जी.एस.टी.ः मिसमैच ने मिसमैच करवा दी
वैसे तो प्रतिवर्ष आयकर रिटर्न को दाखिल करने की अंतिम तिथि आती है और चली जाती है। लेकिन इस वर्ष की टैक्स आॅडिट की रिटर्न में विशेषकर अधिवक्ताओं को परेशान कर दिया। या यह कहें कि बहुत भारी टेंशन में गुजरी।
अभी 31 अक्टूबर 2019 को टैक्स आयकर रिटर्न की अंतिम तिथि थी, वैसे तो इस रिटर्न के लिए अंतिम तिथि कानून 30 सितम्बर रहती है लेकिन सरकार की मेहरबानी से एक माह बढ़ा दी गई थी।
एक बात का अनुभव हो रहा है कि 2014 में जब हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री ने देश की बागडोर सम्भाली, तब से देश के करदाताओं की संख्या में प्रतिवर्ष उल्लेखनीय वृ(ि हो रही है लेकिन इस वृ(ि के साथ करदाताओं के साथ अधिवक्ताओं की टेंशन में भी उल्लेखनीय वृ(ि दिखायी दे रही है। यह वृ(ि टैक्स बेस के बढ़ने के साथ कर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रणाली में सुधार के कारण ही बढ़ोतरी देखी गई।
क्योंकि 2014 में आम जनता और ऐसे परिवारों को बैंकों की ओर आकर्षित करने के लिए जनधन खाते खोले गये, कालेधन पर लगाम लगाने के लिए नोटबंदी और 2017 में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली जी.एस.टी. का लागू हो जाना सुधारात्मक कदम कहे जा सकते हैं।
लेकिन यह देखने में यह आ रहा है कि कर सुधार के प्रयासों में सरकार की अपेक्षा करदाताओं से अधिक है जबकि सरकारी तंत्र अपनी जिम्मेदारी को ठीक ढंग से निभाने में असफल दिखायी दे रहा है। जिसका परिणाम सामने आ रहा है कि करदाताओं में भारी असंतोष फैल हो रहा है।
बात करें आयकर रिटर्न की तो आयकर में करदाता को दायित्व बनता है कि भुगतान करने वाला, भुगतान प्राप्त करने की राशि में से टी.डी.एस. काटकर भुगतान करें और उस राशि में काटा गया टी.डी.एस. को सरकारी कोष में निर्धारित समयावधि मे जमा कराये। जमा टी.डी.एस. करदाता के फाॅर्म-26एएस में दिखायी देता है। चलो करदाता ने टी.डी.एस.काट जमा करवा दिया लेकिन क्या वह समय से फाॅर्म-26एएस में दिखायी दिया, क्योंकि इस फाॅर्म को अपडेट करने की जिम्मेदारी केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के निर्देशन में काम करने वाली संस्था सी.पी.सी. की बनती है, अब प्रश्न उठता है कि जब तक टी.डी.एस. प्राप्तकत्र्ता के खाते में जमा नहीं हो जाती तब तक प्राप्तकत्र्ता करदाता को उसका लाभ नहीं मिलेगा, उधर जमा कराने वाले को भी नहीं। यह रहा सरकारी जिम्मेदारी का नमूना।
दूसरा उदाहरण लें तो अब आयकर रिटर्न में करदाता को जी.एस.टी. में दाखिल खरीद-बिक्री को आने-पाई से आयकर रिटर्न में दर्शाना है। चूंकि जी.एस.टी. को संचालित करने वाला पोर्टल जीएसटीएन देवता अपनी सेवाएं देने में असमर्थ पा रहे हंै। दुखःद स्थिति यह है कि जी.एस.टी. लागू हुए 28 माह व्यतीत हो चुके हैं लेकिन ‘जीएसटीएन देवता’ अपने कत्र्तव्यों को पूरा करने में विफल साबित हो रहे हैं।
