आगरा शहरः क्या प्रदूषणमुक्त हो पाएगा? एक यक्ष प्रश्न
आगरा शहर, एक प्राचीन नगरी, जिसने अनेक साम्राज्यों का सुख और दुख का अनुभव किया।कभी आवाद हुआ तो कभी बर्बाद हुआ। राजा आते रहे, लड़ाईयां होती रही आगरा चुपचाप सहता और देखता रहा । लेकिन आजादी के बाद आगरा शहर ने भी राहत की सांस लेते हुए आगरा को यह होने लगी कि अब अपने आजाद भारत में सरकार आगरा पर मेहरबान होगी, क्योंकि आगरा को गर्व था कि उसके पास सुन्दर और विश्व के अजूबे में शामिल ताज महल है, और साथ में सिकन्दरा, बुलन्द दरवाजा के साथ पौराणिक विरासत को समेटे शिव मंदिर हंै, समय बीतता गया, और सुन्दर और स्वच्छ आगरा की आशा जागने लगी, और तभी एक पर्यावरणविद संत (अधिवक्ता) आये, जिनका नाम है एम सी मेहता, ने ताज महल की सुंदरता की चिंता करते हुए उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका प्रस्तुत कर दी, तो जनसाधारण के साथ आगरा को यह आशा बंध लगने लगी कि अब आगरा के सुंदर,स्वच्छ और प्रदूषणमुक्त भविष्य के साथ सभी बुनियादी सुविधाओं से युक्त ‘नये आगरा’ की कहानी लिखी जाएगी, लेकिन दुर्भाग्य ही कहेंगे। हां इतना जरुर हुआ कि उच्चतम न्यायालय ने ताजमहल के संरक्षण और प्रदूषण मुक्त की चिंता करते हुए आगरा की जनता के साथ उद्योग समूह के लिए नया घातक संदेश दिया।
उच्चतम न्यायालय का जब निर्णय आया और बहुत से बदलाव और सुधार के निर्देश दिये। अब प्रश्न उठता है कि क्या न्यायालय के आदेश सार्थक हुए या नहीं और यह भी विचारणीय हैं कि आदेशों का पालन धरातल पर कितना हो पाया या हो रहा है। विचार यह भी करना होगा कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने ताज महल के आज आगरा को भी प्रदूषणमुक्त रखने के आदेश दिये। हां, माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालन में केन्द्र और राज्य सरकार ने कुछ कदम उठाये, आभार। सबसे पहले आगरा को प्रदूषणमुक्त रखने और संरक्षण के लिए ताज ट्रिपेजियम अथाॅरिटी के गठन के आदेश दिये, गठन हो भी गया। लेकिन वही यक्ष प्रश्न कि कितना कार्य हुआ हुआ और कितना प्रदूषणमुक्त हुआ और क्या में सुधार आया? हां अथाॅरिटी और प्रशासन की एक सोच जरुर बन गयी कि आगरा में चल रहे उद्योग और व्यापार के कारण आगरा में प्रदूषण फैल रहा है।
हां आगरा में मुगल काल से चल रही फांउड्री और अन्य उद्योग प्रदूषणकारी थे तो उनको उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत बंद कर दिये लेकिन क्या वाकयी बंद हुए या ऐसे उद्योग विकसित करने की नयी राह मिल गयी जो कि प्रदूषणरहित हो गये! हां उत्तर यही होगा कि प्रदूषण रहित होकर नये स्वरुप को प्राप्त कर लिया। लेकिन प्रश्न उठता है कि फिर आगरा प्रदूषणमुक्त क्यों नहीं हो रहा या क्यों नहीं हुआ?
