देश का औद्योगिकीकरण विस्तार: एक अपराध!!!
जब से देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्तारुढ़ हुई है तब से विपक्षी दलांे एक ही आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार उद्योगपतिओं की सरकार है, देश में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देना ही इस सरकार का मुख्य ऐजेंडा है। एक बात और कहते हैं कि सरकार किसान विरोधी है, साथ ही दलित विरोधी भी बताने मंे हिचक नहीं करते। यह बात ठीक है कि विरोध दल बने ही विरोध की राजनीति के लिए परन्तु विरोध उतना ठीक रहता जितना उचित हो।
देश की आजादी 66 वर्षो के बाद देश के उद्योगों को संरक्षण मिलने लगा है। तो हो-हल्ला क्यों? इस प्रश्न के पीछे हम ही अपने विरोधी दलों के नेताओं से एक प्रश्न पूछ लेते हैं। क्या देश में उद्योगों को संरक्षण देना अथवा विस्तार करना राष्ट्र विरोध कार्य है? फिर जब इन नेताओं को चुनाव के अतिरिक्त कोई भी आपदा होने पर किसानों, दलितों और अल्पसंख्यकों वर्ग के लिए करोड़ों रुपये के मुआबजे मांग की जाती है तो उनके मांग के अनुरुप यह रुपया कहां से और कैसे आता है? इस प्रश्न का उत्तर यह विरोधी दल दे सकेंगे? अपनी राजनीति की रोटी सेकने के लिए कुछ भी आरोप लगा दें, सत्ता में बैठकर तुष्टीकरण की राजनीति को ध्यान में रखकर करोड़ों रुपये विभिन्न योजनाओं में ऐसे बांटते है जैसे भगवान ने इनकी योजनाओं के लिए खुला खजाना खोल रखा है। तब यह नहीं सोच पाते कि इन योजनाओं के लिए पैसा कौन देता है।
बड़े ही खेदजनक स्थिति है कि आज 66 वर्षो के बाद भी देश के ऊपर विभिन्न योजनाओं के साथ सब्सिडी और मुआबजे का भार हजार करोड़ों में पहंुच चुका है लेकिन राजस्व प्राप्ति में 125 करोड़ की आबादी में मात्र 3-4 प्रतिशत लोगों का ही है।
क्या विरोध की राजनीति कभी खुले दिल से और राष्ट्रीय चरित्र के साथ नहीं खेली जा सकती? अभी मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल पर हमारे मुख्य विरोध दल के युवराज के नेतृत्व में वले अभियान में किसानों के हितों की चिंता करते जो भी कुछ कहा गया, क्या उसका जबाब दे पाएंगे कि यूपीए सरकार के समय लाया गया भूमि अधिग्रहण बिल में किसानों की जमीन का अधिग्रहण प्रतिबंधित किया गया था? और हाई-वे, विद्यालय, स्कूल, हवाईअड्डे, उद्योगों आदि के लिए जमीन की व्यवस्था पड़ोसी देशों से की गई थी, या फिर आकाश में बनाए गए थे।
अभी प्रदेश सरकार आगरा से लखनऊ के बीच एक्सप्रेस-वे का निर्माण कर रही है, क्या उस सड़क के लिए किसानों की भूमि का अधिग्रहण नहीं किया गया? इसके अतिरिक्त राज्यसभा में कर प्रणाली के व्यापक सुधार का द्योतक ‘जीएसटी का बिल’ को दवाब बनाना राज्य सभा की प्रवर समिति को सौंपने का कार्य क्या इशारा कर रहा है जबकि यह कर प्रणाली कांगे्रस की यूपीए सरकार द्वारा लाया गया था।
लेकिन हमको तो एक ही उत्तर समझ में आता है कि विरोध के लिए विरोध करना, विरोध दल का राष्ट्रीय कत्र्तव्य है।
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