भारत का समग्र (औद्योगिक) विकास

नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने देश के प्रधानमंत्री पद का भार संभालने के साथ ही देश की समग्र विकास के लिए विदेशी निवेश के लिए सफल प्रयास शुरु कर दिये है। उन्होंने अपनी प्रत्येक विदेश यात्रा में जिनमें मुख्यतः जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में देश के औद्योगिक व अन्य क्षेत्र के विकास के लिए विदेश में रह रहे अप्रवासी भारतीयों के साथ विदेशी उद्योगपतिओं को भारत में निवेश करने का आमंत्रण दिया, जिसको सभी ने सहर्ष स्वीकार किया। 
अभी हाल ही में गुजरात में आयोजित ‘अप्रवासी भारतीय सम्मेलन के बाद बाइव्रेंट इंडिया के सफल आयोजन में भी भारत के औद्योगिक विकास के साथ अन्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के स्थायी विकास के लिए भी विदेशी निवेश को आकर्षित किया। समाचार के अनुसार उत्तर प्रदेश में ही लगभग 25 हजार करोड़ रुपये का निवेश के समाचार प्राप्त हुए। 
वैसे देश की आजादी के बाद भी देश के औद्योगिक विकास के साथ औद्योगिक क्षेत्र में सहायक सेवाएं जैसे रेल सेवा व पिछड़े राज्य जिनमें वन व भू-संपदा के उत्खनन के साथ उनका पूरी तरह विकास के लिए प्रयोग करना और पिछड़े राज्यों में व्याप्त पिछड़ापन को समाप्त करने की चुनौती भी को स्वीकार की। जिस ओर अभी तक किसी भी सरकार का ध्यान नहीं जा पाया था। इन राज्यों की बात की जाए तो इनमें झारखंड, छत्तीसगढ़, तेलगांना, बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रमुख नाम हैं।
देश के कुल विकास दर की तो पिछले कई सालों से देश का सकल उत्पाद यानि जीडीपी के पिछड़ने के साथ चालू वित्त वर्ष में तेजी से साथ उछाल की चलने के साथ देश के औद्योगिक क्षेत्र में उत्साह पैदा करने में महती भूमिका निभा रहा है। अनुमान के अनुसार 2016 में देश में विकास दर 6.5 प्रतिशत रहने की संभावना है। अभी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ;आईएमएफद्ध की ओर भारत के लिए एक खुशखबरी रिपोर्ट मिली जिसमें वर्ष 2016 में भारत का औद्योगिक विकास दर चीन को पछाड़ने की तैयार कर रहा है। हां, आईएमएफ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2016 में भारत का विकास 6.5 प्रतिशत रहने की अनुमान है जबकि चीन का यह विकास दर 6.3 प्रतिशत का अनुमान बताया गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने दोनों देशों की विकास दर की तुलना करते हुए कहा है कि 2014 में भारत का विकास दर 5.8 प्रतिशत थी जबकि चीन का का विकास दर 7.4 प्रतिशत रहा 2013 में भारत में यह दर 5 प्रतिशत ही थी तो चीन की दर 7.8 प्रतिशत रही। 2015 में भारत की विकास दर 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त करते हुए कहा है कि 2016 में यह विकास दर बढ़कर 6.5 प्रतिशत रह सकती है। रिपोर्ट में किये गये अध्ययन मंे स्पष्ट हो रहा है कि अगले वर्ष भारत की विकास दर चीन के मुकाबले आगे ही रहने की संभावना है।
आईएमएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में मोदी सरकार के आर्थिक सुधार कार्यक्रम से यह आशा बलबती हुई हैं परन्तु इनका क्रियान्वयन कैसे होता है यह महत्वपूर्ण है। आईएमएफ की शोध शाखा के उपनिदेशक ग्यान मारिया ने मोदी सरकार के आर्थिक सुधार पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में कहा कि उनका मानना है कि नई सरकार की सुधार योजनाएं आशाजनक है, लेकिन देखना यह है कि सरकार इन सुधारवादी योजनाओं का क्रियान्वयन कैसे करती है। रिपोर्ट में कमतर बाह्य मांग की भरपायी कच्चे तेल की कीमतों में आ रही गिरावट से व्यापार को मिलने वाला बढ़ावा और नीतिगत सुधार के बाद देश का औद्योगिक एवं निवेश गतिविधियां में आई तेजी को महत्वपूर्ण माना गया है। वहीं वैश्विक विकास में तेल की गिरती कीमतों को आर्थिक विकास के लिए उपयोगी बताया गया है।