प्रश्न यह भी उठता है कि क्या आगरा के उद्योग-व्यापार ही आगरा को प्रदूषणकारी फैला रहे हैं? यह एक यक्ष प्रश्न हमेशा से प्रशासन-शासन के साथ जनता के बीच बना रहता है। यह कहें कि एमसी मेहता बनाम यूनियन आॅफ इंडिया वाद के निर्णय के बाद आगरा और आगरा की जनता भयाक्रांत भी करता है। क्योंकि प्रदेश प्रशासन के साथ स्थानीय प्रशासन भी आगरा को प्रदूषणमुक्त करने की योजना तैयार करता है, माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता है, और आज्ञा प्राप्त कर लागू करता है। भारत सरकार ने भारत की शहरों को प्रदूषण की दृष्टि से विभिन्न योजनाएं बनाई और कैटेगरी भी। जिनमें व्हाइट कैटेगरी बनायी जिसके अन्तर्गत शहर में कोई भी उद्योग का विस्तार, नवीनीकरण के साथ नये उद्योग स्थापित करने पर रोक लगाता है।
आगरा को पिछले साल प्रदेश शासन ने व्हाइट कैटेगरी में शामिल करते हुए आगरा में उद्योग का विस्तार, नवीनीकरण के साथ नये उद्योग स्थापित करने पर ‘तदर्थ रोक’ लगा दी परन्तु यह आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया कि जब आगरा में माननीय उच्चतम न्यायालय की मंशा आौर आदेशों के अनुरुप योजना लागू कर दी तो तदर्थ रोक क्यों?
फिा एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या आगरा में केवल उद्योगों और व्यापारिक गतिविधियों के चलते ही ‘प्रदूषण’ फैल रहा है? इसका जवाब कोई नहीं दे रहा। जबकि देखा जाए कि आगरा में प्रदूषण फैलाने में किसका मुख्य कारक क्या है? इस पर विचार करना होगा। एक बंधी हुई सोच मंे सुधार करना होगा कि आगरा में प्रदूषण फैलाने के लिए केवल उद्योग-व्यापार जिम्मेवार हैं,या। क्योंकि यदि माननीय उच्चतम न्यायालय इस बारे मंे गहरी जांच करवा लें तो तथ्य कुछ और ही निकलेंगे। किसी भी शहर को प्रदूषण मुक्त बनाने और संुदर बनाने के लिए उस शहर का ‘बुनियादी ढांचे’ का समुचित विकास भी परम आवश्यक है।
आगरा की स्थिति यह यह है कि आगरा की कोई भी सड़क सही नहीं है बल्कि खस्ताहाल है। प्रत्येक सड़क, सड़क न होकर पगडंडी बन चुकी है। टूटी-फूटी सड़कों पर इस कदर धूल के गुब्बार उड़ते हैं कि धुंआ भी उसके आगे नतमस्तक हो जाता है। यदि विचार करें तो दिल्ली वाहनांे के चलते प्रदूषण ढका रहता है लेकिन आगरा में वाहनों का धुंआ कम अल्कि धूल के गुब्बार अधिक दिखायी देते हैं। जब 2014 में हमारे प्रधानमंत्री मोदी की मुख्य योजना ‘स्मार्ट सिटी योजना’ को आगरा को शामिल किया गया तो फिर से आशा बंध गई अब आगरा के लिए नया सबेरा होगा लेकिन दुःखद ही कहेंगे कि लगभग 4 साल व्यतीत होने आये स्मार्ट सिटी तो दूर अभी आगरा में कोई स्मार्टनैस दिखायी नहीं दे रही। हां, पर्यटन विशेष क्षेत्र फतेहाबाद रोड क्षेत्र में कुछ काम प्रारम्भ हुए लेकिन धन्य है वारिस का मौसम, जिसने वह प्रगति को धौ के रख दिया।
