जगनेर का ऐतिहासिक किला-

राजस्थान सीमा से लगा आगरा जनपद का सीमावर्ती कस्बा आगरा से कागारौल के रास्ते में तांतपुर जाने वाली सड़क पर लगभग 36 मील दूर ‘आल्ह खंड’ रचयिता राजा जगन सिंह का नाम पर जगनेर बसा है। किले के भग्नावेष की प्रथम दृष्टि डालते ही ऐसा लगता है कि यह किला अपने अन्दर कोई बड़ा इतिहास छुपाये बैठा है कि कोई आये और इस किले के ऐतिहासिक और वीरता से भरा इतिहास की खोज करें क्योंकि किले की सुनियोजित वास्तु-प्रणाली कर दिग्दर्शन से ऐसा लगता है कि महोबा नरेश आल्हा-ऊदल के मामा राजा राव जयपाल ने 10वीं शताब्दी में इसे बहुत ही सुरुचिपूर्ण ढंग से बनवाया था। लाल पत्थर की शिला पर उत्कीर्ण है कि इसे जागन पंवार ने बनवाया था। इसकी पुष्टि कर्निघंम की पुस्तक पूर्वी राजस्थान के यात्रा वृत्त से होती है। इस किले की संरचना चित्तौड़ के किले के समान है। पश्चिम छोर से पहाड़ी पर चढ़ा जा सकता है जहाँ एक बावड़ी भी है। अन्य दिशाओं से बगम्य प्रतीत होता है। जगनेर बस्ती की ओर से लम्बी घुमावदार पत्थर की अनगढ़ सीढि़यों की श्रृंखला प्रतीत होती है। किले में एक जाग मन्दिर है जो जहाँ राजस्थान के भाट-चारण परम्परा का जाग जाति की बहुल्यता का बोध कराती है। हिन्दू भवन निर्माण शैली की विशेषताओं से युक्त इस किले में मन्दिर के अतिरिक्त शासकीय आवास, सैन्य गृह एवं सैन्य सामग्री प्रकोष्ठ के भग्नावेष है।
जब देश में राजपूत शासकों के छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों का अभ्युदय हुआ था इससे पूर्व यदु जन-जाति के वंशजों के अधीन था। यदु राज्य कभी स्वतंत्र और कभी केन्द्रीय सत्ता के अधीन रहे। राजपूत शासकों के समय जगनेर परमारों और चंदेलों के अधिकार में था। किन्तु जगनेर के स्वतंत्र शासक बैनीसिंह ने पृथ्वीनाथ चैहान निरन्तर युद्ध किया।  ‘आगरा गजेटियर’ के अनुसार जगनेर को पहले इस क्षेत्र को ऊँचाखेड़ा कहते थें। कर्नल टाॅड के अनुसार ‘नेर’ का अर्थ है चारों ओर से प्राचीरबद्ध नगर जैसे बीकानेर, सांगानेर, चंपानेर, अजमेर, बाड़मेर अत्यंत संरक्षितनगर थे और जिन्हें बाद में किले का स्वरुप प्रदान किया। गुर्जर प्रतिहारों के पतन के पश्चात् परमारों और चन्देलों का अभ्युदय हुआ। उनकी शक्ति प्रतिदिन बढ़ती गयी। निरन्तर युद्ध और प्रतिस्पर्धा का शिकार जगनेर का किला भी बना रहा। मेवाड़ के शासकों ने परमार को पराजित कर बिजौली की ओर खदेड़ कर उनके द्वारा पुनः अधिकार करने का प्रयास किया। कुतुबद्दिन ऐबक और इल्तुमिश ने राजस्थान पर विजय कर जगनेर के शासक को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। किन्तु यहाँ के वीर राजपूत अपनी अस्मिता के लिए निरन्तर युद्धरत् रहे। 1510 ई0 में इसे मुगलों ने जीत कर अकबर ने जगनेर के दुर्ग पर मुस्लिम सूबेदार नियुक्त किया। जिसके द्वारा इस किले में ‘लाल पत्थर का मेहराबदार द्वार’ बनवाया। किले में उत्कीर्ण एक लेख से ज्ञात होता है कि अकबर ने राजस्थान विजय के लिए केन्द्र जगनेर को ही बनाया। यहाँ पर्याप्त मात्रा में अस्त्र-शस्त्र सैनिक एवं खाद्य सामग्री रखी जाती थी। मुगल साम्राज्य के पश्चात जगनेर के दुर्ग ने जाट, मराठे और अग्रेजों का सत्ता-सघर्ष देखा। 
इस किले में प्रतिवर्ष ग्वाल बाबा का मेला लगता है किले में ग्वाल बाबा की छतरी भी है।

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