जीएसटी पर मन की बात : अब तक सबसे बड़ा टैक्स सुधार का बिल ‘जीएसटी’
जीएसटी अर्थात वस्तु एवं सेवाकर को देश का सबसे बड़ा क्रांतिकारी एवं सुधार का टैक्स बिल भी कहा जा सकता है। संभावना इसकी भी है कि जीएसटी के माध्यम से सरकार देश का काला धन की अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से को इस कर प्रणाली में शामिल कर देश में व्याप्त कालेधन पर अपनी पकड़ मजबूत बना लें।
प्राप्त जानकारी के अनुसार काले धन पर केन्द्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी 1000 पेज की विस्तृत रिपोर्ट में बताया है कि पिछले 25 वर्षांे से भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 50 प्रतिशत से हिस्सा अधिक मौजूदा टैक्स प्रणाली से बाहर ही रहा है। एक महत्वपूर्ण बिन्दु यह भी है कि यदि देश में जीएसटी को सही रुप में और सही भावना में लागू किया जाता है तो बहुत ही कम समय में घरेलू उत्पाद अर्थात जीडीपी 20 से 30 अरब डाॅलर तक पहंुच सकती है। यह संभावना देश के अर्थ विशेषज्ञ भी जताते आ रहे हैं।
देश के कई अर्थशास्त्री अपना मत व्यक्त करते आ रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को कम करके आंका जाता रहा है। क्योंकि देश की आर्थिक गतिविधियांे का बड़ा भाग सरकारी अध्ययनों से बाहर ही रहा है। परन्तु अभी तक के जीएसटी बिल का वह स्वरुप है जो वस्तुओं एवं सेवाओं की इन छूटी हुई मूल्य कडि़यों का पता लगाएगा। उदाहरण लिया जाए तो जो रियल एस्टेट, भवन निर्माण को भवन निर्माण एवं अन्य बुनियादी ढांचा के लिए आवश्यक खरीद के दौरान जो टैक्स का भुगतान करता है उसको अपने रिफंड का दावा करने लिए लेन-देन का आधिकारिक रिकाॅर्ड रखना आवश्यक होता है। परन्तु जीएसटी का तर्क है कि वस्तु एवं सेवाकर के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पादक केवल कच्चा माल खरीदने के बाद निर्मित मूल्य पर जीएसटी का भुगतान करता है। इसलिए कि वह उत्पादक कच्चे माल की खरीद के दौरान चुकाए गए कर की वापसी का अधिकारी होगा।
प्रस्तावित जीएसटी टैक्स व्यवस्था के अन्तर्गत पूरी मूल्य श्रृंखला का पता लगाया जाने का प्रावधान है। संभवतः यह व्यवस्था देश की आर्थिक गतिविधियों को पता लगाने के लिए सरल हो सकता है। ऐसे में उत्पादक को प्रत्येक स्तर पर वस्तुओं एवं सेवाओं पर लगाए गए टैक्स से बचना मुश्किल हो सकेगा।
जीएसटी को एक आधुनिक कर व्यवस्था भी कहा जा सकता है। आपको ज्ञात ही है पड़ासी देश चीन में जीएसटी पूर्व से ही लागू है। इस कड़ी में केचल चीन नहीं है और भी देश हैं। हमें विश्वास है कि जीएसटी पूरे भारत में एक साझा बाजार का निर्माण कर नये व्यापारिक वातावरण का तैयार कर सकता है क्योंकि जीएसटी में सबसे महत्वपूर्ण एवं सकारात्मक पहलू यह है कि पूरे देश में ‘कर का रेट’ एक समान ही रहेंगे।इस प्रकार देश के 29 राज्यों में वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्बाध प्रवाह की सुविधाओं को खोल सकता है। आज हम प्रत्येक राज्य के सीमा क्षेत्र मंे चुंगी एवं प्रवेश कर के नाम पर ट्रकों की लम्बी कतारों को देख सकते हैं परन्तु जीएसटी लागू होने के बाद यह कतारें लगभग समाप्त ही हो जाने की संभावना है। क्योंकि जीएसटी में चंुगी एवं प्रवेश कर समाहित होने के कारण पूरी तरह से प्रभावहीन हो जाएंगे। उल्लेखनीय यह भी है कि इस प्रकार के तमाम तरह के प्रक्रियाओं का संचालन डिजिटल होने के कारण सुविधाजनक एवं समय की बचत करा सकेगा। डिजिटल आधारित तकनीक विकासशील भारत के द्रूत विकास लिए अतिआवश्यक है।
