लाॅकडाउन के बाद बदलेगी भारत के उद्योगों की तस्वीर

  आज आगरा के बड़े निर्यातक अशोक जैन ओसवाल ने गु्रप में वीडियो भेजी। जिसमें डाॅ. उज्जवल पाटनी ने भारत के औद्योगिक सेक्टर पर अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए भारत के उद्योग के बारे में काफी बताया। लेकिन कुछ बिन्दुओं पर मैं डाॅ. पाटनी से सहमत नहीं हो पाया। अतः हमको कोरोना के बाद भारत की औद्योगिक स्थिति पर चर्चा कर लेनी चाहिए। इस चर्चा के लिए हम चलना होगा भारत के 1990 के बाद के कार्यकाल पर। 21 जून 1991 को प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंम्हवा राव का कार्यकाल प्रारम्भ हुआ, प्रधानमंत्री राव के कार्यकाल में भारत में होने वाले उत्पादन क्षेत्र मंे लागू लाइसेंसिंग प्रणाली के पूरी तरह से समाप्त कर भारत के उद्योगों को नई दिशा प्रदान की। तत्पश्चात अटल बिहारी बाजपेयी ने प्रधानमंत्री का पदभार मई 1996 में संभाला। बाजपेयी देश के उद्योगों में नये सेक्टरों के द्वार खोल दिये जिसमें मुख्यतः आई.टी., बैंकिंग और इश्योरेंस क्षेत्र के साथ सिक्यूरिर्टी गार्ड उद्योग को भारत के पटल पर प्रस्तुत किया। इसके साथ ही देश में निजीकरण के दौर शुरु हो गया। इस नये प्रयोग के साथ देश में औद्योगिक क्रांति आगाज तो हुआ ही और देश के राजस्व में उल्लेखनीय बढ़ोतरी अंकित की गई। निजी क्षेत्र में उत्पाद बढ़ने के साथ भारत के उद्योगों को विश्वस्तर पर पहचान दिलवा दी। विदेशों आयात होने वाला बहुत सा माल का निर्माण देश में ही शुरु हो गया। लेकिन इस वैश्वीकरण के दौर में कुछ उद्योग ऐसे भी स्थापित हो गये जो कि जो कि सामाजिक मानक के अनुरुप नहीं रहे परन्तु प्रचार की आपाधापी में बाजार को गिरफ्त में ले लिए। जिसके चलते देश के नागरिकों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ा। इसके पीछे कारण यह भी था कि विश्व स्तर पर मानकों को स्थापित नहीं किया जा सका तो भारत में कैसे होता? अतः कुछ नये उत्पादों ने देश के नागरिकों के स्वास्थ्य को नुकसान तो पहंुचाया। लेकिन कोरोना के लाॅकडाउन के आमजन भागमभाग से मुक्त होकर बैठी तो सोचने-विचारने की फुर्सत मिली, अब ऐसे विषय आमचर्चा में आ चुके हैं। अब यह संभावना प्रबल होती जा रही है कि कोरोना के बाद भारत में स्थापित उद्योग नये सिरे से उभरेंगे जिसमें परन्तु प्रश्न यही है कि कितने उद्योग पुनः खड़े होंगे और कितने उद्योग भारी मंदी की चपेट में आएंगे, अभी वास्तविक आंकलन करना मुश्किल है, फिलहाल जिन अर्थशास्त्रियों एवं विशेषज्ञों की रिपोर्टस प्रकाशित हो रही है, वह अनुमान हैं अथवा कितनी सत्य साबित होंगी, कहा नहीं जा सकता । लेकिन मैं माननीय राष्ट्रपति द्वारा दिये साक्षात्कार का उल्लेख अवश्य करना चाहूंगा, उन्होंने कहा कि लाॅकडाउन के बाद देश में आर्थिक वैश्वीकरण का दौर आ जाएगा। अतः देश के औद्योगिक स्थिति पर बिन्दुवार चर्चा करना जरुरी हो जाता है। 
