ;चरुद्ध अपनी पत्नी स्त्री को दी और दूसरी अपनी सास को खाने के लिए दी। सास ने पिंडी बदलकर अपनी वाली बेटी को खिला दी। ऋषि यह बात जान गये। उन्हांेने अपनी पत्नी को यह बताया कि यह चूक हो जाने से तेरा पुत्र महाबली और क्रोधी होगा, लेकिन तेरा भाई बड़ा धर्मात्म एवं ब्रह्मज्ञानी होगा।
सत्यवती ने पति से प्रार्थना की कि उसका पुत्र क्रोधी न हो। ऋषि ने फिर कहा कि तेरा तो धर्मात्मा, ज्ञानी होगा लेकिन तेरा पौत्र महाबली क्रोधी होगा। इस प्रकार सत्यवती के पुत्र जमदग्नि बड़े महात्मा ऋषि हुए और उनके पुत्र जिनकी पत्नी रेणूका थी । रेणूका के चार पुत्र हुए जिनमें सबसे छोटे पुत्र परशुराम थे जोकि अत्यन्त ही क्रोधी परन्तु पराक्रमी थे।
जमदग्नि और माता रेणूका मन्दिर के पश्चिम में ही भगवान परशुराम का मंदिर है इस मंदिर की उत्तर दिशा वाली प्राचीन दीवार से यमुना जी लहरें टकराती रहती है। 1978 की बढ़ में यमुना का पानी मन्दिर में प्रवेश कर गया। मंदिर के पिछवाड़े पौराणिक दृष्टि से एक बहुत ही महत्वपूर्ण है लेकिन सरकारी उपेक्षा का शिकार है। जिस पर कुछ आश्रम बने हुए है जब मैं इस स्थल पर गया तो मुझे एहसास हुआ कि इसी पहाड़ी स्थान पर ही आश्रम होना चाहिए क्यांेकि इस स्थल पर जाने पर कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था।

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