केन्द्रीय वित्त मंत्रालय एवं राज्यों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति के बीच गहन विचार-विमर्श के उपरान्त जीएसटी संबन्धी संविधान संशोधन विधेयक बिल केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद के शीत कालीन सत्र में प्रस्तुत किया चुका है। यह भी सच है इसके लिए केन्द्रीय वित्त मंत्री को राज्यों के साथ काफी सौदेबाजी के बीच से भी गुजरना पड़ा। लेकिन वित्त मंत्री ने अपनी कौशल पूर्ण चतुराई के साथ राज्यों के साथ सहमति बनाने के लिए उदार प्रस्ताव भी दिये। जिसमें सीएसटी के बकाए में प्रथम किस्त का रु 11 हजार करोड़ का भुगतान भी शामिल है।
निःसंदेह जीएसटी संशोधन बिल देश के इतिहास में एक अहम् क्रांतिकारी कदम है जोकि लम्बे समय से संभवतः 2008 से राज्यों एवं केन्द्र के बीच विचाराधीन था। जीएसटी पर राज्यों का इस बात का डर समाया हुआ था कि देश में जीएसटी लागू होने से राज्यों का कर वसूलने के साथ नए कर लगाने का अधिकार को छिन जाएगा। लेकिन इसके भी कोई शक या शुभा नहीं कि जीएसटी के बीच भागीदारी का आधार भी बन सकता है। यह भी सत्य है कि यदि जीएसटी को सही रुप एवं सही तौर पर लागू किया गया तो न केवल राज्यों के लिए बल्कि केन्द्र के लिए लाभप्रद होगा और देश की अर्थव्यवस्था एवं राजस्व हित में भी होगा और विविधता पूर्ण अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को पूरी तरह से खंडित कर उसे आधुनिक एवं सरल बनाएगा। संभव यह भी है कि जीएसटी केन्द्र एवं राज्यों के बीच राजनीतिक और वित्तीय सहयोग की कड़ी का एक नया सूत्रधार बनने का श्रेय ले ले।
जैसा कि ज्ञात हो रहा है कि इस नए कर कानून में राज्यों का यह सुविधा रहेगी कि वह एक सीमा तक राज्य एक सीमा के अन्तर्गत जीएसटी में बदलाव कर सकेंगे। परन्तु सभी महत्वपूर्ण निर्णय निर्णय केन्द्र एवं राज्यों के प्रतिनिधियों को मिलकार बनाई गई ‘जीएसटी परिषद्’ एक साथ मंच के रुप में कार्य कर सर्वसम्मति से निर्णय ले सकेगी। जीएसटी परिषद् का गठन उद्देश्य भी यही है कि जहां सभी राज्य समान भागीदार के रुप में नए कर ढांचे में आवश्यक बदलाव पर गहन विचार-विमर्श कर सकेंगे।
उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि प्रारम्भ में राज्यों के मुख्यमंत्री रियल एस्टेट, पेट्रोलियम, अल्कोहल, तम्बाकू आदि उत्पाद के साथ चुंगी और प्रवेश कर आदि को जीएसटी से बाहर रखने का तत्पर थे क्योंकि इन उत्पादों से राज्यों को सर्वाधिक राजस्व प्राप्त होता है। परन्तु प्रस्तावित व्यवस्था के तहत अब यह सभी कर एकल जीएसटी में समाहित होंगे, और प्राप्त राजस्व में से केन्द्र एवं राज्यों के बीच अनुपातिक बंटेंगे। क्योंकि केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली नहीं चाहते थे कि महत्वपूर्ण क्षेत्रों को छोड़कर जीएसटी को आधे-अधूरे ढंग से लागू किया जाए। अर्थशास्त्री वित्त मंत्री इस मौलिक बिन्दु को समझते थे, अतः उन्होंने राज्यों के वित्त मंत्रियों के साथ वार्ता में अपने पक्ष को रखने में सफल रहे कि इस प्रकार के आधे-अधूरे जीएसटी को लागू करने से ‘वांछित’ परिणामों की आशा की जानी बेकार होगी। निश्चय ही हमारे केन्द्रीय वित्त मंत्री का इस ओर मजबूत कदम आने वाले दिनों में देश मंे क्रांतिकारी बदलावे में एक ‘यादगार’ ही बनी रहेगी। हमारा ऐसा विश्वास है। पराग सिंहल
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