मेक इन इंडियाः कितना बना उत्साह का माहौल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत 15 अगस्त को लालकिले से प्राचीर से देश के औद्योगिकीकरण के लिए ‘मेक इन इंडिया’ का घोषणा, लगातार अपने प्रत्येक विदेशी दौरे में इस घोषित कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रयासरत है। साथ ही इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ही देश के पिछड़े राज्यों में ‘मेक इन इंडिया’ के अन्तर्गत ही विशाल उद्योगों की स्थापना करने का प्रयास कर दिया है। बधाई!
लेकिन हम अपने पाठकों की ओर से प्रधानमंत्री जी को यह मशविरा देना चाहते हैं कि एक साल व्यतीत हो जाने बाद इस बिन्दु पर भी मंथन करना चाहिए कि देश में अभी तक मेक इन इंडिया के अन्तर्गत कितना उत्साह बन पाया। क्योंकि उत्साह के साथ मोदी का समर्थन करने वाले देश के पूंजीपति वर्ग और विदेशी निवेशक यमुदाय का मेक इन इंडिया के प्रति मोह भंग तो नहीं हो रहा, यह सत्य है कि आज भी देशी व विदेशी निवेशक घबराया हुआ नजर आ रहा है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था में अपेक्षित बदलाव नहीं आ पाया है जबकि कुछ लोग मोदी की ओर संदेह का लाभ दे रहे हैं क्योंकि उनका मानना है उनका इरादा तो नेक है और देश के औद्योगिक माहौल बनान चाहते हैं’ इस क्रम में प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा जैसे लोग पूंजीपतिओं से अपील कर रहे हैं कि थोड़ा धैर्य रखें, जबकि एचडीएफसी बैंक के चेयरमैन दीपक पारिख जैसे लोग खुलेआम सरकार के निर्णय लेने की प्रक्रिया में भटकाव की बात करते हैं। उधर वैश्विक समुदाय में सबसे अधिक मुखरता दिखाते हुए अमेरिकी निवेशकांे का कहना है कि ‘मोदी सिर्फ बात करते हैं, काम कम’। इसके पीछे कारण भी दिखायी पड़ता है कि विभिन्न शोध संस्थानों का अनुमान था कि वर्ष के अंत तक सेंसेक्स 33,000 का पार कर जाएगा जबकि ऐसा हो नहीं पाया। उधर सामने यह आ रहा है विदेशी निवेशको का सुझान पुनः चीन को ओर झुक हो रहा है क्योंकि भारत की तुलना में चीन के शेयर बाजार मजबूत होता दिखायी दे रहा है।
मेक इन इंडिया की धीमी गति का एक कारण और भी दिखायी दे रह है कि अब भी प्राप्त आंकड़ों के अनुसार आज के उत्पाद, मांग के मुकाबले अधिक हो रहा है। या फिर यह कहें कि देश में वर्तमान में लगभग 65 प्रतिशत ही उत्पादन हो रहा है। और हाल-फिलहाल मांग में कोई वृ(ि का संकेत भी नहीं मिल रहा है। यह तथ्य भी मजबूत है कि आम तौर पर उद्योग नए निवेश के बारे तब ही सोच बनाते हैं जब मौजूदा उत्पाद की मांग 85 से 90 प्रतिशत तक पहुंच जाए परन्तु अभी ऐसा नहीं हो पा रहा है।
बात करें अभी विदेशी निवेश की तो विदेशी निवेश अभी भी पिछले अनुभवों के साथ भारत में उद्योग विस्तार के साथ संचालन में पुराने, घीसे-पीटे कानून एवं नियमों के साथ सरकारी मशीनरी में कोई ठोस बदलाव का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं।
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