जीएसटी कर प्रणालीः वैट जैसा हाल न हो जाए

ऐसा देखने में आ रहा है कि राज्यों के आपस की खींचतान के चलते प्रस्तावित जीएसटी का भी वैसा ही हाल हो सकता है जैसा कि वैट प्रणाली का हुआ। आपको याद होगा कि जब देश में वैट प्रणाली के लागू होने की चर्चा शुरु हुई थी, तब विशेषकर व्यापारी वर्ग को ऐसी आशा बंधी थी कि पूरे देश में टैक्स के रेट एकरुकता लेते हुए वैट प्रणाली लागू होगी, जिससे व्यापारी वर्ग को बहुत राहत मिलेगी परन्तु एनडीए सरकार की रवानगी के बाद यूपीए सरकार वैट प्रणाली के लागू करने को श्रेय लेने की जल्दीबाजी में प्रस्तावित वैट प्रणाली को लागू करने के लिए राज्यांे को अधिकार प्रदान कर दिये कि वह जैसा चाहें टैक्स रेट निर्धारित कर सकेंगे। ज्ञातव्यरहे कि जहां तक याद पड़ता है कि जब देश में वैट प्रणाली का प्रस्ताव आया था उसने प्रावधान था कि सभी राज्यों में लागू होने वाले ‘टैक्स रेट’ की एकरुपता रहेगी जिससे सभी राज्यों को समान एवं अधिक से अधिक राजस्व तो प्राप्त होगा ही साथ ही उद्योग व्यापार भी फलेंगे-फूलंेगे। परन्तु जब ज्यादा खींचतान हुई तो यह प्रावधान को बदल कर राज्यों को अधिकार दे दिया कि वह अपने राज्य में लागू होने वाली प्रणाली का स्वरुप व रेट आॅफ टैक्स अपनी सुविधा अनुसार निर्धारित करें। ऐसे ही अब जीएसटी में देखने को आ रहा है। 
यह सर्वविदित है कि देश में महंगाई बढ़ाने में पेट्रोलियम उत्पादों का सबसे बड़ा हाथ रहता है क्योंकि व्यापारिक गतिविधि व परिवहन का मुख्य साधन के लिए पेट्रोल या डीजल की आवश्यकता होती है और जब-जब डीजल व पेट्रोल के मूल्य बढ़ें है, तब-तब महंगाई ने जोर पकड़ा है। आज देश में विभिन्न राज्यों में पेट्रोल के मूल्य 75 से 90 रुपये प्रति लीटर तक हैं। और इन टैक्स आॅफ रेअ औसतन 20 से 26 प्रतिशत है। ;केन्द्रीय उत्पाद शुल्क व अन्य कर अलग सेद्ध।
अभी शिलांग में सम्पन्न हुई राज्यों के वित्तमंत्रियों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय ले लिया गया कि पेट्रोलियम उत्पाद एवं अल्कोहल वस्तुओं को जीएसटी से बाहर रखा जाएगा तर्क यह दिया गया है कि इन दोनों उत्पादों से प्राप्त राजस्व, राज्यों की आय का मुख्य स्रोत है। यहां पर एक प्रश्न उठता है कि यदि इन उत्पादों को जीएसटी में शामिल होने से राज्यों को प्राप्त होने वाला राजस्व घट जाएगा? यदि हम बात करें पेट्रोलियम उत्पादों का प्रयोग वाहनांे के अतिरिक्त लगभग सभी स्थानों पर चाहे वह फैक्ट्ररी हो या अन्य यंत्र,यहां तक की कृषि यंत्रों में भी,। फिर प्रश्न उठता है कि यदि इन उत्पादों को जीएसटी शामिल कर लिया जाए और रेट आॅफ टैक्स कम कर दिया जाएगा तो राजस्व कम हो जाएगा?
मैं यहां पर एक उदाहरण तो क्या अनुभव रख रहा हूं कि हमारे प्रदेश के लगभग सभी वाहन चालक जब दिल्ली या इससे आगे जाते हैं तो यह कोशिश करते हैं कि वाहन में इतना ही पेट्रोल या डीजल डलवाये ताकि वह हरियाणा या दिल्ली पहुंच जाए क्योंकि इन राज्यों में यह उत्पाद सस्ता है ;टैक्स आॅफ रेट कम होने के कारणद्ध। अब मैं राज्य में बैठे उच्चाधिकारी से प्रश्न करना चाहता हूं कि इस प्रक्रिया से किस राज्य का राजस्व का नुकसान हो रहा है? उत्तर प्रदेश का या उस राज्य का जहां से वह उत्पाद लिया जा रहा है। कभी तो ऐसा लगने लगता है कि शासन में बैठे अधिकारीगण उन राज्यों से सहानुभूति रखते हैं कि उनका राजस्व कैसे बढ़ाया जाए इसके लिए हम अपने राज्य में कर की दर बढ़ा दें तभी तो! 
अभी पिछले दिनों समाचार आया कि प्रदेश में पेट्रोल, डीजल पर   0.25 प्रतिशत अतिरिक्त कर लगाया जाना प्रस्तावित है जो कि विकास कर के रुप में होगा?
टर्नओवर की सीमा समाप्ति का समाचार 
अब एक खबर और आ रही है कि प्रस्तावित जीएसटी प्रणाली से टर्नओवर की सीमा को भी समाप्त करने का प्रस्ताव है। भई! ऐसा प्रस्ताव क्यों? क्या नुकसान होगा इस टर्नओवर सीमा को लागू करने से।
उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि जब तक शासन में बैठे उच्चाधिकारी संकुचित विचारों के साथ टैक्स प्रणाली को लागू करने की कोशिश करते रहेंगे तब तक प्रदेश का अपेक्षित राजस्व बढ़ने की आशा करना छोड़ दें। इस सच को स्वीकारना होगा कि आज के इस युग में जब व्यापारी का ‘मार्जिन आॅफ प्रोफिट’ 2 से 5 प्रतिशत रहेगा तब वह 5 अथवा 14 अथवा 20 प्रतिशत वैट क्यों और कैसे दे पाएंगे, इतना ही नहीं कि व्यापारी को केवल वैट ही देना है बल्कि अन्य टैक्स भी देने होते हैं। 
हम इतना अवश्य कहना चाहेंगे कि शासन में बैठे उच्चाधिकारी इस तथ्य पर भी गौर करें कि प्रदेश के व्यापारी पर कितने अधिक विभागों को विभिन्न प्रकार के टैक्स देने का दबाव रहता है तो वह अपना व्यापार करें या सरकार को टैक्स ही देते रहें। क्या व्यापारी स्वयं के परिवार के लिए कमा रहा है या सरकार के लिए? 
यह एक ऐसा नियम या मानसिकता है कि जब-जब सरकार ने टैक्स का रेट अधिक रखा है, तब-तब कर की चोरी बढ़ी ही है, इसके लिए शासन में बैठे अधिकारी कितनी भी कोशिश कर लें। अब तो एक ही प्रश्न उठता है कि अरे भाई कितना टैक्स लोगे?                                                                                              -पराग सिंहल

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