जब देश में जीएसटी लागू हुआ तो बताया जा रहा था कि जीएसटी एक्ट में सारे काम जीएसटीएन पोर्टल पर होगा। तैयार किये गये जीएसटीएन पोर्टल पर व्यापारी को आउटवर्ड सप्लाई ;आपूर्तिद्ध को निर्धारितप्रारुप जीएसटीआर-1 में प्रति माह अपलोड करनी है। जोकि जीएसटीआर-2 में प्रदर्शित होगी। अब जीएसटीआर-2 में अपलोड आपूर्ति बिलों की वेरीफाई इनवर्ड सप्लाई प्राप्तकत्र्ता को करनी होगी, यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद जीएसटीआर-3 में पोर्टल यदि टैक्स बनता है,या कोई आई.टी.सी. है, स्वतः ही टैक्स की गणना करते हुए चालान बनाकर दे देगा। लेकिन अफसोस है कि 28 माह बाद भी आज तक हमारे जीएसटीएन देवता करदाता को सुविधा प्रदान करने का मूड नहीं बना पाये।
अब बात करें टैक्स आॅडिट रिटर्न की तो जब तक खरीद-बिक्री के बिलों के बीच ‘मिसमैच’ बनी हुई है तो करदाता किस आधार पर अपना ‘टैक्स आॅडिट रिटर्न’ दाखिल करें। स्थिति यह आ गई कि करदाता के दोनों तरफ कुआं और खाई उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। क्योंकि यदि मिसमैच को अनदेखा करते हुए उपलब्ध आंकड़े टैक्स आॅडिट रिटर्न में अपलोड कर दें तो आयकर विभाग कार्यवाही करेगा, और उधर राज्य/केन्द्र कर विभाग में दाखिल रिटर्न में अनदेखा कर दिया तो जीएसटी में बेदर्दी के साथ पेनल्टी और दंडात्मक कार्यवाही करने को तैयार बैठा है। ऐसी स्थिति में तो करदाता की स्थिति बेचारे की क्या हालत हो चुकी है।
‘कर जानकारी’ और देश के अधिवक्ता लगातार माननीय वित्त मंत्री महोदया के साथ जीएसटी परिषद एवं सक्षम मंच पर लगातार ट्वीट कर अनुरोध कर रहे हैं कि जीएसटीएन में सुधार लायें लेकिन कोई सुनने वाला नहीं।
अभी 31 अक्टूबर निकली है टैक्स आॅडिट रिटर्न की तो अब 30 नवम्बर आ रही है जीएसटी के वार्षिक रिटर्न जीएसटीआर-9, 9आर और 9ए की। तो मिसमैच की स्थिति में कैसे रिटर्न दाखिल करें। फिर वहीं स्थिति कि आर-9 दाखिल करें तो नोटिस और पेनल्टी कार्यवाही और दाखिल नहीं करते हैं तो वही नोटिस और पेनल्टी।
हमारी राय में सरकार को एक निर्णय ले लेना चाहिए कि सभी टैक्स स्लैब को स्थगित कर दे और करदाता पर प्रतिदिन के हिसाब से ‘पेनल्टी’ आरोपित कर देनी चाहिए। क्योंकि हम समझते हैं कि पेनल्टी के मद में राजस्व अधिक मिल जाएगा। उधर आम जनता को टैक्स स्लैब हटने से राहत मिलेगी। करदाता की क्या है, उसको टैक्स भरना ही है चाहे वह टैक्स के शक्ल में हो या पेनल्टी के शक्ल में।
कुल मिलाकर यह देखने में आ रहा है कि सरकार हमेशा ही करदाता से अपेक्षा करती है कि वह अपने दायित्वों का निर्बहन समय पर करें वह भी पूरी दक्षता के साथ लेकिन उसके पक्ष के दायित्व को समय पर पूरा करना है या नहीं, उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं!! क्योंकि हमारे देश में ऐसा कोई एक्ट या अधिनियम नहीं बना है जिसमें यह जिम्मेदारी बनी हो कि कोई सरकारी विभाग या अधिकारी/कर्मी अपने दायित्यों को समयब(ता में पूर्ण नहीं करते हैं तो यह कार्यवाही होगी हां, करदाता, आम जनता की जिम्मेदारी प्रत्येक एक्ट में बना दी गई है।