वास्तव में ऐसा लगने लगा है कि हमारे यहां योजना तो अच्छी बनती है लेकिन यह सोच कर बनती है कि ठोस काम न हो जाए अन्यथा भविष्य में कुछ करने का अवसर नहीं मिलेगा, इससे अच्छा है योजनाएं ऐसी बनाओ कि प्रत्येक वर्ष कुछ न कुछ करने की अवसर मिलता रहे। अब देखों अभी जुलाई से सितम्बर के माह में आगरा में अच्छी वारिस हुई परिणाम यह आगरा की आगरा की सड़के धुल गई, नहीं साहब गंदगी नहीं धुली बल्कि सड़क ही धुल गईं। इसके पीछे कारण यही समझ में आता है कि आगरा में प्रत्येक सड़क पर दोनों ओर पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है जिसके चलते वारिस का पानी या नालों का रुका पानी सड़क पर बहने लगता है और सड़क टूटने लगती है तो फिर स्थानीय निकाय विकास के नाम पर फिर सड़क का निर्माण करती है। जनता को लगने लगता है कि सरकारी मशीनरी खाली नहीं बैठती बल्कि कुछ न कुछ विकास कार्य कराती रहती है।
ताजमहल और यमुना जी, हां यमुना नदी हमारे समाज में बहुत ही पूज्य है। आपको याद होगा कि नागपंचमी के दिन प्रत्येक वर्ष यमुना पर मेला लगता था, हजारों की संख्या में नगर के लोग मेले में एकत्र होते थे, ऐसे ही दिवाली से पूर्व यम द्वितीय वाले दिन भाई-बहिन यमुना जी में स्नान करते पूण्य कमाते थे बहुत ही महत्व था इस स्नान का, लेकिन अब यमुना नदी न होकर केवल नाला का रुप धारण कर चुकी है तो कौन भला छू लेने की तो क्या स्नान करने हिम्मत करेगा? हां, ताजमहल के पीछे सदियों से बना काल भैरव की भूमि पर चल रहा शमशान घाट पर को हटाने के लिए हमारा न्यायालय तैयार है लेकिन यमुना जी को प्रदूषणमुक्त करने के लिए???
यह पता चलता है कि प्रशासन ने यमुना को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए उ0 प्र0 जल निगम को शहर के गंदे पानी को यमुना में मिलने से पूर्व स्वच्ठ करने के लिए ‘एस.टी.पी’ स्थापित करने का कार्य सौंपा था और यह भी पता चलता है यहां पर 20 एसटीपी लगाये गये, लेकिन कहां लगे यह तो निगम या प्रशासन ही बता पाएगा या फिर निगम। कि यमुना जी कस पानी कितना शु( हुआ?
यह भी सत्य है कि आज यमुना नदी नाले का क्या एक सीजनल नदी के स्वरुप धारण करते हुए भारी प्रदूषण कारी साबित हो रही है। लेकिन मुझे आश्चर्य है कि माननीय उच्चतम न्यायालय का इस पर कोई निर्देश नहीं आ रहा है। आपको याद होगा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने ताज महल के पीछे वातावरण को शु( करने और यमुना नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिऐ ‘ताज कोरिडोर’ की योजना बनाकर कार्य प्रारम्भ करवा दिया था। लेकिन माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पर तुरन्त रोक दिया गया। आश्चर्य होता है क्यों रोका गया? जबकि इतनी प्रदूषित यमुना नदी का स्वरुप का प्रश्न के साथ ताजमहल को सुरक्षित रखने में यमुना का बहुत बड़ा महत्व है। फिर रोक क्यों?
