बुलन्दशहर बनाम बरन: प्राचीन परिचय

देश की राजधानी दिल्ली के नजदीक उत्तर प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक शहर बुलन्दशहर बसा हुआ है, जहां भारतीय अतीत से जुड़े कई साक्ष्यों को देखा जा सकता है। इस शहर का इतिहास 1200 वर्ष पुराना कहा जाता है, तब इसे ‘बरन’ के नाम से जाना जाता था। यहां अहिबरन नाम के एक शासक ने ‘बरन’ नाम का किला बनाया था, जिसके बाद उसने अपनी राजधानी ‘बरन शहर’ के नाम से यहीं स्थाापित की। बाद में इस शहर का नाम बदलकर बुलन्दशहर हो गया। लेकिन इतिहासकार अभी तक ऐसा कोई साक्ष्य नहीं ढूंढ पा रहे हैं कि ‘बरन शहर’ का नाम बदलकर ‘बुलन्दशहर’ क्यों और कैसे हो गया और किस शासनकाल के दौरान हुआ। जबकि कुछ इतिहासकारों का मत है कि ‘बरन शहर’ को ‘बरन सिटी’ कहा जाता था अतः बदलते हुए ‘बुलन्दशहर’ हो गया। लेकिन इस तर्क से सहमत नहीं हूं। इसके पीछे कई तर्क हो सकते हैं। एक तो ‘बरन’ और ‘बुलन्द’ शब्द में कोई समानता नहीं है। फिर सिटी शब्द अंग्रेजी वर्ण का है, जो कि ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों के आने के बाद ‘सिटी’ शब्द प्रचलन में आया।
हां, एक तर्क से मेरी सहमति हो सकती हैं। 1200 वर्ष पुराना किला जब मुगल और आक्रांताओं के आक्रमण के पश्चात बरन शहर बर्बाद हो गया। तो पुरान किला ढेर में परिवर्तित हो गया। समय बीतने के साथ ढेर पर नगर बसता गया। बसते-बसते घना आबादी के साथ शहर का रुप ले लिया तो अंग्रेजी शासन काल में किला के ऊपर बसावट होने के कारण पहले कस्बा फिर शहर कहा जाने लगा कि वह क्षेत्र अथवा शहर जो बुलन्दी पर स्थित है। हो सकता है कि इसी कारण से ‘बरन’ का नाम बुलन्दशहर हो गया हो। लेकिन भारत सरकार द्वारा प्रकाशित गजट में कहीं भी उल्लेख नहीं मिल रहा है।
बरन की राजवंश
ब्रिटिश शासक के दौरान भी अहिबरन की आगे की पीढ़ी ने भी यहां कई वर्षों तक राज किया। उन्ही में से एक राजा अनूप राय ने यहीं पास में अनूपशहर नाम के एक नगर की नींव रखी। धर्मिक ऐतिहासिक पर्यटन के लिहाज से यह छोटी काशी कहलाती है। पावन गंगा नहर के किनारे बसा है।
राजा अहिबरन ने बारां की नींव रखी। वह एक क्षत्रिय शासक था और माना जाता था कि वह सूर्यवंशी (यानी सूर्य देव का वंश) था। अहिबरन, अयोध्या के शासक समरथ मांधाता का 21वां वंशज था। महालक्ष्मी व्रत कथा के प्राचीन पाठ के अनुसार, राजा वल्लभ, सम्राट मंधाता वंश के वंशज अग्रसेन नाम का एक पुत्र था। राजा परमाल भी समरथ मांधा वंश के वंशज अहिवर्ण के पुत्र थे। अग्रसेन और अहिवरन दोनों ने अपने-अपने वंश या वंश की शुरुआत क्रमशः अग्रवाल ;या अग्रवालद्ध और वर्णवाल (या बरनवाल) के रुप में की।
इसके अलावा, ‘जाति भास्कर’ के अनुसार, भारतीय जाति व्यवस्था पर एक पुराना ग्रंथ समरथ मांधाता के दो बेटे थे राजा मोहन और राजा गुणी। राजा वल्लभ राजा मोहन के वंशज थे और राजा परमाल राजा गुणाढी के वंशज थे।
बरन-शहर के पतन के बाद बरनवाल समुदाय के लोग अपना राजा विहीन होने के कारण पूर्वी क्षेत्र की ओर भाग गए, और इस प्रक्रिया में भारत के गंगा के मैदानों के विभिन्न हिस्सों में बिखर गए। आज ‘बरनवाल’ जो पुराने ‘बरन’ के रहने वाले हैं, यह लोग आक्रमण के बाद भाग कर पूर्वी भारत के प्रदेश बिहार भागलपुर, पटना के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, बनारस, मिर्जापुर, गाजीपुर, बहराइच, जौनपुर, बलिया आदि जनपदों में बहुतायत मिलते हैं।
