भगवान कृष्ण: एक दूरदर्शी योजनाकार

भगवान कृष्ण को हम अनेकों नाम जैसे कुंजबिहारी, छलिया, मधुसूदन, कन्हैया आदि नाम से पुकारते हंै। भगवान कृष्ण को योगीराज भी कहा जाता है। मेरे विचार से संभवतः बहुत ही कम लोगों ने ही विचार किया कि कृष्ण को योगीराज क्यों कहा जाता है जिन्होंने विचार भी किया लेकिन उन भक्तों ने उनकी लीला का महत्व बताते हुए योगीराज की व्याख्या लीलाधर से कर दी। 
हमारे पुराण व ग्रन्थों के अनुसार त्रिदेव ;ब्रह्मा, विष्णु व महेशद्ध में से एक भगवान विष्णु के अठारहवें अवतार भगवान कृष्ण हुए हैं। जिनके बारे में कहा गया है कि भगवान कृष्ण में ही 16 गुण हुए हैं बाकी किसी अवतार में नहीं। इसी प्रकार एक अन्य अवतार भगवान राम के बारेे में कहा जाता है कि उनमें 14 गुण ही थे अतः उनको ‘पुरुषों में उत्तम’ पुरुषोत्तम श्री राम कहा गया। ऐसे ही महात्मा बु(, महर्षि परशुराम, प्रथम तीर्थकंर )षभदेव जी, यहां तक कृष्ण अग्रज बलराम में भी 4 गुण बताए हैं। इस तथ्य पर आप प्रश्न करेंगे कि दोनों 2 गुण कौन से थे जो राम को प्राप्त नहीं हो सके जो कि कृष्ण के पास थे, उनके 2 गुणों के बारे में कहा जाता है कि वह थे चोरी-व्याभिचार और छल-कपट। इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि भगवान कृष्ण चरित्रहिन या कोई धोखेबाज थे संभवतः इस चरित्र के कारण कृष्ण का नाम ‘छलिया’ भी कहा गया। जबकि भगवान राम के बारे में ऐसा कोई नाम नहीं दिया गया। यही नाम और गुण इस लीला को भी इंगित करते है कि कृष्ण के चरित्रलीला में गोपियों को महत्वपूर्ण स्थान मिला और यह भी कहा गया है कि उनकी 16 हजार रानियां हुआ करती थी। अब यह तो पुराण ही जाने या फिर सूरदास जी। जिनके द्वारा अपने दोहों में कृष्ण के बारे में बहुत सी अलौकिक गुणगान किये गये लेकिन मेरा ध्यान इन सबकी ओर नहीं जा पाया उनके चरित्र को लेकर मैंने हमेशा चिंतन किया क्योंकि उनके द्वारा कुछ ऐसे कार्य किये जोकि चमत्कार से तो जुड़ गये। भक्तों ने कभी उनके द्वारा किये गये कार्यों के कारण के बारे में कभी गहनता से नहीं सोचा। क्योंकि वह भक्त हैं और भगत अपने प्रभु के बारे में विचार नहीं करता वरन् उनके गुणगान करता है। अब आप यह कहेंगे कि मैं कृष्ण का भक्त नहीं हूं। हां! मैं कहूंगा कि हूं और मेरे मन में उनके प्रति अगाथ श्र(ा है।
महाभारत यु(: विश्व यु(
अब मैं अपने विचारों को शब्दों की माला में पिरोने का प्रयास कर रहा हूं। द्वापर युग एक अत्याधिक विकसित युग माना गया है, जिसका अंत महाभारत के यु( के साथ विनाश हुआ। आपने पुराणों में अवश्य ही पढ़ा होगा कि यु( से पूर्व दोनों पक्षों में हुए समझौते के अनुसार विश्वभर से आए राजाओं ने कौरवों की ओर से यु( में भाग लिया जबकि पांडवों की ओर से मात्र योगीराज कृष्ण यु( की व्यूह करते हुए अर्जुन के सारथी के रुप में लड़े।
लेकिन मैं अपने लेख में महाभारत यु( पर चर्चा करना उद्देश्य नहीं है बल्कि योगीराज कृष्ण के दूरदर्शी योजनाओं पर चर्चा करना है। 
गाय और उसके महत्व
