झांसी: बाबा गंगादास की बड़ी शाला

  भारत विश्व का एक ऐसा देश है, जिसके कण-कण में भगवान बसते हैं। भारत की भूमि में हर दिशा, हर क्षेत्र में कोई ना कोई आध्यात्मिक आश्रम है और पूज्य स्थल है। इस बारे में हैम्पटन एस सी (अमेरिका) निवासी अर्सेल (अब स्वर्गीय) ने 1979 में भारत भ्रमण के दौरान  एक टिप्पणी की कि ‘प्रड्डति ने आध्यात्मिक क्षेत्र में भारत के साथ पक्षपात किया है।’ उनकी यह टिप्पणी द्वेषमात्र नहीं है, वरन् सत्यता व्यक्त करती है। मैडम अर्सेल कोे अपनी भारत भ्रमण के दौरान ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण कर उनके बारे में सत्यतापूर्ण इतिहास जानने की इच्छा थी। अपनी यात्रा मंे हरिद्वार और मथुरा में उन्होंने सनातन धर्म का नजदीक से जाना भी। मैडम अर्सेल ने लेखक से प्रश्न भी किया कि भारत की भूमि इतनी पवित्र और अलौकिक क्यों है? विशेषतः उनके मन में एक जिज्ञासा थी कि भारत में जगह-जगह पर और आश्रमों में फाॅयर (अग्नि) को एक ब्रिक के चोकोर घेरे  में जलाया जाता है (उनका आशय हवनकुड में अग्नि प्रज्वलित कर हवन करने से था।) और उस अग्नि को एक बड़ी-बड़ी ढाड़ी वाला व्यक्ति कुछ करता है ऐसा वह क्या करता है तब लेखक ने बताया कि वह अग्नि मात्र अग्नि नहीं है, वह हवन कहलाता है और ढाड़ी वाला व्यक्ति साधारण व्यक्तित्व नहीं होता बल्कि वह साधु अथवा गुरू होता है जो समाज का हर देशकाल परिस्थिति में पथ-प्रदर्शक होता है, वह साधु समाज के प्रत्येक व्यक्ति को संस्कारित करता है, तो उनकी जिज्ञासा को देख लेखक ने अपने घर पर हवन भी कराया और उनके द्वारा इस हवन में भाग लेकर आहुतियां भी अर्पित की गई।
वैसे तो हमारे देश में स्थान-स्थान पर आश्रम हैं, जिनके साथ कोई ना कोई इतिहास जुड़ा रहता है, लेकिन हम जिक्र करना चाहते हैं एक ऐसे आश्रम की जो एक गौरवशाली इतिहास समेट कर पूर्णतया आध्यात्मिकता का केन्द्र रहा है। यहां आने वाले भक्त बताते हैं कि इस आश्रम में आकर भक्तगणों को यहां आकर अदभुत शांति मिलती है और उनमें एक नयी शक्ति का संचार होता है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यदि इस आश्रम में आकर नियमित 51 दिन देशी घी का दीपक जलाकर पूर्ण आस्था और विश्वास के प्रार्थना करने पर उनकी मनौती भी पूर्ण होती है। ऐसे एक नहीं बहुत से किस्से हैं जो कि आज के नहीं हैं, वरन् बहुत पुराने समय से हैं। 
आइये हम आपको इस अलौकिक, अदभुत और चमत्कारिकता के साथ अपने में एक इतिहास छुपाये बैठे एक आश्रम के बारे में बताते हैं। आपने मध्य प्रदेश के एक शहर ग्वालियर के बारे में सुना ही होगा। ग्वालियर में सिंधिया परिवार का शासन काल था जो आज भी हैं। वर्तमान में यहां के राजा ज्योर्तिराजे सिंधिया भारत सरकार के मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में मंत्री भी है उनके पिता स्व0 माधवराव सिंधिया भी मंत्री थे, उनकी दादी श्रीमती विजयाराजे सिंधिया भी एक प्रभावशाली नेता थीं। उनकी बुआ श्रीमती बसुन्धरा राजे धौलपुर राज्य की रानी होने के साथ राजस्थान की बहुत प्रतिभाशाली मुख्यमंत्री रहीं। लेकिन इन सबके अतिरिक्त ग्वालियर में एक आश्रम भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं इस आश्रम का नाम है ‘बाबा गंगादास की बड़ी शाला’।
