वैट विभाग: क्या स्वयं ने कभी प्रयोग की है?


वाणिज्य कर विभाग समय के साथ चलते हुए स्वयं को सूचना प्रौद्योगिक से जोड़ते हुए अपनी सभी मुख्य-मुख्य प्रणालीओं को विभागीय वेबसाइट के माध्यम से उपलब्ध करा रहा है परन्तु विभाग द्वारा उपलब्ध करायी जा रही सेवाओं से व्यापारीवर्ग संतुष्ट नहीं है। परन्तु विभाग के अधिकारियों ने इस तथ्य पर कभी गंभीरता से विचार नहीं किया। जबकि दूसरी ओर हम आयकर विभाग की प्रणालियों कर अध्ययन करें तो पाते हैं कि विभाग को स्वंय को इतना अधिक सूचना प्रौद्योगिकी पर खरा उतर चुका है कि करदाता अब इस विभाग की प्रणालीयों से जुड़ने के लिए आतुर रहते हैं। प्रश्न उठता है कि वाणिज्य कर विभाग की सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ने से प्रदेश का व्यापारी इतना कतरा क्यों रहा है? जबकि आयकर व वाणिज्य कर विभाग, दोनों ही राजस्व की वसूली करते है संभवतः फर्क नजर आता है दोनों विभाग में कार्यरत अधिकारियों की सोच में साथ ही कार्यप्रणाली में भी। 
मुझे यह फर्क इसलिए भी नजर आता है कि आयकर विभाग द्वारा तैयार किये गये सभी प्रकार के साॅफ्टवेयर्स को प्रयोग विभाग के अधिकारियों को स्वयं का आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए करना पड़ता है अतः वह स्वयं ही साॅफ्टवेयर में वाली दिक्कतों को परीक्षण करते रहते हैं परन्तु वाणिज्य कर विभाग के उच्च अधिकारियों को  विभाग की उपलब्ध सुविधाओं का प्रयोग करना नहीं पड़ता अतः वे कैसे जानेंगे कि उनके द्वारा विकसित की जाने वाली प्रणालियों की प्रक्रिया में क्या-क्या खामियां एवं अव्यावहारिक दिक्कतें हैं! 
जैसे अभी हाल में विभाग द्वारा ई-संचरण एवं ई-पंजीयन को वेबसाइट बेसड् बनाया परन्तु......?
बात करें ई-पंजीयन की तो प्रार्थी द्वारा जब ई-पंजीयन प्रक्रिया को विकसित करने पर सभी प्रकार की जिम्मेदारी प्रार्थी के ऊपर थौप दी गई जबकि होना यह चाहिए था कि पंजीयन अधिकारी को भी जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए था कि प्रार्थी द्वारा पंजीयन के लिए भरे गए प्रार्थना पत्र को स्वीकार करने के लिए समयसीमा निर्धारित होनी चाहिए जैसे यदि अधिकारी प्राप्त ई-पंजीयन को निस्तारित 3-4 दिन में स्वीकार अथवा रिजेक्ट नहीं करता है, तो साॅफ्टवेयर स्वयं ही पंजीयन जारी कर देगा इससे संबन्धित अधिकारी भी जिम्मेदार होता कि वह उस प्रार्थना पत्र का निस्तारण समयब(ता से करता है लेकिन ऐसा होता नहीं होता उसका खामियाजा प्रार्थी को भुगतना पड़ता है।
ऐसे ही ई-संचरण में व्यावहारिक दिक्कत है कि आयातकत्र्ता द्वारा विक्रेता को ई-संचरण फार्म उपलब्ध करवा दिया अब उसको ट्रांसपोर्टर से संपर्क कर परिवहित किये जाने वाले ट्रक का नंबर भरना होगा, यदि समय पर वह ट्रक उपलब्ध नहीं होता है तो उसके स्थान पर दूसरा वाहन संख्या नहीं भर सकता। अब व्यापारी क्या करें, अभी हाल ही में गाजियाबाद ट्रिब्यूनल का निर्णयभी इस बिन्दु पर आया है।
दूसरी अब दिक्कत यह भी आ रही है कि डाउनलोड किया गया ई-संचरण की समयसीमा निर्धारित है, यदि क्रेता एवं विक्रेता को भरने मंे देरी हो जाती है वह निश्चित समयसीमा में अप्रभावी हो जाता है और यदि फार्म भरते समय समयसीमा समाप्त हो जाए तो अगले फार्म में वही बिल नहीं भरा जा सकता।
3. व्यापारी उस फार्म को निरस्त भी कर सकता है, क्यों? 
अतः हमारा सभी व्यापारीवर्ग की ओर से विभागीय अधिकारियों से कहना है कि यदि ई-सेवाएं सुचारु एवं सुलभ बनानी है तो कुछ व्यावहारिकता को अपनाएं तो आपके द्वारा लिए जा रहे निर्णयों का स्वागत होगा अन्यथा विभाग द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियां उत्पीड़न की श्रेणी में ही आएंगी।                                                         -पराग सिंहल

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