हमारे पुराण कहते हैं कि महर्षि परशुराम के पिता )षि जमादग्नि ;तत्कालीन वैज्ञानिकद्ध के पास कामधेनु गाय हुआ करती थी। जबकि मेरा मानना है कि महर्षि जमादग्नि ने उस समय की जंगली पशु माने जाने वाली ‘गाय’ के महत्व पर महत्वपूर्ण अनुसंधान किया और गाय में पाए जा रहे गुणों को समाज से उसके महत्व से परिचय करवाया। क्योंकि यह तो आप जानते ही है कि गाय हमारे धर्म में एक पूज्या पशु बताया यह कहा गया है कि गाय का दूध नहीं बल्कि मूत्र और गोबर भी हमारे जीवन व समाज की सुरक्षा के लिए अतिमहत्वपूर्ण है। जब आप गाय पर अब तक किये गये अनुसंधानों पर अध्ययन करेंगे तो यह तथ्य आता है कि प्राचीन काल से अभी तक हमारे देश में प्रत्येक घर के बाहर और आंगन में गोबर को लेप किया जाता रहा है। उल्लेखनीय है  िग्रामीण व शहर के पिछड़े क्षेत्रों के कच्चे मकानों में आज भी लेपा जाता है। कभी सोचा कि क्यों? क्योंकि विभिन्न अनुसंधानों में यह बताते हंै कि गोबर के लेप के ऊपर अणु बम भी अपना प्रभाव नहीं कर पाता है और इसके अतिरिक्त गाय का दूध इतना पौष्टिक और लाभकारी है कि गाय के दूध का सेवन करने वाले व्यक्ति को कैंसर जैसे घातक रोग भी प्रभावित नहीं कर पाते। इसीलिए आज भी चिकित्सक नवजात बच्चों को गाय के दूध का सेवन करने की सलाह देते हैं। खैर! 
भगवत् गीता ने वर्णन आया है कि जब भगवान कृष्ण ने मथुरा में कंस की जेल में देवकी के गर्भ से जन्म लिया तब उनके पिता बासुदेव ने पास के गोकुल गांव के श्रेष्ठी मित्र यशोदा के पति नंद के पास बहुत भारी संख्या में गाय हुआ करती थी। वैसे भी उस काल में संपत्ति के रुप में गाय व अन्य पालतू पशु ही हुआ करते थे।
दुग्ध उद्योग का विकास और विपरण
योगीराज कृष्ण ने समाज को गाय के दूध और उससे बनने वाले विभिन्न उत्पाद जैसे दही, मक्खन, घी, पनीर, मठ्ठा, खोया औ छैना आदि निर्माण हो सकता है जोकि स्वास्थ्य के लिए बहुत ही गुणकारी और स्वास्थ्यवर्धक माने जाते रहे हैं, के व्यापार विकास को अपनी लीलाओं के माध्यम से समाज को प्रेरित किया। हां! कविवर सूरदास ने अपनी कविताओं और दोहों में कृष्ण की लीलाओं में माखन चोरी का गुणगान बहुत ही ज्यादा किया है। जबकि सत्यता का तथ्य यह है कि योगीराज कृष्ण ने माखनचोरी के माध्यम से इन उत्पादों की ओेर जनता को आकर्षित कर दुग्ध विकास की अपनी योजना को जनसाधारण में क्रियान्वयन किया। इसके अतिरिक्त कृष्ण ने दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ दूध और उसके उत्पादों को जनसाधारण में व्यापक विपरण ;डंतामजपदहद्धका भी साधन बताया।
उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि आज भी चिकित्सकगण बताते हैं कि मक्खन और मिश्री स्वास्थ्य के लिए अत्यंन्त ही लाभकारी और स्वास्थ्यवर्धक है। परन्तु आज के इस भौतिकवादी युग में प्रातः नाश्ते में मिश्री का सेवन ‘मधुमेह’ ;क्पंइमजमेद्ध रोग के कारण प्रायः बंद हो गया है लेकिन मक्खन आज भी विद्यमान है बस उसका स्वरुप और स्वाद बदल गया है और मक्खन नमकीन हो गया है।
गिरिराज या गोवर्धन पर्वत
आज भी जनमानस में मथुरा गोवर्धन तहसील में गुरु पूर्णिमा के दिन लाखों भक्त और श्र(ालु गिरिराज पर्वत के सप्तकोसीय पदयात्रा करने आते हैं। शासन- प्रशासन को इस यात्रा की सुरक्षा व सुगमता के लिए व्यापक व्यवस्था के लिए करनी होती है। मान्यता है कि इस गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा से मनोकामना पूरी होती है।
