जीएसटी की मूल भावना भारतीय हो!

केन्द्र सरकार देश में नई कर प्रणाली जीएसटी को लागू करने के सतत् प्रयासरत है। वादा भी किया है देश में अपै्रल 2016 में जीएसटी लागू कर दिया जाएगा। लोकसभा में संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया जा चुका है संभवतः तत्पश्चात शीघ्र ही राज्यों की विधान सभाओं में प्रस्तुत कर पारित करवा लिया जाएगा, पारित होने के बाद जीएसटी के एक्ट का निर्माण होना है। लेकिन हमारी केन्द्र एवं राज्य सरकार से मांग है कि प्रस्तावित जीएसटी एक्ट की मूल भावना ‘भारतीय’ होनी चाहिए।
हमारी यह मांग के पीछे कुछ कारण है। कारण यह है कि हमारे संविधान में अभी तक विद्यमान लगभग सभी अधिनियम ब्रिटिश काल के ही हैं, आपको स्मरण होगा कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी का अस्तित्व समाप्त होकर पूरी तरह से ब्रिटिश क्राउन का राज भारत में कायम हो गया था तत्पश्चात भारत के लिए संविधान का निर्माण हुआ परन्तु भारत के संविधान का निर्माण ब्रिटिश संसद में हुआ, निश्चय ही उस निर्माण की भावना भारत पर राज करने की थी, अतः सभी निर्मित एक्ट में ऐसी भावनाओं को समाहित हो गई जिससे ब्रिटिश अधिकारी भारत की जनता पर येन-केन-प्रकरेण शासन कर सके। परन्तु अफसोस की बात यह रही कि भारत के आजादी पर सभी एक्ट वहीं लागू कर दिये गए जिनकी मूल भावना भी यही थी और यह आज भी कायम हैं। इन्हीं कारणों से आप स्वयं अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि सभी अधिनियमों में शासकीय अधिकारियों की जिम्मेदारी कहीं भी निर्धारित नहीं किये गये है वरन् समस्त जिम्मेदारी दूसरे पक्ष की ही हैं। उदाहरण के लिए यदि आप देखें आयकर अधिनियम को प्रथम बार आयकर भारत में 1922 में प्रभावी किया गया जो कि ‘आयकर अधिनियम 1922 के नाम से प्रभावी हुआ। फिर उसको 1961 में संशोधित किया गया जो कि आयकर अधिनियम 1961 कहलाया। यदि आप आयकर के साथ अन्य सभी कर संबन्धित कर प्रणालियों का अध्ययन करेंगे तो सही पाएंगे कि कर निर्धारण अधिकारी के पास समस्त अधिकार हैं परन्तु करदाता के कोई अधिकार नहीं नियम किये गए है। 
अतः हम केन्द्र एवं राज्य सरकारों से अनुरोध करना चाहते हैं कि देश में प्रभावी रुप से और भ्रष्टाचार रहित नई कर प्रणाली ;प्रस्तावितद्ध जीएसटी को सही रुप में अधिक राजस्व देने वाला लागू करना चाहते हैं तो प्रस्तावित जीएसटी के एक्ट में ‘भारतीय’ सोच के साथ निर्माण होना चाहिए।                           -पराग सिंहल

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