सबसे पहले बात करें पयर्टन , होटल और टैैक्सी उद्योग की। 2019 का आंकड़ा कहता है कि भारत में यह सेक्टर का व्यापार 10.89 बिलीयन अमेरिकी डाॅलर का व्यापार रहा था, लेकिन कोरोना के बाद पयर्टन, होटल और टैैक्सी उद्योग में भारी गिरावट दर्ज की जाएगी। क्योंकि लोग कम से कम तीन साल अब बिना कारण के घूमने जाने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे। चाहे वह धार्मिक पयर्टन हो या अन्य, लोगों में होटल में रुकने और सार्वजनिक वाहनों में घूमने से बचेंगे। ऐसे में होटल, टैैक्सी और पयर्टन उद्योग में भारी मंदी से प्रभावित रहेगी और स्टाॅफ की मांग में कमी के कारण बेरोजगारी भी बढ़ेगी। यहां तक की लोग विदेश यात्रा से से भी बचेंगेे, अतः देश का हवाई कम्पनियां बंदी के कगार पर न आ जाएं।
बात करें, फूड, केटरिंग, मिठाई और रेस्टोरेट के साथ टेन्ट उद्योग की। तो भारत में शादी-विवाह की पार्टी का आयोजन काफी बड़े स्तर पर होता है, या यह कहें कि खानपान में भारत की अपनी शान है। इसी शान-शौकत के कारण पिछले 20 सालों में केटरिंग उद्योग उभर कर सामने आया और सरकार को राजस्व के साथ भारी संख्या में रोजगार भी दिया और विभिन्न प्रकार के व्यजंनों की मांग भी बढ़ी। प्राप्त आंकड़ों पर नजर डालें तो 2019 में इस सेक्टर का व्यापार 4,23 हजार करोड़ रुपये के लगभग का आंकलन किया गया। लेकिन अब कोरोना के चलते अब शादी-विवाहों के आयोजनों में एक सीमा में उपस्थिति होगी और व्यजंन भी, अतः केटरिंग और टेन्ट व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित होंगे। 
बात करें फाॅस्ट फूड एवं कन्फेक्नरी की तो युवा पीढ़ी, जो रोजगार के कारण बाहर शहरों में अकेले रहने के कारण कन्फेक्नरी और फाॅस्ट फूड पर निर्भर रहते थे और वहीं उनका प्रिय भोज्य बन गया था, उस पर काफी हद तक बंदिश लगेगी और मांग के साथ रोजगार पर भी प्रभाव पड़ेगा, इसके साथ मिठाई का कारोबार डायबिटीज के कारण प्रभावित हो गया था, अब लोग मिठाई या गरिष्ठ भोजन लेने से परहेज ही करेंगे। अतः यह उद्योग भी प्रभावित ही होगा। फर्नीचर, लेकिन होम डेकोरेशन उद्योग पर भी अधिक समय तक प्रभावित नहीं होगा, बल्कि एक साल तक तो प्रभावित होगा परन्तु अगले साल यानि 2021 के मध्यम तक सामान्य स्थिति में आ जाएगा, डेकोरेशन के मामले जैसे परदे, चादर जैसा वस्तुओं पर प्रभाव इसलिए नहीं पड़ेगा, क्योंकि महिलाएं मानना है कि ऐसी वस्तुओं में गंदगी और मौसम के प्रभाव कारण जल्दी गंदे हो जाते हैं अतः अधिक कीटाणु पनपने की संभावना रहती है और बार-बार धोना और सुखाना, इस उद्योग का प्रभावित नहीं कर पाएगा। उल्लेखनीय है कि 2019 में होम डेकोरेशन उद्योग का आंकड़ा 1,02,750 करोड़ रुपये के लगभग का योगदान रहा।
टैक्सटाइल्स एवं गारमंेट उद्योग ने 1995 के बाद देश में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। इससे पूर्व लोग कपड़ा लाकर दर्जी से कपड़े सिलवाना अधिक पसंद करते थे लेकिन अब रेडीमेड कपड़े पहनना पसंद करते हैं, कोरोना के बाद इस उद्योग पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, बल्कि शर्ट के साथ मैचिंग का माॅस्क उपलब्ध होना मार्केटिंग अधिक बढ़ावा देगी। इस उद्योग का व्यापार योगदान 10.89 मिलीयन अमेरिकी डाॅलर का योगदान रहा। टैक्सटाइल्स उद्योग का भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि स्थानीय बाजार के साथ भारी मात्रा में निर्यात भी होता है लेकिन निर्यात की स्थिति में अगले 3 वर्षो तक अच्छी नहीं रहेगी। प्राप्त आंकड़ों से ज्ञात होता है कि टेक्सटाइल्स उद्योग लगभग 150 बिलीयन अमेरिकी डाॅलर का रहा है