आज यमुना का बहता पानी ही इतना प्रदूषित हो चुका है कि यमुना के पास रहने पर ही शरीर में त्वचा रोग उत्पन्न हो जाएंगे, लेकिन कोई चिंता नहीं। फिर ताजमहल पर लगे पत्थरों को क्क्या होल हो रहा है कि समय-समय पर कीड़े-कीटाणु हमला करते रहते हैं और समाचार पत्रों की मुख्य हैडिंग बन जाते हैं, थोड़े दिन चिंता व्याप्त हो जाती है, जांच समिति बन जाती है फिर वहीं ढर्रा। क्या आपको पता है कि यमुना प्रदूषण मुक्त योजना के अन्तर्गत उ0 प्र0 जल निगम का एक विभाग काम कर रहा है जिसको विश्व बैंक से हजारों करोड़ रुपये कर्ज के रुप में ले चुका हैं, लेकिन आज तक किसी को दिखायी नहीं दिया कि कब और कैसे काम होता है प्रदूषणमुक्त करने के लिए, यही कहेंगे कि ‘सरकार की माया-सरकार ही जाने या जाने उसके कारिन्दे’।
मंै अपने इस लेख के माध्यम से पुनः माननीय उच्चतम न्यायालय से अपील करुंगा कि यदि ताजमहल को सुंदर और सुरक्षित रखना है तो ताजमहल के पीछे बह रही यमुना जी को साफ बनाना ही होगा। आपको बता देना चाहता हंू कि मैंने स्वयं ने 2018 में माननीय उच्चतम न्यायालय में एक पत्र भी भेजा था,जिसको संज्ञान में लिया या नहीं कोई समाचार नहीं मिला अर्थात पत्र के उत्तर में कोई सूचना नहीं है कि वह उस वाद में शामिल कर लिया है या नहीं।
उच्चतम न्यायालय का जब निर्णय आया और बहुत से बदलाव और सुधार के निर्देश दिये। अब प्रश्न उठता है कि क्या न्यायालय के आदेश सार्थक हुए या नहीं और यह भी विचारणीय हैं कि आदेशों का पालन धरातल पर कितना हो पाया या हो रहा है। विचार यह भी करना होगा कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने ताज महल के आज आगरा को भी प्रदूषणमुक्त रखने के आदेश दिये। हां, माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालन में केन्द्र और राज्य सरकार ने कुछ कदम उठाये, आभार। सबसे पहले आगरा को प्रदूषणमुक्त रखने और संरक्षण के लिए ताज ट्रिपेजियम अथाॅरिटी के गठन के आदेश दिये, गठन हो भी गया। लेकिन वही यक्ष प्रश्न कि कितना कार्य हुआ हुआ और कितना प्रदूषणमुक्त हुआ और क्या में सुधार आया? हां अथाॅरिटी और प्रशासन की एक सोच जरुर बन गयी कि आगरा में चल रहे उद्योग और व्यापार के कारण आगरा में प्रदूषण फैल रहा है।
हां आगरा में मुगल काल से चल रही फांउड्री और अन्य उद्योग प्रदूषणकारी थे तो उनको उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत बंद कर दिये लेकिन क्या वाकयी बंद हुए या ऐसे उद्योग विकसित करने की नयी राह मिल गयी जो कि प्रदूषणरहित हो गये! हां उत्तर यही होगा कि प्रदूषण रहित होकर नये स्वरुप को प्राप्त कर लिया। लेकिन प्रश्न उठता है कि फिर आगरा प्रदूषणमुक्त क्यों नहीं हो रहा या क्यों नहीं हुआ?
प्रश्न यह भी उठता है कि क्या आगरा के उद्योग-व्यापार ही आगरा को प्रदूषणकारी फैला रहे हैं? यह एक यक्ष प्रश्न हमेशा से प्रशासन-शासन के साथ जनता के बीच बना रहता है। यह कहें कि एमसी मेहता बनाम यूनियन आॅफ इंडिया वाद के निर्णय के बाद आगरा और आगरा की जनता भयाक्रांत भी करता है। क्योंकि प्रदेश प्रशासन के साथ स्थानीय प्रशासन भी आगरा को प्रदूषणमुक्त करने की योजना तैयार करता है, माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता है, और आज्ञा प्राप्त कर लागू करता है। भारत सरकार ने भारत की शहरों को प्रदूषण की दृष्टि से विभिन्न योजनाएं बनाई और कैटेगरी भी। जिनमें व्हाइट कैटेगरी बनायी जिसके अन्तर्गत शहर में कोई भी उद्योग का विस्तार, नवीनीकरण के साथ नये उद्योग स्थापित करने पर रोक लगाता है।
आगरा को पिछले साल प्रदेश शासन ने व्हाइट कैटेगरी में शामिल करते हुए आगरा में उद्योग का विस्तार, नवीनीकरण के साथ नये उद्योग स्थापित करने पर ‘तदर्थ रोक’ लगा दी परन्तु यह आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया कि जब आगरा में माननीय उच्चतम न्यायालय की मंशा आौर आदेशों के अनुरुप योजना लागू कर दी तो तदर्थ रोक क्यों?