महाभारत कालः वत्स प्रदेश बनाम बरन शहर
महाभारत काल ;आज से 5400 वर्ष पूर्व यानि ईसा से 3400 वर्ष पूर्वद्ध खंड में उल्लेख आता है कि कौरव राजा दुर्योधन ने अपने परम मित्र ‘कर्ण’ को वत्स प्रदेश क्षेत्र का निर्माण कर इस प्रदेश का राजा घोषित किया था। आज भी बुलन्दशहर में ‘कर्णवास’ नामक स्थान पौराणिक महत्व के रुप स्थापित है। पौराणिक पुस्तकों में यह भी उल्लेख मिलता है कि कुरुक्षेत्र का यु( क्षेत्र काफी बड़ा था लेकिन मुख्य रणस्थल आज (हरियाणा का) कुरुक्षेत्र जनपद है, अंग्रेजी शासन काल के दौरान उत्खनन में ऊपर कोट क्षेत्र में उत्खनन में ऐसे अवशेष मिलते रहे हैं, जिससे संकेत मिलता है कि ‘बरन’ क्षेत्र भी महाभारत यु( क्षेत्र रहा है। अतः जैसा कि ऐतिहासिक तथ्य कहते हैं कि आज से 1200 वर्ष पूर्व राजा अहिवरन ने बरन शहर को बसाया, से सहमत नहीं हो पा रहा हंू, हां, यह माना जा सकता है कि इस क्षेत्र का पुर्नवास 1200 वर्ष पूर्व राजा अहिवरन ने पुनः किया हो। और ऊपरकोट में ढका किला को पुर्नस्थापित किया हो।
नाम बुलन्दशहर कैसे एवं क्यों?
इतिहासकार विजयेन्द्र कुमार माथुर ने लेख किया है कि....बरन ;।ैए च.608द्ध बुलंदशहर ;उत्तर प्रदेशद्ध का प्राचीन नाम है। लगभग 800 ई. में मेवाड़ से भाग कर आने वाले दोर राजपूतों की एक शाखा ने बरन पर अधिकार कर लिया था। उन्होंने 1018 ई. में आक्रमणकारी महमूद गजनवी का डटकर सामना किया। अपने पड़ोसी तोमर राजाओं से भी वे मोर्चा लेते रहे किंतु बड़गुजरों से, जो तोमरों के मित्र थे, उन्हें दबना पड़ा। 1193 ई. में कुतुबुद्दीन एबक ने उनकी शक्ति को पूरी तरह से कुचल दिया. फतूहाते फिरोजशाही का प्रख्यात लेखक बरनी र्;पंनकपद ठंतदपद्ध बरन का ही रहने वाला था जैसा कि उसके उपनाम से सूचित होता है। मुसलमानों के शासन काल में बरन उत्तर भारत का महत्वपूर्ण नगर था। वरण नामक एक नगर का बु(चरित 21,25 में उल्लेख है। संभवतः यह बरन का ही संस्कृत रुप है। लोक प्रवाद है कि इस नगर की स्थापना जनमेजय ने की थी (दे. ग्राउज, बुलंदशहर- कलकता रिव्यू- 1818)। जैन अभिलेख में इसे ‘उच्छ नगर’ कहा गया है (एपीग्राफिका इंडिका- जिल्द, पृ. 375) (दे. बुलंदशहर)
इतिहासकार विजयेन्द्र कुमार माथुर(खंड-11), ने लेख किया है कि ‘बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)’ (।ैए च.640) कालिंदी नदी के दक्षिणी तट पर है। अहार के तोमर सरदार परमाल ने इसे बसाया था। पहले यह स्थान ‘बनछटी’ कहलाता था। कालांतर में नागों के राज्य काल में इसका नाम अहिवरण भी रहा। पीछे इस नगर को ‘ऊंचनगर’ कहा जाने लगा क्योंकि यह एक ऊंचे टीले पर बसा हुआ था। मुसलमानों के ;पृ.641द्ध शासनकाल में इसी का पर्याय बुलंदशहर नाम प्रचलित कर दिया गया। यहां पर अलेक्षेंद्र (सिकन्दर) के सिक्के भी मिले थे। 400 से 800 ईस्वी तक बुलंदशहर क्षेत्र में कई बौ( बस्तियां थीं। 1018 ईस्वी में महमूद गजनवी ने यहाँ आक्रमण किया था, उस समय यहां का राजा हरदत्त हुआ करते थे।
वह यक्ष कंुड, जहां पर युधिष्ठर से यक्ष ने प्रश्न किये थे
