पार्टी (सांसदों) में आक्रमक राजनीति का अभाव
गत 26 मई 2014 को हमारे प्रिय नरेन्द्र भाई द्वारा प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के बाद देशहित में अनेक निर्णय लिए। जिसमें महत्वूर्ण निर्णय था ‘भूमि अधिग्रहण बिल’ का था। जिसको राज्यसभा में पूर्ण बहुमत न होने के कारण पारित नहीं करवा सके, उधर विपक्ष के पास कोई मुद्दा न होने के कारण उन्होंने ‘भूमि अधिग्रहण बिल’ को मुद्दा बनाकर पूरे देश में हो-हल्ला मचा दिया। जिस पर भाजपा के कर्णदारों, जिसमें सांसद भी शामिल हैं, कोई आक्रमक रुख नहीं अपना पाए जिसके कारण विपक्ष हावी हुआ, जबकि वास्तविकता यह रही कि बरसात के कारण किसानों की आपदा में यह मुद्दा जुड़ गया और विपक्ष अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाया हां, वह भाजपा की कमजोरी को पकड़ कर अन्य महत्वपूर्ण बिल ‘जीएसटी’ को राज्यसभा की प्रवर समिति के पास भेजने में सफल हो गया, जिसके कारण जीएसटी के लागू होने का समय बढ़ गया।
देखने में आ रहा है कि 2014 के लोकसभा के चुनाव में अधिकतर लोकसभा के प्रत्याक्षी सांसद का चुनाव जीत गए परन्तु उनके अंदर उतनी योग्यता दिखायी नहीं पड़ रही है। एक समय वह भी था कि जब मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने में भाजपा की ओर से स्वर्गीय प्रमोद महाजन अपनी आक्रमक शैली से सत्ता पक्ष की धज्जियां उड़ाते हुए भाजपा का मजबूत पक्ष रखते थे उनके पश्चात उनकी रिक्तता को भरने मंे कोई भी सक्षम नहीं हो पाया और 2012 के आसपास नरेन्द्र भाई मोदी ने राष्ट्रीय राजनीति में पदापर्ण किया, हां! उनका स्थान ही नहीं लिया वरन् राजनीति की दिशा और विषय ही बदल दी लेकिन दुर्भाग्य रहा कि उनकी टीम ;सांसदद्ध उनको उनकी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार सहयोग नहीं दे पा रही है, यह मेरा आरोप नहीं है वरन् सत्यता है। अभी राज्य सभा में पार्टी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है, परन्तु शीघ्र ही यह कमी भी ूपरी हो जाएगी, राज्यसभा में रिक्त होने वाले स्थानों पर अभी से बहुत से उम्मीदवार पंक्तिब( है।
2015 में बिहार के और 2017 में उत्तर प्रदेशः पार्टी की स्थितिः
आपका एक बिन्दु पर ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा कि अभी 2015 में बिहार के और 2017 में उत्तर प्रदेश होने हैं जिसमें आप एवं पार्टी का पूरा प्रयास है कि दोनों राज्यों में पूर्ण बहुमत के साथ सत्तारुढ़ हो परन्तु क्या यह संभव हो पाएगा??
आपका ध्यान अभी हाल ही में एनडीटीवी के एक सर्वे पर आकृष्ट करना चाहूंगा जिसमें उत्तर प्रदेश की स्थिति पर सर्वे कराया है, इस सर्वे में प्रदेश के आगामी चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 250-290 सीट को मिलना बताया गया है जबकि भाजपा 80-110, सपा 50-100। मान भी लें कि यह सर्वे तर्कसंगत एवं ईमानदारी के नहीं है परन्तु स्थानीय एलआईयू रिपोर्ट क्या कह रही है। इस बिन्दु पर विचार करना ही होगा। मैं अपने विचार को ऐसे ही नहीं कह रहा हूं कि गत 2012 के चुनाव से पूर्व मेरी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री प्रभात झा से फोन पर वार्ता हुई थी जिसमें मुझसे पार्टी की स्थिति जानी थी, तब भी मैंने स्पष्ट कहा था कि पार्टी तीसरे आ रही है, और वहीं हुआ। क्योंकि मेरा यह मानना है कि राजनीति में अति-विश्वास विपरीत ही बैठ जाता है। जैसा कि दिल्ली विधानसभा में हुआ। जबकि यह सत्य है कि दिल्ली चुनाव में भाजपा की हार के कारणों में महत्वपूर्ण तथ्य कुछ और भी थे, जिसमें दो मुख्य कारण थे कि किरण बेदी को नेता चुनना और पूरे विपक्ष का गैरभाजपावाद विषय पर एक हो जाना। ;सर्वे का फोटो सलंग्न है।द्ध
अतः मेरा आपको सुझाव है कि पार्टी की नीति में व्यापक बदलाव करना समय की मांग है जिससे केन्द्र के साथ देश के दो महत्वपूर्ण राज्य बिहार एवं उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ़ हो सके। क्यांेकि इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि प्रधानमंत्री के द्वारा चलायी जा रही विकास की योजनाओं का सफलता का मार्ग इन राज्यों से होकर ही गुजरता है।
दूसरा राज्यसभा में चुने जाने वाले सदस्य केवल सदस्य ही नहीं हो बल्कि आक्रमक शैली अपनाने वाले हों ताकि विपक्ष के प्रहारों को हल्का कर सकें। मैं यह भी जानता हूं कि आपने और नरेन्द्र भाई मोदी ने सत्ता तक तो पहंुचा दिया लेकिन उसको बनाए रखने की जिम्मेदारी प्रत्येक सदस्य, विधायक एवं सांसद की है।
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