फिा एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या आगरा में केवल उद्योगों और व्यापारिक गतिविधियों के चलते ही ‘प्रदूषण’ फैल रहा है? इसका जवाब कोई नहीं दे रहा। जबकि देखा जाए कि आगरा में प्रदूषण फैलाने में किसका मुख्य कारक क्या है? इस पर विचार करना होगा। एक बंधी हुई सोच मंे सुधार करना होगा कि आगरा में प्रदूषण फैलाने के लिए केवल उद्योग-व्यापार जिम्मेवार हैं,या। क्योंकि यदि माननीय उच्चतम न्यायालय इस बारे मंे गहरी जांच करवा लें तो तथ्य कुछ और ही निकलेंगे। किसी भी शहर को प्रदूषण मुक्त बनाने और संुदर बनाने के लिए उस शहर का ‘बुनियादी ढांचे’ का समुचित विकास भी परम आवश्यक है।
आगरा की स्थिति यह यह है कि आगरा की कोई भी सड़क सही नहीं है बल्कि खस्ताहाल है। प्रत्येक सड़क, सड़क न होकर पगडंडी बन चुकी है। टूटी-फूटी सड़कों पर इस कदर धूल के गुब्बार उड़ते हैं कि धुंआ भी उसके आगे नतमस्तक हो जाता है। यदि विचार करें तो दिल्ली वाहनांे के चलते प्रदूषण ढका रहता है लेकिन आगरा में वाहनों का धुंआ कम अल्कि धूल के गुब्बार अधिक दिखायी देते हैं। जब 2014 में हमारे प्रधानमंत्री मोदी की मुख्य योजना ‘स्मार्ट सिटी योजना’ को आगरा को शामिल किया गया तो फिर से आशा बंध गई अब आगरा के लिए नया सबेरा होगा लेकिन दुःखद ही कहेंगे कि लगभग 4 साल व्यतीत होने आये स्मार्ट सिटी तो दूर अभी आगरा में कोई स्मार्टनैस दिखायी नहीं दे रही। हां, पर्यटन विशेष क्षेत्र फतेहाबाद रोड क्षेत्र में कुछ काम प्रारम्भ हुए लेकिन धन्य है वारिस का मौसम, जिसने वह प्रगति को धौ के रख दिया।
वास्तव में ऐसा लगने लगा है कि हमारे यहां योजना तो अच्छी बनती है लेकिन यह सोच कर बनती है कि ठोस काम न हो जाए अन्यथा भविष्य में कुछ करने का अवसर नहीं मिलेगा, इससे अच्छा है योजनाएं ऐसी बनाओ कि प्रत्येक वर्ष कुछ न कुछ करने की अवसर मिलता रहे। अब देखों अभी जुलाई से सितम्बर के माह में आगरा में अच्छी वारिस हुई परिणाम यह आगरा की आगरा की सड़के धुल गई, नहीं साहब गंदगी नहीं धुली बल्कि सड़क ही धुल गईं। इसके पीछे कारण यही समझ में आता है कि आगरा में प्रत्येक सड़क पर दोनों ओर पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है जिसके चलते वारिस का पानी या नालों का रुका पानी सड़क पर बहने लगता है और सड़क टूटने लगती है तो फिर स्थानीय निकाय विकास के नाम पर फिर सड़क का निर्माण करती है। जनता को लगने लगता है कि सरकारी मशीनरी खाली नहीं बैठती बल्कि कुछ न कुछ विकास कार्य कराती रहती है।
ताजमहल और यमुना जी, हां यमुना नदी हमारे समाज में बहुत ही पूज्य है। आपको याद होगा कि नागपंचमी के दिन प्रत्येक वर्ष यमुना पर मेला लगता था, हजारों की संख्या में नगर के लोग मेले में एकत्र होते थे, ऐसे ही दिवाली से पूर्व यम द्वितीय वाले दिन भाई-बहिन यमुना जी में स्नान करते पूण्य कमाते थे बहुत ही महत्व था इस स्नान का, लेकिन अब यमुना नदी न होकर केवल नाला का रुप धारण कर चुकी है तो कौन भला छू लेने की तो क्या स्नान करने हिम्मत करेगा? हां, ताजमहल के पीछे सदियों से बना काल भैरव की भूमि पर चल रहा शमशान घाट पर को हटाने के लिए हमारा न्यायालय तैयार है लेकिन यमुना जी को प्रदूषणमुक्त करने के लिए???
