भारत की कमजोर कूटनीति: काश्मीर पर वार्ता जरूरी लेकिन.....!

  आजादी के समय बंटवारे वार्ता के दौरान काश्मीर के बारे कुछ ना बोलना, फिर आजादी के तुरन्त बाद काश्मीर पर हमला कर आधा काश्मीर अपने कब्जे में ले लिया और हमारी तत्कालीन आजाद भारत के शासकों विशेषकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं0 नेहरू ने शायद एक सुनियोजित योजना के अन्तर्गत काश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया भारत सरकार के इस निर्णय से पाकिस्तान की हिम्मत बढ़ गई और उसने भारत के काश्मीर पर अपनी दांत गढ़ाने शुरू कर दिए। पाकिस्तान के यह सारे प्रयास भारत की कमजोर कूटनीति का ही परिणाम है।
हम नहीं समझ पा रहे हैं कि भारत कब तक अपने को बचाव कर, सुरक्षात्मक कूटनीति का सहारा लेता रहेगा? ऐसे ही चीन द्वारा भी जब कभी अरूणांचल पर कब्जा करने के फिराक में रहता है और अरूणाचंल को अपना अंग बताता है। हाल ही जारी चीन के नक्शे में अंरूणाचल को चीन का हिस्सार बताया। उसके द्वारा भी 1962 की यु में भारत के एक भूभाग पर कब्जा कर लिया था। जिस पर भी भारत आज तक कोई  ठोस निर्णय नहीं ले पा रहा है। ऐसी स्थिति में चीन को क्या फर्क पड़ रहा है उसके कब्जे में तो भारत का भूभाग है ही। इधर चीन की यहां तक हिम्मत बढ़ गई कि चीन अंरूणाचल के नागरिकों को नत्थी बीजा जारी कर कहता है कि ‘अरूणाचल चीन का ही हिस्सा है।
हाल ही एक किस्सा और पढ़ने में आया कि कुछ समय पहले चीन से भाग कर आये करमापा उग्येन त्रिनले दोरजी ने भारत में शरण ली लेकिन अब उनके पास व उनके अनुयायिओं के पास करोड़ों डाॅलर के विदेशी मुद्रा बरामद की और पूछताछ में यह बात सामने आयी कि करमापा चीन के जासूस है जिसको चीन मना कर रहा है। यह सब बातें किस तरफ इशारा कर रही है। 
भारत अब विश्व की उभरती हुई शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित कर रहा है फिर भी अपनी विदेश नीति को पता नहीं आक्रमक क्यों  नहीं बना पा रहा है। फिर भारत, चीन और पाकिस्तान के द्वारा कब्जे वाले भूभाग के लिए चुप क्यों बैठा है। इधर भारत, चीन के साथ व्यापारिक संबन्ध बढ़ाने के लिए भारतीय शासक तंत्र बहुत ही आतुर और उत्साहित है। भारत सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे पा रही है कि चीन के व्यापारिक नीति व उत्पादन से भारत के उद्योग धन्धों पर कितना प्रतिकूल व घातक असर पड़ रहा है कि भारत के उद्योगपति भारत की जमीन पर ही चीन से किसी भी मामले में मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं।
चीन बा(ों के नेता कब बना?
उधर चीन स्वयं को बौों का अपने को नेता मानने लगा है जबकि बौों के गुरू महात्मा बु( भारत में ही पैदा हुए और कमजोर कूटनीति का ही प्रभाव है  कि बिहार में विश्व की सबसे प्रानीचतम  एवं प्रथम ‘नालंदा विश्वविद्यालय’ के निर्माण का जिम्मा चीन को दे दिया गया क्योंकि चीन बौ(ों को देश है, विश्व का बौ(ों का गुरू है, भारत के इस कथन और समर्थन से चीन अपने को बौ( देशों का मुखिया के रूप में स्थापित कर रहा है और भारत की सरकार उसको नालंदा विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी सौंप कर बौ( गुरू का दर्जा दे रहा है, यह भी सत्य है कि बो(ों के सर्वोच्च धर्मगुरू दलाई लामा भारत में शरण दिये हुए हैं और भारत को अपनी कर्मभूमि मानते हुए अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं।
लेकिन भारत की कमजोर कूटनीति से ऐसा लगने लगा है कि भारत, चीन के साथ बढ़ते व्यापारिक संबन्ध, हमारे देश के व्यापार-उद्योग के बलिदान के मूल्य पर, चीन को बौ( गुरू के साथ चीन को विश्व की अग्रणी देश मानने की नीति को स्वीकार कर है।
हमारी तो सलाह है कि हमारे ;सीधे-साधेद्ध प्रधानमंत्री व विदेश मंत्री को अपनी ;सुरक्षात्मकद्ध विदेश नीति में बदलाव कर आक्रमक नीति अपनाकर चीन से खुलकर वार्ता कर कोई ठोस निर्णय निकाले। 
 

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