यदि आप मेरी भावनाओं से सहमत हैं तो समर्थन करें और आवाज उठायें अन्यथा मामला जैसा चल रहा है, चलने दें।
अभी 31 अक्टूबर 2019 को टैक्स आयकर रिटर्न की अंतिम तिथि थी, वैसे तो इस रिटर्न के लिए अंतिम तिथि कानून 30 सितम्बर रहती है लेकिन सरकार की मेहरबानी से एक माह बढ़ा दी गई थी।
एक बात का अनुभव हो रहा है कि 2014 में जब हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री ने देश की बागडोर सम्भाली, तब से देश के करदाताओं की संख्या में प्रतिवर्ष उल्लेखनीय वृ(ि हो रही है लेकिन इस वृ(ि के साथ करदाताओं के साथ अधिवक्ताओं की टेंशन में भी उल्लेखनीय वृ(ि दिखायी दे रही है। यह वृ(ि टैक्स बेस के बढ़ने के साथ कर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रणाली में सुधार के कारण ही बढ़ोतरी देखी गई।
क्योंकि 2014 में आम जनता और ऐसे परिवारों को बैंकों की ओर आकर्षित करने के लिए जनधन खाते खोले गये, कालेधन पर लगाम लगाने के लिए नोटबंदी और 2017 में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली जी.एस.टी. का लागू हो जाना सुधारात्मक कदम कहे जा सकते हैं।
लेकिन यह देखने में यह आ रहा है कि कर सुधार के प्रयासों में सरकार की अपेक्षा करदाताओं से अधिक है जबकि सरकारी तंत्र अपनी जिम्मेदारी को ठीक ढंग से निभाने में असफल दिखायी दे रहा है। जिसका परिणाम सामने आ रहा है कि करदाताओं में भारी असंतोष फैल हो रहा है।
बात करें आयकर रिटर्न की तो आयकर में करदाता को दायित्व बनता है कि भुगतान करने वाला, भुगतान प्राप्त करने की राशि में से टी.डी.एस. काटकर भुगतान करें और उस राशि में काटा गया टी.डी.एस. को सरकारी कोष में निर्धारित समयावधि मे जमा कराये। जमा टी.डी.एस. करदाता के फाॅर्म-26एएस में दिखायी देता है। चलो करदाता ने टी.डी.एस.काट जमा करवा दिया लेकिन क्या वह समय से फाॅर्म-26एएस में दिखायी दिया, क्योंकि इस फाॅर्म को अपडेट करने की जिम्मेदारी केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के निर्देशन में काम करने वाली संस्था सी.पी.सी. की बनती है, अब प्रश्न उठता है कि जब तक टी.डी.एस. प्राप्तकत्र्ता के खाते में जमा नहीं हो जाती तब तक प्राप्तकत्र्ता करदाता को उसका लाभ नहीं मिलेगा, उधर जमा कराने वाले को भी नहीं। यह रहा सरकारी जिम्मेदारी का नमूना।
दूसरा उदाहरण लें तो अब आयकर रिटर्न में करदाता को जी.एस.टी. में दाखिल खरीद-बिक्री को आने-पाई से आयकर रिटर्न में दर्शाना है। चूंकि जी.एस.टी. को संचालित करने वाला पोर्टल जीएसटीएन देवता अपनी सेवाएं देने में असमर्थ पा रहे हंै। दुखःद स्थिति यह है कि जी.एस.टी. लागू हुए 28 माह व्यतीत हो चुके हैं लेकिन ‘जीएसटीएन देवता’ अपने कत्र्तव्यों को पूरा करने में विफल साबित हो रहे हैं।