महाभारत में एक जिक्र आता है कि राजा युधिष्ठर ने जंगल में जब भटक गए थे तो जंगल में घूमते हुए ण्क कुड मिला, वह उस कुंड से पानी पीने ही वाले थे तो कुंड का स्वामी एक यक्ष प्रकट हो गया और उसने राजा युधिष्ठर से पांच प्रश्न किये। यह किदवंती है। बुलन्दशहर के दक्षिण स्थित काली नदी के किनारे भूतेश्वर मंदिर प्राचील काल से स्थापित है। इस मंदिर की स्थापत्य देखने से स्पष्ट रुप से प्रतीत होता है कि प्राचीन काल से है। किदवंती यह भी है कि भगवान शिव का यह मंदिर महाभारत काल से है। यहां पर पूर्व की ओर शमशान घाट भी है। इस मंदिर के बगल में सटा हुआ एक कंुड है जिसके बारे मंे कहा जाता है कि यही कुंड वही है जहां पर राजा युधिष्ठर से यक्ष ने प्रश्न किये थे।
बुलंदशहर पर मुस्लिम आक्रमण
1192 ई. के दौरान, एक मध्य एशियाई शासक मोहम्मद गोरी ने भारत पर हमला किया। कुतुब-उद-दीन ऐबक, सैन्य कमांडर ने फोर्ट बार्न को घेर लिया और गद्दारों की सहायता से राजा चंद्रसेन डोर को मार दिया और अंततः बार्न साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। कुतुब-उद-दीन ऐबक ने बरन-सहर के लोगों को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया और विद्रोहियों की बेरहमी से हत्या कर दी गई, सिर काट दिया गया और उनका सिर किले की मीनारों पर लटका दिया गया।
बुलंदशहर में आजादी की जंग
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बुलन्दशहर के कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता संग्राम का पहला बिगुन बुलन्दशहर जिले के बहादुर राष्ट्रवादी ने लगाया था। बुलंदशहर जिले के दादरी और सिकंद्राबाद क्षेत्र से आने वाले गुर्जर के यो(ा कबीले ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और विभिन्न इमारतों जैसे टेलीग्राफ कार्यालय, निरीक्षण बंगलों को नष्ट कर दिया जो भारत में ब्रिटिश शासन का प्रतीक थे। इसके बाद, विभिन्न सरकारी संपत्तियों को लूट लिया गया और आग लगा दी गई। 10 मई 1857 को, 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पंडित नारायण शर्मा ने अलीगढ़ से बुलंदशहर तक संकल्प का संदेश दिया।
शहर में स्थित राजा राम चन्द्र जी का मंदिर
बुलन्दशहर के मुख्य बाजार के बीच में एक प्राचीन मंदिर राजा राम चन्द्र जी का है, इसके भवन का स्थापत्य प्राचीन कलात्मक रुप से आकर्षक है। कहा जाता है कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सेनानियों का केन्द्र हुआ करता था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इस मंदिर को अपना केन्द्र बना रखा था। कहा जाता है कि सेनानी अंग्रेजी शासन में इसी मंदिर मंे शरण लेते थे।
बुलंदशहर की बर्बादी
भटोरा, गालिबपुर, वीरपुर आदि स्थानों पर पाए जाने वाले प्राचीन खंडहर बुलन्दशहर की प्राचीनता के प्रतीक हैं। जिले में कई अन्य महत्वपूर्ण स्थान हैं जहाँ से मध्यकालीन युग की मूर्तियां और प्राचीन मंदिरों की वस्तुएं मिली हैं। आज भी लखनऊ राज्य संग्रहालय में कई ऐतिहासिक और पूर्वजों की वस्तुएं जैसे सिक्के, शिलालेख आदि संरक्षित हैं।
उत्तर प्रदेश का अनकहा इतिहास छुपा है बुलन्दशहर जनपद में
अहर
