क्या सब्सिडी देना कोई समस्या का हल है?
हमारे देश की व्यवस्था बड़ी ही अजीबो-गरीब है। अभी 5 राज्यों में हुए विधानसभा के चुनाव हुए। दिल्ली में नयी पार्टी ‘आप’ का उदय हुआ। लोगों को आप के नेता अरविंद केजरीवाल से लोगों को बहुत अपेक्षाएं है क्योंकि उनकी सादगी के सभी कायल है। आते ही दिल्ली के बिजली कंपनियों की आॅडिट कराने की घोषणा कर दी स्वागत है। बिजली कंपनियों का आॅडिट करवाना एक नया और सराहनीय कार्य है परन्तु फिर उनके द्वारा घोषणापत्र के अनुरुप विद्युत उपभोक्ताओं को 50 प्रतिशत सब्सिडी देने घोषणा की गई।
तब प्रश्न फिर उभरा कि सब्सिडी के भंवर जाल से हमारा देश कब बाहर आएगा? क्या इस देश के लोगों को सब्सिडी के नाम पर हमेशा लाभ देते रहना क्या राष्ट्रहित में है? क्या इस सब्सिडी से देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ रहा है कभी इन नेताओं ने सोचा। एक ऐसे शख्स राजनीति की सभी सीमाएं लांघकर राजनीति के भंवर जाल में ‘कुछ नया करने की तम्मना’ से आया वह भी इस ‘सब्सिडी’ के जाल में फंस गया। हमारा मानना है कि यदि सब्सिडी देने की आवश्यकता है तो क्यों न विद्युत दरांे को कम कर दिया जाए इससे राज्य सरकार के बजट पर कोई बोझ भी नहीं पड़ेगा और निश्चय ही बिजली की चोरी भी रुकेगी।
हमारे देश में ऐसे तो बहुत सी ऐसी समस्याएं है जिनका निदान अति आवश्यक है। यह इस दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण है कि उनके निदान से देश की अर्थव्यवस्था बहुत आगे बढ़ सकती है और मजबूती प्राप्त कर विश्व स्तर पर नेतृत्व प्रदान कर सकती है परन्तु हमारे नेतागण संभवतः ऐसा कराना नहीं चाहते।
हम तो दिल्ली के मुख्यमंत्री जी से बस यही पूछना चाहते हैं कि क्या आपने सब्सिडी की नीति की कभी विवेचना की है! क्या सब्सिडी देना किसी समस्या का निदान है।
हमारे सामने एक समस्या यह भी आ रही है कि देश में बेराजेगारी बहुत ज्यादा है परन्तु इसका निदान कैसे हो? यह भी यक्ष प्रश्न बन बन गया है क्या कभी सोचने की फुर्सत मिल रही है कि सरकारी की कल्याणकारी योजनाएं हमारे देश के बेरोजगार युवावर्ग के मन में कैसी भावनाएं पैदा कर रही है कि आज वह बिना काम के धन प्राप्त करने की जुगत बिठाता रहता है। स्थिति यह आती जा रही है कि देश के उद्योग धंधों में काम करने के लिए कर्मचारी नहीं मिल रहे हैं तब उद्योगों के स्वामी अपनी उद्योगों को चलाने के लिए आधुनिक मशीनें स्थापित कर मानर्व इंधन की कमी को पूरा कर रहे हैं। कभी विचार करने का अवसर ही नहीं मिलता बल्कि विचार इस पर करते हैं कि कैसे कैसे-कैसे लालीपाॅप का प्रलोभन देकर वोट बैंक बनाया जाए। -पराग सिंहल
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