जब देश में जीएसटी लागू हुआ तो बताया जा रहा था कि जीएसटी एक्ट में सारे काम जीएसटीएन पोर्टल पर होगा। तैयार किये गये जीएसटीएन पोर्टल पर व्यापारी को आउटवर्ड सप्लाई ;आपूर्तिद्ध को निर्धारितप्रारुप जीएसटीआर-1 में प्रति माह अपलोड करनी है। जोकि जीएसटीआर-2 में प्रदर्शित होगी। अब जीएसटीआर-2 में अपलोड आपूर्ति बिलों की वेरीफाई इनवर्ड सप्लाई प्राप्तकत्र्ता को करनी होगी, यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद जीएसटीआर-3 में पोर्टल यदि टैक्स बनता है,या कोई आई.टी.सी. है, स्वतः ही टैक्स की गणना करते हुए चालान बनाकर दे देगा। लेकिन अफसोस है कि 28 माह बाद भी आज तक हमारे जीएसटीएन देवता करदाता को सुविधा प्रदान करने का मूड नहीं बना पाये।
अब बात करें टैक्स आॅडिट रिटर्न की तो जब तक खरीद-बिक्री के बिलों के बीच ‘मिसमैच’ बनी हुई है तो करदाता किस आधार पर अपना ‘टैक्स आॅडिट रिटर्न’ दाखिल करें। स्थिति यह आ गई कि करदाता के दोनों तरफ कुआं और खाई उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। क्योंकि यदि मिसमैच को अनदेखा करते हुए उपलब्ध आंकड़े टैक्स आॅडिट रिटर्न में अपलोड कर दें तो आयकर विभाग कार्यवाही करेगा, और उधर राज्य/केन्द्र कर विभाग में दाखिल रिटर्न में अनदेखा कर दिया तो जीएसटी में बेदर्दी के साथ पेनल्टी और दंडात्मक कार्यवाही करने को तैयार बैठा है। ऐसी स्थिति में तो करदाता की स्थिति बेचारे की क्या हालत हो चुकी है।
‘कर जानकारी’ और देश के अधिवक्ता लगातार माननीय वित्त मंत्री महोदया के साथ जीएसटी परिषद एवं सक्षम मंच पर लगातार ट्वीट कर अनुरोध कर रहे हैं कि जीएसटीएन में सुधार लायें लेकिन कोई सुनने वाला नहीं।
अभी 31 अक्टूबर निकली है टैक्स आॅडिट रिटर्न की तो अब 30 नवम्बर आ रही है जीएसटी के वार्षिक रिटर्न जीएसटीआर-9, 9आर और 9ए की। तो मिसमैच की स्थिति में कैसे रिटर्न दाखिल करें। फिर वहीं स्थिति कि आर-9 दाखिल करें तो नोटिस और पेनल्टी कार्यवाही और दाखिल नहीं करते हैं तो वही नोटिस और पेनल्टी।
हमारी राय में सरकार को एक निर्णय ले लेना चाहिए कि सभी टैक्स स्लैब को स्थगित कर दे और करदाता पर प्रतिदिन के हिसाब से ‘पेनल्टी’ आरोपित कर देनी चाहिए। क्योंकि हम समझते हैं कि पेनल्टी के मद में राजस्व अधिक मिल जाएगा। उधर आम जनता को टैक्स स्लैब हटने से राहत मिलेगी। करदाता की क्या है, उसको टैक्स भरना ही है चाहे वह टैक्स के शक्ल में हो या पेनल्टी के शक्ल में।
कुल मिलाकर यह देखने में आ रहा है कि सरकार हमेशा ही करदाता से अपेक्षा करती है कि वह अपने दायित्वों का निर्बहन समय पर करें वह भी पूरी दक्षता के साथ लेकिन उसके पक्ष के दायित्व को समय पर पूरा करना है या नहीं, उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं!! क्योंकि हमारे देश में ऐसा कोई एक्ट या अधिनियम नहीं बना है जिसमें यह जिम्मेदारी बनी हो कि कोई सरकारी विभाग या अधिकारी/कर्मी अपने दायित्यों को समयब(ता में पूर्ण नहीं करते हैं तो यह कार्यवाही होगी हां, करदाता, आम जनता की जिम्मेदारी प्रत्येक एक्ट में बना दी गई है।
यदि आप मेरी भावनाओं से सहमत हैं तो समर्थन करें और आवाज उठायें अन्यथा मामला जैसा चल रहा है, चलने दें।
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