बाबा गंगादास की बड़ी शाला का महत्व 1857 में भारत के आजादी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा हुआ है। हां झांसी की वीरागंना रानी लक्ष्मी बाई, जिनके बारे में आज भी गीत गाया जाता है ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’। इतिहास बताता है कि रानी झांसी जब अंग्रेजों से युद्ध में बुरी तरह घायल हो गयी, तब अंत में वह घायलवस्था में रानी के विश्वासपात्र सेवक रामचन्द्रराव एंव काशीबाई इसी बाबा गंगादास के आश्रम में ले आये थे और जब रानी का आभास हो गया है कि अब वह बच नहीं पाएंगी, तब उन्होंने बाबा से प्रार्थना की उनका शरीर किसी भी अवस्था में अंग्रेजों के हाथ ना पड़ जाए और रानी ने ‘ऊँ भगवते वासुदेवाय नमः’ का उच्चारण के साथ प्राण त्याग दिये, तब बाबा ने रानी के शरीर को सुरक्षित करने के उद्देश्य और अपनी कुटिया को शत्रुओं की नजर से बचाते हुए चारों ओर एक घेराव बनाकर 200 घास की गंजी के पास ले गए और गंजी और कुटिया की लकड़ी से चिता बना कर रानी का शव उस पर रख दिया, अग्नि प्रज्वलित कर रानी का अंन्तिम संस्कार कर दिया।
इस आश्रम के बारे में एक बहुत ही रोचक, गुदगुनाने वाला किस्सा प्रचलित हैै। यह किस्सा मुगल शासक अकबर (1556 से 1605 ई0) का है। मुगल काल में पूर्ण बैराठी जी महाराज जिनका नाम श्री श्री 108 श्री गोस्वामी परमानन्द जी महाराज था। कहीं से भटकते हुए इस कुटिया पर रूके, तब उन्हें आभास हुआ कि कुटिया में प्रतिष्ठापित हनुमान जी मूर्ति तो आदि काल से है, उस जाग्रत एवं प्राचीन हनुमान बाबा की मूर्ति क प्रति स्वयं को समर्पित कर दिया और आजीवन इस कुटिया में ही वास करने लगे। 
इन पूर्ण बैराठी जी बाबा से जुड़ा एक रोचक और अद्भूत किस्सा मिलता है।  वह जब कुटिया में हनुमान की मूर्ति के समक्ष शंखनाद और पूजा पाठ करते थे, तब पास में मुगलों के किले में निवास करने वाले मुगल अधिकारी बौखला जाते, इस बौखलाहट में कई बार वे आश्रम को उजाड़ने आते हैं तब उनको बाबा के शरीर के अलग-अलग टुकड़े दिखायी पड़ते हैं जैसे मस्तक, हाथ-पांव, धड़ से अलग हैं, यह नजारा देख कर वह लौट आते, लेकिन पूजा के समय फिर शंख ध्वनि उनको सुनायी पड़ती, तो फिर वह दौड़ पड़ते कि कोई अन्य साधु होगा लेकिन वही नजारा ही देखते, परेशान होकर उन मुगल अधिकारियों ने बादशाह अकबर को इस पूरे वाकये की सूचना दी, तब अकबर स्वयं उस नजारे को देखने के लिए ग्वालियर पधारेे और प्रातः काल पूजा के समय स्वयं हाथी पर बैठ आश्रम पर गये। अकबर ने देखा कि आश्रम पर एक बाबा तख्त पर बैठ भजन में लीन थे, उनको अकबर के आने का कोई आभास नहीं था तब अकबर के सेवकों ने बाबा को बादशाह अकबर के आने की सूचना दी। बाबा ने देखा कि अकबर हाथी पर आएं हैं इस पर बाबा ने अपने तख्त, जिस पर बैठे थे, को अकबर के हाथी तक चलने को कहा। अपने तख्त को आदेश देकर तख्त को हाथी से ऊपर तक उठा लिया। यह सब नजारा देख अकबर तुरन्त ही हाथी से नीचे उतर आया और बाबा को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और अकबर बोला ‘प्रभु आप मनुष्य नहीं है आप तो स्वयं में साक्षात भगवान है मुझे क्षमा करें।’ बाबा ने हाथ उठा कर अकबर को आर्शीवाद दिया। बादशाह अकबर ने तुरन्त ही अपने सूबेदार को पांच बीघा जमीन आश्रम के लिए देने का हुक्म दिया। अकबरने  उस जमीन पर मंदिर, शाला, बाग और कुआं भी सरकारी खजाने से बनबाने की आज्ञा दी, साथ ही बारह गांव भी अर्पित किये, जिससे आश्रम का खर्च आदि चले सके।  अकबर ने बाबा को एक सुंदर मखमल की कामदार टोपी, छत्र, आफ्तागिरी एवं छड़ी भी भेंट की और चलते समय पांव छूकर विदा ली। यह सब वस्तुएं आज भी इस आश्रम में मौजूद हैं। यह पवित्र स्थान भारत में ‘वैरागी सम्प्रदाय का मठ’ के नाम से पूज्य और दर्शनीय है। आज भी इस आश्रम में बाबा की समाधि के दर्शन किये जा सकते है। 
श्री गोस्वामी परमानंद जी महाराज के उपरांत गुरू शिष्य परंपरा में इस बड़ी शाला के श्री महंत लाल पोहारी, श्री महंत गोवरधनदास, श्री महंत लक्ष्मणदास, श्री महंत भगवानदास, श्री महंत हिरदेदास, श्री महंत  ड्डष्णदास, श्री महंत मोहनदास वं नौवीं पीढ़ी में बाबा गंगादास आज भी इस आश्रम के महंत हैं।
 

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