बुलन्दशहर से 52 किमी की दूरी पर स्थित अहर एक खूबसूरत स्थल है जहां आप बस या प्राइवेट कार से पहुंच सकते हैं। बुलन्दशहर जिले के अंतर्गत अहर एक छोटा सा नगर है जिसका इतिहास भी काफी साल पुराना है। यह नगर पवित्र गंगा नदी के किनारे बसा है। यहां का मुख्य आकर्षण भगवान शिव और देवी अवंतिका का मंदिर है। देवी अवंतिका के प्राचीन मंदिर के देखने के लिए पूरे भारतवर्ष से श्र(ालु और सैलानी आते हैं। नवरात्रि और शिवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का अच्छा-खासा जमावड़ा लगता है। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि इस शहर का इतिहास महाभारत काल से जुड़़ा है। भारतीय पौराणिक इतिहास से जुड़ी बातों को जानने के लिए आप इस शहर का भ्रमण कर सकते हैं।
अनूपशहर
बुलन्दशहर से 42 किमी की दूरी पर स्थित अनूपशहर भी एक ऐतिहासिक नगर है जिसकी स्थापना राजा अनूपराय ने 17वीं शताब्दी में की थी। यह नगर भी गंगा नदी के किनारे बसा है। यहां कार्तिक मेले के दौरान श्र(ालुओं की भारी भीड़ जमा होती है। यह एक वार्षिक मेला है जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं। पवित्र गंगा नदी के कारण इस नगर को छोटी काशी भी कहा जाता है। यहां भव्य गंगा आरती और पवित्र स्नान का भी आयोजन किया जाता है। इस शहर में कई छोटे-बड़े हिन्दू मंदिर स्थित हैं जिनके दर्शन आप बुलन्दशहर यात्रा के दौरान कर सकते हैं। एक दंतकथा के अनुसार अनूपराय ने कभी मुगल शासक जहांगीर को शेर के हमले से बचाया था, अनूपराय की इस बहादुरी को देखते हुए जहांगीर ने उन्हें यह स्थल भेंट में दिया था। जिसके बाद अनूपराय ने इस स्थान पर किले का निर्माण कर अनूपशहर में बदल दिया।
खुर्जा
मुख्य शहर बुलंदशहर से 17 किमी की दूरी पर स्थित खुर्जा उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक नगर है। यह नगर मुख्य तौर पर अपने उत्तम सिरेमिक उत्पादों के लिए जाना जाता है। यहां बनाएं जाने वाले मिट्टी के बर्तनों की पूरे विश्व भर में जाना जाता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि खुर्जा में लगभग 500 से ज्यादा मिट्टी के बर्तन और साज-सज्जा बनाने वाले कारखाने हैं। यह फैक्टरियां बुलन्दशहर के लोगों के लिए रोजगार का एक बड़ा केन्द्र हैं।
कर्णवास
बुलन्दशहर से आप प्राचीन स्थल कर्णवास की सैर का प्लान बना सकते हैं। इस स्थल का नाम महाभारत के सबसे वीर पात्र दानवीर कर्ण से लिया गया है। पौराणिक किवदंती के अनुसार दानवीर कर्ण हर रोज 50 किलो सोना दान में दिया करते थे। यहां स्थित प्राचीन कल्यादी देवी की मंदिर भी यहां का लोकप्रिय धार्मिक स्थान है। माता के दर्शन के लिए यहां दूर-दूर से श्र(ालु आते हैं। बुलन्दशहर से कर्णवास आप आॅटो रिक्शा के माध्यम से आसानी से पहुंच सकते हैं।
सिकंदराबाद
उपरोक्त स्थानों के अलावा आप बुलंदशहर से मात्र 18 किमी की दूरी पर स्थित सिकंदराबाद की सैर का प्लान बना सकते हैं। सिकंदराबाद एक प्राचीन नगर है जिसे कभी सिकंदर लोधी ने सन् 1498 में बसाया था। यहां कई ऐतिहासिक धरोहर मौजूद हैं जिनमें से आप चिश्ती साहब की स्मारक देख सकते है। आॅफ बिट पर्यटन के लिए यह स्थान काफी खास माना जाता है। यहां कई तरह के उद्योग-धंधों का काम किया जाता है। सीमेंट फैक्ट्री से लेकर, इलेक्ट्राॅनिक, टेक्सटाइल आदि के कारखाने यहां औद्योगिक संस्थान में उत्पाद कर रहे हैं। 

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