1995 के बाद भारत में आयी औद्योगिक क्रांति के कारण प्रदूषण, थकान और बे-हिसाब की भागम-भाग ने आमजन की स्वास्थ्य को प्रभावित कर दिया था, विश्व स्वास्थ्य संगटन की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक 8वां व्यक्ति मधुमेह, रक्तचााप जैसी बीमारी से पीड़ित है, फैल रहे प्रदूषण और अनियमित खानपान से जनता में कैंसर जैसी बीमारी से भी प्रभावित होने लगे, लेकिन लाॅकडाउन के दौरान लोगों में प्रदूषण के प्रति अधिक जागरुकता देखने में मिली, क्योंकि प्रदूषण नीचले स्तर पर पहंुच गया,  अब आम नागरिक ने महसूस करने लगा, यदि लाॅकडाउन खुलने के बाद भी ऐसी ही जागरुकता बनी रही तो दवाओं की मांग कम रहेगी, अन्यथा पूर्व की तरह भागम-भाग बनाये रखी तो दवा उद्योग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा बल्कि मांग अधिक बढ़ती ही जाएगी। लेकिन भारत में बनने वाली दवाओं की कोरोना जैसी बीमारियों में विश्व में अपना स्थान बनाया और चहन जैसे देश को पीछे पछाड़ने की तैयारी दिखायी देने लगी अतः विदेशों से निर्भरता समाप्त होगी और स्वदेशीकरण का दौर प्रारम्भ होगा अतः मंदी का मार को महसूस नहीं कर पाएंगे, बल्कि दवा क्षेत्र में उत्पादन के साथ रोजगार बढ़ेंगे।
बात करे ज्वैलरी, बुलियन उद्योग की, 2019-2023 के दौरान इसका बाजार आकार अमेरिकी डाॅलर 103.06 बिलियन तक बढ़ने की आशा है, 2019 के पहले नौ महीनों के दौरान 2018 में सोने की भारत में मांग 760.4 टन और 496.11 टन तक पहुंच गई। भारत का रत्न और आभूषण निर्यात वित्त वर्ष 2015 में 25.11 बिलियन अमेरिकी डाॅलर ;जनवरी 2020 तक, अंतिमद्ध रहा। इसी अवधि के दौरान, कट और पाॅलिश किए गए हीरे का निर्यात 16.32 बिलियन अमेरिकी डाॅलर रहा, जिससे कुल रत्नों और आभूषणों का निर्यात मूल्य में 73.42 प्रतिशत योगदान रहा। उल्लेखनीय है कि सोने के सिक्के और पदक का निर्यात अमेरिकी डाॅलर 814.33 मिलियन और सिल्वर ज्वैलरी का निर्यात वित्त वर्ष 2015 में 1.22 बिलियन अमेरिकी डाॅलर रहा। लेकिन मेरी राय में इस उद्योग पर खास प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि जब सोना 3000 तोला था तब जितनी डिमांड थी, परन्तु जब सोने का भाव 30000 तोला हो गयी तो डिमांड होने पर भी बढ़ती रही, घटी नहीं, आज सोने का भाव 42000 रुपये प्रति तौला चल रहा है लेकिन मांग में कमी नहीं आयी है। इसके पीछे कारण है भारत की जनता विशेषकर सोने में पैसा सुरक्षित रखने में ज्यादा स्वयं को सुरक्षित मानते हैं।जनता का मानना है कि सोने में लगाया गया धन संकट के समय पैसा सुगमता से मिल जाना भी सबसे बड़ा कारण सामने आता है। ध्यान देना होगा कि भारत में सोने की सबसे अधिक खरीदारी में महिलाओं का प्रतिशत अधिक रहता है। यह भी उल्लेखनीय है कि सोने के भाव में वृ(ि रुकेगी नहीं बल्कि और अधिक बढ़ेगी।
भारत का आॅटो उद्योग विश्व का सांतवा बड़े बढ़ते उद्योगों में शामिल है। 2018 में इस उद्योग में 3.99 मिलीयन व्यावसायिक वाहनों के निर्माण एवं विक्री में 8.30 प्रतिशत की वृ(ि दर्ज की गई। इस क्षेत्र में गिरावट की पूरी आशा की जा सकती है। क्योंकि लाॅकडाउन के दौरान सड़कों पर वाहनों की आवाजाही के रोक के कारण वातावरण शु( एवं प्रदूषणमुक्त हुआ, जिससे लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ। लोग बढ़ते प्रदूषण को लेकर चिंचित हो रहे हैं। निकट भविष्य में ई-वाहन बाजार मंे आ चुके हैं, उधर