आपको बता देना चाहते हैं अभी हाल ही में आयोजित बाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन के अवसर पर हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनियाभर से आए प्रतिनिधियों और निवेशकों से वायदा किया है कि वे कारोबार करने की दृष्टि से भारत को दुनिया की सबसे अधिक सुविधाजनक और आसान देश बनाएंगे। विश्व बैंक की रैकिंग के अनुसार अभी यह उपलब्धि सिंगापुर के नाम दर्ज है। देश में कारोबार करने की दशाओं को सरल बनाने की दिशा में मोदी सरकार प्रारम्भ से संकल्पित दिख रही है। सिंगापुर की यह उपलब्धि पर सरसरी निगाह के साथ भारत के साथर तुलना पर दृष्टि डालें।
भारत में कारोबार शुरु करने के लिए यहां पर लगभग 13 प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है इनमें लगभग 30 दिन लगते हैं जबकि सिंगापुर में नई उद्यम लगाने के लिए मात्र 3 नौकरशाही बाधाएं होती है जिनको पार करने में मात्र 2.5 दिन ही लगते हैं। इसी प्रकार कारोबार की लागत के मामले में भारत की राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय का 16 प्रतिशत यहां कारोबार प्रारम्भ करने की लागत आती है। तीन माह के संचालन के दौरान यहां किसी उद्यम को देश की औसत प्रति व्यक्ति आय का 100 प्रतिशत बैंक में जमा करना होता है जबकि सिंगापुर में भारत की तुलना में यहां कारोबार 27 गुना कम लागत से शुरु किया जा सकता है, साथ ही उद्यम स्थापित करने के लिए किसी धनराशि को बैंक में जमा की आवश्यकता भी नहीं है। निर्माण अनुमति के क्षेत्र में भारत में कारोबार लगाने के लिए 27 अलग-अलग निर्माण अनुमति की जरुरत पड़ती है जिसमें लगभग साढ़े पांच माह का समय लगता है जबकि सिंगापुर में केवल 10 अनुमति की आवश्यकता पड़ती है और 26 दिन में ही फैक्टरी के भवन निर्माण का कार्य शुरु किया जा सकता है। बिजली आपूर्ति के क्षेत्र में भारत में कारोबार प्रारम्भ करने के लिए बिजली कनेक्शन हासिल करने के सात चरण होते हैं सभी अनुमति में औसतन 67 दिन लग जाते हैं जबकि सिंगापुर में बिजली आपूर्ति सुचारु कराने में केवल 4 चरण ही लगते हैं और 31 दिन में बिजली कनेक्शन लग जाता है। टैक्स की झंझट के बारे में बात करें तो भारत में 33 तरह के टैक्स का वार्षिक भुगतान करना होता है। इस बिन्दु पर विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार करीब 30 प्रशसनिक दिन खर्च हो जाते हैं जबकि लाभ करीब 60 प्रतिशत टैक्स मद में चला जाता है सिंगापुर में देखा जाए तो यहां पर मात्र 5 प्रकार के टैक्स जमा कराये जाते हैं और 10 कार्य दिवसों में इनकी औपचारिकताओं को पूरा किया जा सकता है जबकि भारत से तीन गुना कम सालाना टैक्स चुकाना होता है। निर्यात लागत पर अध्ययन करने पर भारत में एक कंटेनर निर्यात की लागत 1120 डाॅलर पड़ती है और समय भी अधिक जबकि सिंगापुर में निर्यात लागत तीन गुना कम पड़ती है, किसी भी वस्तु के निर्यात में भारत की तुलना में दोगुना कम समय लगता है। अदालती समय पर निगाह डालें तो भारत में किसी भी समझौते पर खड़े विवाद को सुलझाने में अदालती समय लगभग 4 साल लग जाता है जबकि सिंगापुर में औसनत 150 दिन में समझौते संबन्धी किसी भी विवाद में अदालती निर्णय आ जाता है। अब देखें कारोबार छोड़ने के समय में तो भारत में कारोबार बंद करने की दशा में सारी औपचारिकताओं को पूर्ण करने में चार साल का समय लगता है जबकि सिंगापुर में कारोबार बंद करने में जरुरी औपचारिकताओं में औसनत एक साल का समय लगता है।
इस तथ्स पर ध्यान देना होगा कि देश की इस विकास की गति को कहीं हद तक रुकावटें देने वाली हमारे देश की कर प्रणाली के साथ उद्योग के स्थापना में आने वाली विभिन्न विभागीय औपचारिकताएं भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती आ रही है। हां एक बात की आवश्यकता है वह है ‘एक सकारात्मक सोच की’।

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