आंतकवाद से सुरक्षा के नाम पर प्रदेशों का बंटवारा

                          
आंतकवाद हमारे देश को वर्ष 1977 से परोक्षरूप से घुन की तरह खा रहा है। यदि हम इसके पहले के इतिहास में जाएं तो पायेंगे कि हमारा देश आजादी के बाद से आंतकवाद तो नहीं लेकिन क्षेत्रवाद की भावना से हिंसा ग्रसित रहा ही है, लेकिन तत्कालीन सरकार द्वारा इस ओर कोई गम्भीर कदम नहीं उठाया गया है।
हम यहां चर्चा कर रहे हैं कि आंतकवाद से बचाव हेतु जो सुरक्षा व्यवस्था की जा रही है उसकी आड़ में हमारा पुलिस महकमा कुछ और ही गुल खिला रहा है और सुरक्षा के नाम पर यात्रियों की चैकिंग और चालान करने में पीछे नहीं रहना चाहता। चाहे हम अपने प्रदेश की पुलिस की कार्यप्रणाली देखें या दिल्ली पुलिस की या फिर किसी अन्य प्रदेश की। अब तो देखने में यह आ रहा है कि हमारे यहां की पुलिस इस सुरक्षा के नाम पर विदेशियों को भी नहीं बक्ख रही है। 
यदि हम दिल्ली जाए तो वहां के यातायात पुलिस कर्मी दिल्ली के बाहर की वाहन देख कर ऐसे दौड़ते हंै कि उस वाहन में कोई बड़ा बदमाश या फिर आंतकवादी जा या आ रहा हो और उस वाहन को रोक कर वाहन की चैंकिंग तो कम होती है वाहन के कागजादों को ज्यादा चैक किया जाता है, फिर शुरू होता है शोषण का खेल। ऐसे ही अब हमारे राज्य में भी शुरू हो गया है।
हम अब आगरा की बात करें तो आप किसी भी मुख्य चैराहे पर खड़े हो जाएं और देखें कि कैसे अन्य राज्य के वाहन को रोक कर शोषण का खेल शुरू हो जाता है। हमारी इस यातायात पुलिस के साथ होमगार्ड के जवानों की तैनाती इन चैराहे पर होती है, उनकी ड्यूटी यातायात को नियन्त्रण करने की कम वाहनों की देखरेख में ज्यादा होती है, ये जवान इतने स्मार्ट हो गये हैं कि यदि चैराहे पर कितनी भी अधिक संख्या में वाहन लाईन में खड़े हों, लेकिन यह अन्य राज्यों के वाहनों को फौरन पहचान कर रोक लेते हैं। ऐसा क्यों? क्या अन्य राज्यों के निवासी हमारे राज्य या शहर में आ रहे हैं तो ‘क्या उनका हमारे राज्य में प्रवेश निषेध हैं या फिर वह आंतकवादी की श्रेणी में आते हैं?’  हद तो तब हो जाती है जब दिल्ली,  राजस्थान या किसी अन्य राज्य के नम्बर वाले वाहन में विदेशी पर्यटक बैठा तो, तब भी यह उस वाहन को रोक कर वाहन चालक का जो शोषण शुरू कर देते हंै, हमारे पुलिसकर्मी इस बात का जरा भी मनन नहीं करते हैं कि उनकी इस कार्यवाही से अपने देश की छवि पर कैसा प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
एक बात और इन सब कार्यवाही से ऐसा भी अहसास होने लगा है कि अब हमारा देश ‘एक देश’ ना होकर बल्कि प्रदेशों में बंट गया है, इस स्थिति में तो मेरे मन में एक विचार आ रहा है कि ‘क्यों ना भारत सरकार हमारे राष्ट्र ‘गणराज्य भारत’ का नाम ही बदल दें जैसे ‘संयुक्त राज्य आॅफ भारत’।
यह सब खेल या कार्यवाही ‘आंतक से सुरक्षा के आड़ में जायज ठहराई जा सकती है?’ हम अपने पुलिस प्रशासन को कहना चाहते हैं कि समय रहते इस सबको रोक लो अन्यथा कहीं ऐसी सुरक्षा व्यवस्था को आम जनता नकार ना दे। कहीं इसका कोई दुष्परिणाम सामने ना आने लगे, वैसे भी हमारे देश में कुछ भी हो जाए लेकिन हमारी जनता, पुलिस को सहयोग देने से कतराती है। क्यों कतराती है कभी विचार करने की फुर्सत मिली है?    

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