केन्द्र सरकार ई-वाहनों के प्रयोग एवं बिक्री को प्रोत्साहित कर रही है। वर्तमान में प्राप्त आंकड़ा बता रहा है कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री, ई-रिक्शा को छोड़कर, 2019-20 में 1.56 लाख इकाइयों तक पहुंचने के लिए 20 प्रतिशत की वृ(ि के साथ दोपहिया वाहनों द्वारा संचालित है। अतः यह निश्चित है कि बाजार में ई-वाहन का सुनहरा भविष्य नजर आ रहा है। जबकि पेट्रोलियम से चलने वाले आॅटो निर्माण में मंाग के गिरने से विपरित असर दिखायी देगा।
1996 के बाद देश में एक नये उद्योग का पदापर्ण हुआ। वह था ‘सिक्यूरिटी गार्ड उद्योग’ की। आपको ध्यान होगा कि 1996 से पूर्व किसी कोठी या बड़े आफिस के बाहर कोई गार्ड खड़ा होता था तक यह मान लिया जाता था कि बहुत बड़ा आदमी है लेकिन 1996 के बाद इस उद्योग को पंख लग गये और तेजी से बढ़ी और इस उद्योग के माध्यम से बड़ी मात्रा में रोजगार भी युवा वर्ग के साथ पूर्व सैनिकों को प्राप्त होने लगा। हाल के दिनों में, भारत ने निजी सुरक्षा एजेंसियों की वृ(ि को दोहरे अंक में कई कारकों के कारण देखा है। भारत में निजी सुरक्षा सेवाओं पर फिक्की-ग्रांट थाॅर्नटन की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में, भारतीय सुरक्षा सेवाओं के उद्योग में तेजी से बढ़ने की उम्मीद है, अगले कुछ वर्षों में 20 प्रतिशत की दर से और 2020 तक 800 बिलियन रुपये तक पहुंचने की आशा है। इसमें देश के दूसरे सबसे बड़े रोजगार सुजित और करों के माध्यम से सरकारी खजाने के लिए राजस्व का एक बड़ा स्रोत होने की क्षमता है।
2016 की नोटबंदी के बाद देश में डिजीटल मार्केट एक बहुत बड़ा मार्केट के बन चुका है। यदि इस बाजार का आंकड़ा देखें तो 2017 में 86.2 करोड़ रुपये का था, जबकि 2018 में बढ़कर 116.30 करोड़ रुपये का हो गया, इसी अनुपात में 2019 में 160 करोड़ रुपये तक बढ़ गया, इसी क्रम में 2020 के मार्च यानि 2019-20 की अंतिम तिमाही में 210 करोड़ रुपये तक पहंुच चुका है। अब आप अंदाजा लगाये कि जब प्रत्येक व्यक्ति कोरोना को लेकर सावधान रह रहा है, ऐसी वस्तु से बचना चाहता है, जिससे कोई संक्रमण न फैले, तो इसके लिए डिजीटल मार्केट बड़ा लाभ का मार्केट सि( होने वाला है।
भारत के उद्योगों के स्थिति को देखते हुए अभी कुछ भी संभावना व्यक्त करना कि जी.डी.पी. नीचे जाएगी, विकास दर घट जाएगा। लेकिन ऐसा आंकलन करना टेड़ी खीर ही साबित हो सकता है। हां, इसमें कोई शक या शंका नहीं होनी चाहिए कि 2020 एक ऐसा वर्ष सि( होगा, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था के साथ भारत के उद्योग पुरानी राह से अगल हटकर एक नया आयाम बना लेगा। जैसा कि केन्द्र सरकार का प्रयास है 2025 तक भारत की अर्थव्यवस्था 5 ट्रिटियन डाॅलर की हो जाएगी, उसमें अभी विश्वास के साथ कहना मुश्किल होगा, कोई संदेह नहीं व्यक्त कर सकता। फिलहाल देश में अर्थशास्त्रिओं का क्या मत होगा अथवा रिपोर्ट होगी, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था को नये चश्में से जरुरत अवश्य होगी।
पराग सिंहल
(लेखक कर जानकारी टैक्स पत्रिका के प्रबंध संपादक एवं एसोसिएशन आॅफ टैक्स पेयर्स एंड प्रोफेशनल्स के महासचिव है)        लेख में उल्लेख किये आंकड़े गूगल से साभार

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