हमारा संविधान तो 1950 में लागू हुआ लेकिन.......!

क्या पुराने कानून से भ्रष्टाचार तो नही पनप रहा है?

जब 1947 में जब हमारा देश आजाद हुआ तब आजाद देश को एक अपने संविधान की आवश्यकता थी, तत्कालीन गर्वनर जनरल राजागोपाचार्य और तत्कालीन प्रधानमंत्री प0 जवाहर लाल नेहरू ने अपने सहयोगियों से विचार विमर्श कर एक संविधान सभा का गठन कर देश के लिए नये संविधान की रचना की जिम्मेदारी दी गयी। इस समिति ने देश के लिए नया संविधान लिखा या पुराने संविधान को नया स्वरूप देकर 26 जनवरी 1950 को लागू करने की संस्तुति कर दी। आज हम देशवासी अपने देश के संविधान लागू होने वाले दिवस 26 जनवरी 1950  को गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाते हैं। 
प्रश्न उठता है कि 26 जनवरी 1950 को जिस संविधान का उदय हुआ, क्या वह संविधान नये सिरे से लिखा गया या पुराने अंग्रजों के समय के संविधान को नया रूप देकर देश में लागू कर दिया गया। यदि उत्तर आता है कि संविधान सभा ने देश के लिए नया संविधान की रचना की। हमें स्वीकार करने में थोड़ा ही नहीं वरन् बहुत ही हिचक हो रही है, कारण भी है ना! अरे! हमारा भी प्रश्न है कि जो संविधान 26 जनवरी 1950 देश में लागू हुआ उसमें आजादी से पूर्व अर्थात अंग्रेजों के समय के अधिनियम कैसे आ गये और आज वह क्यों प्रभावी है और हमारे संविधान में ऐसे अधिनियम एक-दो  नहीं है वरन् अनेक हैं, उल्लेखनीय यह है कि हमारी माननीय संसद द्वारा समय-समय पर संविधान के उन अधिनियमों में  ;मामूलीद्ध संशोधन कर दिये है लेकिन वही पुराने लेकिन उन अधिनियम का वर्ष औा स्वरूप के उस अधिनियम की भावना पुरानी ही रही। उदाहरण है देश का भारतीय पुलिस एक्ट-1961। क्या उद्देश्य दर्शाया गया था इस एक्ट के सृजन करने में। कभी किसी ने पढ़ा? और यदि पढ़ा तो किसने बदलाव करने की आवाज उठायी? यहां तक हमारे देश में आज जो सामचार पत्र व पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही है वह एक्ट भी 1867 का है। हमारे देश में लागू संविधान में अधिकतर अधिनियम 1861 से लेकर 1948 तक के भरे पड़े हैं। हम उदाहरण के तौर पर कुछ अधिनियमों की सूची दे रहे हैं -
भारतीय सोसायटी अधिनियम 1860, भारतीय पुलिस एक्ट, 1861, प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867, भारतीय संविदा अधिनियम, 1872, भारतीय न्यास अधिनियम, 1882, संम्पत्ति अतंरण अधिनियम, 1882 ;धारा 22 का संशोधनद्ध,  संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890, विभाजन अधिनियम, 1893, भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 ;संशोधन भी हुएद्ध  घातक दुर्घटना अधिनियम, 1855, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925, विवाह विच्छेदन अधिनियम, 1863 ;धारा 2 का संशोधनद्ध, किसानों के कर्ज से जुड़ा कानून 1884, भारतीय फैक्टरीज़ एक्ट, 1948, गंगा पुल पर चुंगी कानून 1867, सरकारी इमारतें कानून 1899, सराय कानून 1867 ;जो कि आधुनिक रेस्टोरेंटों के कानून पर लागू रहता हैद्ध, भारतीय दंड संहिता, 1860 ;अनेक संशोधन हो चुके हैं लेकिन अधिनियम-1860 ही हैद्ध, भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 ;इसके अतिरिक्त बहुत सारे हैं जिनकी सूची देना मुश्किल है।द्ध
हम मान कर स्वीकार कर लंे कि संविधान के पुराने अधिनियम आज भी प्रभावी होने चाहिए क्योंकि तत्तकालीन प्रशासनिक अधिकारी ;अंग्रेजद्धहमसे ज्यादा समझदार और सूझबूझ वाले थे लेकिन क्या लगभग 150 वर्ष पुराने नियम व कानून आज कैसे और किस परिपेक्ष्य में लाभकारी और प्रभावी के साथ जनउपयोगी हो सकते हैं। साथ ही इस बिन्दु को भी ध्यान में रखना होगा कि अंगे्रज हमारे देश पर राज करने आए थे, हमारा संविधान भारत की संसद में नहीं वरन् ब्रिटेन की संसद में निर्माण किया जाता  था उस सृजन और कानून बनाने के पीछे सोच क्या हुआ करती थी शायद यही कैसे भारत पर अंग्रेज अपना राज कायम रख सकें। अंग्रेजों द्वारा 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के भारत पर पूर्ण अधिकार के बाद भारत के लिए नये-नये कानून बनाए, यह स्वतः ही स्पष्ट है उस समय बनाया गये कानून के पीछे उद्देश्य और भावना क्या होगी? लेकिन आज हमारे देश के लोग देश की राजनैतिक दल सत्ता संभाल रहे हैं तो क्या हमारे सांसद इतने सक्षम नहीं है कि वह देश के लिए नये संविधान की रचना कर सकें?
देश के महान व समर्पित समाजसेवी पूज्य अन्ना हजारे देश में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए ‘जनलोकपाल बिल’ बनाने के लिए केन्द्र सरकार पर दवाब बनाए हुए हैं और जिद पर अटके हुए हैं कि ‘जनलोकपाल’ बिल संसद के मानसून सत्र में पारित कराना है मैं भी समर्थन करता हूु कि देश से भ्रष्टाचार समाप्त होना चाहिए लेकिन साथ ही इस पर विवेचना करनी चाहिए कि हमारे देश में यह भ्रष्टाचार क्यों और कैसे फैल रहा है? मेरी समझ से देश का भ्रष्टाचार हमारे लचीले और 150 साल पुराने कानून से भी फैल रहा है।
यह भी उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार द्वारा गठित ‘विधि आयोग’ ने संविधान के पुरानी विभिन्न अधिनियमों पर संशोधन हेतु एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों की संख्या में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की लेकिन उन रिपोर्टाें का क्या हुआ, इस पर कोई भी सरकार कुछ करने अथवा कहने की स्थिति में नहीं है।
आजादी के 64 वर्ष होने जा रहे हैं हमारा देश विश्व को नेतृत्व प्रदान की क्षमता प्राप्त करता जा रहा है, क्या आज यह जरूरी नहीं हो गया है कि हमारे देश के संविधान को पुनः नये सिरे और नई सोच के साथ पुनः लिखने की आवश्यकता है? 
बहरहाल, उचित तो यही होगा कि भारत सरकार वर्तमान समय, काल, परिस्थिति के अनुसार हमारे देश के संविधान पर पुनः समीक्षा करके नये सिरे से संविधान की रचना करने की व्यवस्था करें, ताकि लोगों को स्वस्थ्य न्याय मिल सके, साथ बहुत सी नयी सोच के साथ भारत विश्व नेतृत्व के लिए विश्व में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सक्षम हो सके।
     

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