यह पता चलता है कि प्रशासन ने यमुना को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए उ0 प्र0 जल निगम को शहर के गंदे पानी को यमुना में मिलने से पूर्व स्वच्ठ करने के लिए ‘एस.टी.पी’ स्थापित करने का कार्य सौंपा था और यह भी पता चलता है यहां पर 20 एसटीपी लगाये गये, लेकिन कहां लगे यह तो निगम या प्रशासन ही बता पाएगा या फिर निगम। कि यमुना जी कस पानी कितना शु( हुआ?
यह भी सत्य है कि आज यमुना नदी नाले का क्या एक सीजनल नदी के स्वरुप धारण करते हुए भारी प्रदूषण कारी साबित हो रही है। लेकिन मुझे आश्चर्य है कि माननीय उच्चतम न्यायालय का इस पर कोई निर्देश नहीं आ रहा है। आपको याद होगा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने ताज महल के पीछे वातावरण को शु( करने और यमुना नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिऐ ‘ताज कोरिडोर’ की योजना बनाकर कार्य प्रारम्भ करवा दिया था। लेकिन माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पर तुरन्त रोक दिया गया। आश्चर्य होता है क्यों रोका गया? जबकि इतनी प्रदूषित यमुना नदी का स्वरुप का प्रश्न के साथ ताजमहल को सुरक्षित रखने में यमुना का बहुत बड़ा महत्व है। फिर रोक क्यों?
आज यमुना का बहता पानी ही इतना प्रदूषित हो चुका है कि यमुना के पास रहने पर ही शरीर में त्वचा रोग उत्पन्न हो जाएंगे, लेकिन कोई चिंता नहीं। फिर ताजमहल पर लगे पत्थरों को क्क्या होल हो रहा है कि समय-समय पर कीड़े-कीटाणु हमला करते रहते हैं और समाचार पत्रों की मुख्य हैडिंग बन जाते हैं, थोड़े दिन चिंता व्याप्त हो जाती है, जांच समिति बन जाती है फिर वहीं ढर्रा। क्या आपको पता है कि यमुना प्रदूषण मुक्त योजना के अन्तर्गत उ0 प्र0 जल निगम का एक विभाग काम कर रहा है जिसको विश्व बैंक से हजारों करोड़ रुपये कर्ज के रुप में ले चुका हैं, लेकिन आज तक किसी को दिखायी नहीं दिया कि कब और कैसे काम होता है प्रदूषणमुक्त करने के लिए, यही कहेंगे कि ‘सरकार की माया-सरकार ही जाने या जाने उसके कारिन्दे’।
मंै अपने इस लेख के माध्यम से पुनः माननीय उच्चतम न्यायालय से अपील करुंगा कि यदि ताजमहल को सुंदर और सुरक्षित रखना है तो ताजमहल के पीछे बह रही यमुना जी को साफ बनाना ही होगा। आपको बता देना चाहता हंू कि मैंने स्वयं ने 2018 में माननीय उच्चतम न्यायालय में एक पत्र भी भेजा था,जिसको संज्ञान में लिया या नहीं कोई समाचार नहीं मिला अर्थात पत्र के उत्तर में कोई सूचना नहीं है कि वह उस वाद में शामिल कर लिया है या नहीं।
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