इस पर्वत के बारे में पौराणिक कथा है कि देवराज इंद्र, कृष्ण से किसी बात पर कुपित हो गये थे अतः उनके द्वारा मथुरा में अत्याधिक वर्षा की जिससे पूरा क्षेत्र भारी वर्षा से मच गया तब भगवान कृष्ण ने अपनी कनकी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और जनसाधारण ने उस गोवर्धन पर्वत की शरण लेकर अपनी जान बचायी। यह किदवंती है या सत्य, कहा नहीं जा सकता है लेकिन मेरा विचार यहां पर भी थोड़ा-सा भिन्न है। 
मेरा मानना है कि मथुरा नरेश कंस के शासनकाल में जनसुविधाओं को अत्याधिक अभाव था और उसकी सेना का जनसाधारण में भारी आतंक का साम्राज्य भी । जब योगीराज कृष्ण ने होश संभाला तो उन्होंने इन सभी अव्यवस्थाओं पर व्यापक ध्यान दिया। अतः उन्होंने ध्यान दिया कि क्षेत्र में होने वाली बारिस का पानी बेकार ही बहकर जमुना जी में चला जाता है और वर्षभर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती इसके अतिरिक्त बरसात में बरसने वाले पानी के कारण गांव के गांव जलमग्न हो जाने के कारण भारी क्षेत्र में तबाही होती है। इन सभी परिस्थितिओं को ध्यान में रखकर योजनाकार योगीराज कृष्ण ने इस क्षेत्र की पानी की तबाही को बचाने और जल संचय के लिए एक विशाल बांध बनाने की योजना बनायी। जिसका क्षेत्रफल लगभग सप्तकोस का रहा होगा और इसकी दीवारें ऊँची-ऊँची रही होंगी जैसा कि आज के बांधों के होते हैं। तथ्य सामने है कि जब आप इस सप्तकोस की परिक्रमा करतेे तो पाते है कि यह पर्वत गोलाकर है और दीवारें काफी ऊंची-ऊंची पर्वत के समान है।  इस तथ्य पर भी विचार करें कि उस समय ऊंचाई कितनी होगी? आज इस बंाध को बने आज लगभग 53सौ वर्ष से अधिक समय हो चुका हैं और उस समय की सड़क कच्ची हुआ करती थी जो कि आज पक्की हो गयी है, गोवर्धन पर्वत के पास आज भी ‘मानसी गंगा’ कलरव करती हुई अविरल गति से विराजमान है और परिक्रमा करने वाले तीर्थयात्री इस मानसी गंगा में स्नान कर स्वयं को धन्य मानते हैं। 
उनकी दूरदर्शी योजना और उनके द्वारा उनकी प्रेयसी राधा के साथ उन समय किये गये एक जनआंदोलन
आज से 5300 वर्ष पूर्व भी समाज और संस्कृति बहुत ही विकसित हुआ करती थी हमारे पुराण तो यहां तक कहते हैं कि उस समय जितना विकास हो चुका था उस तरह के विकास तो आज भी हो नहीं पाया है। हां, समाज में बहुत ही भ्रांतियां और कुरीतियां फैली हुई थी। आज स्वयं आप देखते हैं कि आज भी हमारे साधु-संत समाज में फैले कुरीतियों को खत्म करने के लिए प्रवचन आदि करते हैं बहुत से समाज-सुधारक जनआंदोलन के द्वारा समाज को रास्ता दिखा रहे हैं। समाज के मूल्यों को वापस दिलाने का प्रयास करते रहते हैं। इसी प्रकार उस समय के समाज को भी एक जननायक की आवश्यकता थी और उस जननायक की भूमिका निभायी योगीराज कृष्ण और उनकी पे्रयसी राधा ने। हां समय के साथ या किन्हीं मजबुरियों में तत्कालीन कवियों ने कृष्ण और राधा को एक-दूसरे का पूरक के रुप में प्रस्तुत कर प्रेमी-प्रेयसी का स्वरुप दे दिया। 
