केवल राजस्व वृ(ि की ही चिंता करना उचित है!

उत्तर प्रदेश का वाणिज्य कर विभाग वैसे तो विभाग में भ्रष्टाचार को कमी करने के उद्देश्य से विभाग को पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत करते हुए व्यापारियों को सुविधाएं देने का दावा करता है। परन्तु राजस्व की बहुत चिंता करता है, करे भी क्यों नहीं लेकिन हमारा कहना है प्रयास तो करें लेकिन ईमानदारी से करेंगे तो संभवतः सभी को सहयोग प्राप्त होगा लेकिन बस राजस्व बढ़ाने के लिए ‘कुछ भी करेंगे’ की तर्ज पर मंजूर नहीं है। विभागीय अधिकारी यह भूल जाते हैं कि आज देश की न्यायपालिका अब बहुत सक्रिय भूमिका निभा रही है। उदाहरण ही ले वैट एक्ट की धारा-54;1द्ध;22द्ध के अन्तर्गत समयसीमा के अंदर वार्षिक विवरणी दाखिल न करने पर विभाग ने व्यापारियों पर रु0 दस हजार की पेनल्टी का आरोपण प्रारम्भ कर दिया परन्तु माननीय अधिकरण का इस आदेश के विपक्ष में निर्णय आया और व्यापारी वर्ग ने राहत की सांस ली। 
अब विभाग ने एक परिपत्र ;संख्या 1415100 दि. 08 दिसम्बर 14द्ध जारी किया जिसमें आदेश दिया है कि दाखिल मासिक रुपपत्रों का परीक्षण नहीं किया जा रहा अतः निर्देशित किया जाता है 0.5 प्रतिशत से कम टैक्स जमा करने का औचित्यपूर्ण एवं नियमानुसार अस्थायी कर निर्धारण कार्यवाही करें। यहां पर एक प्रश्न उठता है कि आखिर वैट प्रणाली की प्रक्रिया व भावना क्या है? बिक्री किये जाने पर प्राप्त टैक्स में खरीद पर भुगतान किये गए टैक्स को घटाकर बाकी बचे टैक्स को जमा करना अथवा टर्नओवर के अनुसार टैक्स जमा करना वह भी न्यूनतम 0.5ः? यदि विभाग को येन-केन-प्रकरेण टैक्स ही वसूलना है तो वैट सिस्टम को हटाकर ‘एक बिन्दु टैक्स’ प्रणाली ही लागू कर दे अथवा जिस प्रकार समाधान योजना की प्रक्रिया है कि कुल बिक्री का 0.5ः टैक्स जमा करना है वह लागू कर दें। समझ में नहीं आता कि विभाग के उच्चाधिकारियों में क्या सोच बननी शुरु हो जाती है और तुरन्त ही आदेश जारी हो जाता है।
पिछले दिनों माननीय प्रधानमंत्री ने एवं समय-समय पर मुख्य न्यायधीश भी न्यायालय में बढ़ती पेंन्डेंसी के प्रति चिंता व्यक्त करते रहते है परन्तु सरकार कभी विभागों को यह निर्देशित नहीं कीती कि वह ऐसे आदेश न जारी करे जिससे विभाग को अथवा दूसरे पक्ष को न्यायपरलिका शरण में न जाना पड़े। 
हम पाठकों की ओर से विभाग के मुखिया से यह जानना चाहते हैं कि प्रतिवर्ष विभाग पर न्यायालयों मे लम्बित वादों एवं नये दायर वादों पर कुल कितना खर्च आ रहा है और उन वादों के परिणाम स्वरुप कितना राजस्व प्रतिवर्ष प्राप्त होता है?             -पराग सिंहल

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