यह भी प्रमाणित है कि किसी भी जनआंदोलन के लिए पुरुषों के साथ महिला व बच्चों में भी जन-जाग्रति अतिआवश्यक होती है। इससे संबन्धित एक उदाहरण कृष्ण लीला में आता है कि मथुरा व आसपास के क्षेत्रों कंस के सैनिकों का आंतक छाया रहता था, घर व महिलाएं सुरक्षित नहीं थी। लीला में एक दृश्य में गोकुल की महिलाओं को तालाब में स्नान करते दिखाया है तब कृष्ण उनके कपड़े लेकर गायब हो जाते हैं तब गोपियां उनसे विनती करती है कि उनके वस्त्र दे दो तब कृष्ण उनको समझाते हैं कि ऐसे स्नान करना ठीक नहीं है। 
ऐसे उदाहरणों के माध्यम से आपके साथ विचार बांटना चाहंूगा कि यह भी सत्य ही प्रतीत होता है कि पुरुषों का नेतृत्व करने के लिए ग्वालों के साथ कृष्ण थे ही लेकिन कृष्ण ने अपनी मित्र या प्रेयसी राधा को गोपियों के नेतृत्व के लिए खड़ा किया और समाज सुधार या जनजागरण हेतु एक जनआंदोलन शुरु किया और समाज को एकसूत्र में बांधा। इस बिन्दुओें की व्याख्या करना मुश्किल है कि ऐसे कौन-कौन से बुराईयों को समाप्त किया।
आज भी कृष्ण और कृष्ण लीलाएं सार्थक हैं
योगीराज कृष्ण आज के युग में भी सार्थक हैं। उनके द्वारा दुग्ध विकास की योजना सरकार और जनसाधारण के द्वारा विस्तारित हो रही है हां, थोड़ा स्वरुप बदलता जा रहा है। 
मैं एक विषय पर और अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूं कि आज से लगभग 500 सौ वर्ष पूर्व जब हमारे सनातन धर्म और हिन्दु संस्कृति पर मुगलों और बौ(ों के आक्रमण हो रहा था, तब उस समय के )षि-मुनियों ने मंत्रणा कर कृष्ण और राम का सहारा लेने के लिए उस समय के कवि-गायकों और नाकट - मंचों को साथ लिया। क्योंकि यह माना जाता है कि कवि-गायक, नाकट मंचन आदि समाज को संदेश देकर एक द्रुत गति से दिशा प्रदान कर सकते हैं। 
अब आप प्रश्न करेंगे कि हमारे )षि-मुनिगण कैसे और कब मंत्रणा करते हैं। तो मैं आप बताऊं कि देश में प्रत्येक 12 वर्ष के बाद होने वाले कुंभ के मेलों में इन संतों का गुप्त मंत्रणा होती है, आज भी होती हैं। उस चर्चा में धर्म, संस्कृति व समाज के लिए गहन विचार-मंथन किया जाता है। मेरे अध्ययन और विचार से उस समय चर्चा हुई होगी कि उस समय मुगलों और बौ(ों के किये जा रहे धर्मातंरण पर कैसे नियंत्रण किया जाए। तब चर्चा में विचार आया होगा कि उनके पास केवल दो चरित्र ही इस संकट से छुटकारा दिलवा सकते हैं और समाज एकसूत्र में बंध सकते हंै। वह दो चरित्र थे राम और कृष्ण। लेकिन समस्या यह थी कि राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, उनके चरित्र से मर्यादा की ही  प्रेरणा मिलती है लेकिन शत्रु से लड़ने के लिए छल- कपट की थी आवश्यकता भी होती है। तब कृष्ण का ऐसा चरित्र आया जो कि ‘छलिया’ का रुप भी था। तब दोनों स्वरुपों का प्रयोग करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा रचित ‘राम चरित मानस’ को प्रचारित किया गया क्योंकि राम के नाम पर हिन्दु समाज का व्यक्ति हमेशा ही एकत्र हुआ है। कृष्ण के छलिया और अन्य चरित्र के लिए कविवर सूरदास को चुना गया और उनके दोहों के माध्यम से समाज को एक सूत्र में बांधा और कृष्ण नाम की धूम मचायी। क्योंकि कृष्ण का चरित्र आज भी सार्थक होकर समाज को जोड़ रहा है।

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